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________________ ४५८ गो० जीवकाण्डे लब्धमपर्याप्तकालदोळु शुद्धोपक्रमकालमिदु २।१ अथवा प्र का २ फश १ । इ २११ लब्धमपर्याप्तपर्याप्तकालद्वयशुद्धोपक्रमशलाकेगळ २ १ १ मत्तं प्रश १ । फ श २ । १ इ १ १ । लब्धमपर्याप्तकालशुद्धोपक्रमशलाकमिदु २१ उभयत्र जघन्यजननांतरमेकसमयमनायिसि शुद्धोपक्रमशलाकेगळ साधिसल्पटुवेंदरिवुदु । अनुपक्रमकालरहितमुपक्रमकालं शुद्धोपक्रमकालमक्कुं। __ तत्सुद्धसलागाहिदणियरासिमपुण्णकाललद्धाहि । __सुद्धसलागाहिगुणे वेंतरवेगुव्वमिस्सा हु ॥२६८॥ तच्छुद्धशलाकाहृतनिजराशिमपूर्णकाललब्धाभिः । शुद्धशलाकाभिर्गुणे व्यंतरवैक्रियिकमिश्राः खलु॥ १. अपर्याप्तकालस्य शुद्धोपक्रमकालो भवति २१। अथवा--प्रका २। फश १। इ२ ११-लब्धाः पर्याप्ता a पर्याप्तकालद्वयशुद्धोपक्रमशलाकाः ११- प्रश १ । फ २ । इश ११-लब्धः सर्वशुद्धोपक्रमकालः २ ११ a पुनरपि प्रश १ फ २ इ १ लब्धः अपर्याप्त कालशुद्धोपक्र मकालः २३। उभयत्र जघन्यजननान्तरमेकसमय a माश्रित्य शुद्धोपक्रमशलाकाः साधिता इति ज्ञातव्यम् । अनुपक्रमकालरहितः उपक्रमकालः शुद्धोपक्रमकालः॥२६७॥ कालका परिमाण कुछ कम संख्यात गुणा संख्यातसे गुणित आवलीका असंख्यातवाँ भाग १५ होता है । तथा प्रमाण राशि जघन्य स्थिति, फलराशि शुद्ध उपक्रम शलाका काल, इच्छाराशि अपर्याप्तकाल। ऐसा करनेपर अपर्याप्तकाल सम्बन्धी शद्ध उपक्रम शलाकाका काल संख्यातगुणा आवलीका असंख्यातवाँ भागमात्र होता है। दूसरे प्रकारसे-प्रमाण राशि एक शुद्ध उपक्रम शलाकाका काल, फल एक शलाका, इच्छाराशि सर्वशुद्ध उपक्रम काल । ऐसा करनेसे पर्याप्त-अपर्याप्त सर्वकाल सम्बन्धी शुद्ध उपक्रम शलाका कुछ कम संख्यातगुणी संख्यात २० जानना । तथा प्रमाण राशि एक शलाका, फलराशि शुद्ध उपक्रम शलाकाका काल आवलीका असंख्यातवाँ भाग, इच्छाराशि सब शुद्ध शलाका कुछ कम संख्यात गुणित संख्यात । ऐसा करनेसे लब्ध सर्व जघन्यस्थिति सम्बन्धी शुद्ध उपक्रम काल आवलीके असंख्यातवें भागको कुछ कम संख्यात गुणित संख्यातसे गुणा करनेपर जितना प्रमाण आये, उतना होता है। तथा प्रमाणराशि एक शलाका, फलराशि एक शलाकाका काल आवलीका असंख्यातवाँ भाग, छाराशि अपयोप्तकाल सम्बन्धी शलाका संख्यात । ऐसा करनेसे लब्ध अपर्याप्त काल सम्बन्धी शद्ध उपक्रम शलाकाका काल संख्यातगणा आवलीका असंख्यातवाँ भाग मात्र होता है । उक्त दोनों प्रकारके कथनोंमें उत्पत्तिका जघन्य अन्तर एक समय है , उसको लेकर शुद्ध उपक्रम शलाकाएँ साधी हैं, ऐसा जानना। अनुपक्रम कालसे रहित उपक्रम कालको शुद्ध उपक्रम काल जानना ॥२६॥ ३० १. ब साधिका इति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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