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४५२
गो० जीवकाण्डे
असत्यवाग्योगिगळु
= १।१६ ४।६५%
D११७०१
उभयवाग्योगिगळु
= १६४ ४।६५ = 20 १७०१
अनुभयवाग्योगिगळु
= १ । २५६ ४।६५=१।१७०१
समस्तवाग्योगिगळु
= १ ॥ ३४० ४। ६५ = १।१७०१
समस्तकाययोगिगळु
= १।१३६०। ४ ६५ = 2। १७०१
द्वियोगिंगळोळु वाग्योगकालमंतर्मुहूर्त
२१। काययोगकालमदं नोडलु संख्यातगुणमी उभययोगकालयुतिय २१४ द्वियोगि५ गळसंख्येयं त्रियोगिहीनत्रसपर्याप्तराशियं ४ भागिसि स्वस्वगुणकारदिदं गुणिसुत्तिरलु तंतम्म राशिगळप्पुवु। द्वियोगिवाग्योगिगळु =२१ । १ द्वियोगिकाययोगिगळु =२१।४
४।२ ।५ ५-।
असत्यवाग्योगिनः
=१।४ ४। ६५ = १ । १७०१
= १६ ४। ६५ = १ । १७०१
उभयवाग्योगिनः =१।६४
४॥६५ = १।१७०१
अनुभयवाग्योगिनः =१। २५६ समस्तवाग्योगिनः
४। ६५ =१। १७०१
। ३४० समस्तकाययोगिनः१७०१
४।६५ =
। १ । १३६० । द्वियोगिषु वाग्योगकालोऽन्तर्मुहूर्तः । २ ५। काययोगकालः ततः संख्यातगुणः ४। ६५ = १ । १७०१
१० २१।४। उभयकालयुत्या २१ । ४ । द्वियोगिजीवसंख्यां त्रियोगिहीनत्रसपर्याप्तराशिमात्री भक्त्वा स्वस्वगुणकारेण गुणिते सति स्वस्वराशिर्भवति । द्वियोगिवाग्योगिनः =२१ । १ । द्वियोगिकाययोगिनः
४। २१ । ५
योगवाले जानना । जैसे ८५४ १७०१ = १४४५८५ अन्तमुहूर्तमें १४४५८५०० इतने त्रियोगीजीव होते हैं,तो एकमें कितने होंगे। अन्तर्मुहूर्त कालसे त्रियोगीकी संख्यामें भाग देनेपर लब्ध
सौ आया। उसमें सत्य मनोयोगके काल एकसे गुणा करनेपर सत्यमनोयोगियोंकी संख्या सौ १५ आती है। असत्यमनोयोगके काल चारसे गुणा करनेपर उनकी संख्या चार सौ आती है।
इसी तरह शेष योगवालोंकी भी संख्या जानना। द्वियोगी जीवोंमें वचनयोगका काल अन्तमुहूर्त है,उसकी संदृष्टि एक मान लो। इससे संख्यातगुणा काययोगका काल है, उसकी संदृष्टि चार मान लो। इन दोनोंके कालको जोड़नेपर जो प्रमाण हो,उसका भाग दो योग
वाले जीवोंकी राशिमें देनेपर जो एक भाग परिमाण आवे, उसे अपने-अपने कालसे गुणा २० करनेपर अपनी-अपनी राशि होती है । सो कुछ कम त्रसराशिके प्रमाणको उक्त संदृष्टि अपेक्षा
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