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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका मनोयोगादिगुणकारंगाळदं गुणिसुत्तमिरलु स्वस्वराशिप्रमाणं बक्कुं । सत्यमनोयोगियादिगळ संख्य बक्कुमदेतेदोडे-'प्रक्षेपयोगोघृतमिश्रपिंडः प्रक्षेपकाणां गुणको भवेत्सः, एंदी गणितसूत्रेष्टदिद इनितु कालदोळेलमिनितु जीवंगळगे संचयमागुत्तिरलु सत्यमनोयोगकालमिनितरोळेनितु जीवं. गळप्पुवेंदु त्रैराशिकं माडि तंतम्म शलाकेळदं गुणिसि प्रमाणराशिप्रक्षेपकयोर्गाददं भागिसुत्तिरलु सत्यमनोयोगिगळादियाद योगिगळ संख्येयमक्कुं । सत्यमनोयोगिगळु =१ । १...
४/६५१८५ । १७०१। असत्यमनोयोगिगळु ...
उभयमनोयोगिगळु
3-20१६ ४। ६५=१।८५। १७०१
___अनुभयमनोयोगिगळु
=१।६४ ४। ६५ = १
८५। १७०१
समस्तमनोयोगिगळु = १
४। ६५१।१७०१
सत्यवाग्योगिगळ
=१-४ ४।६
।१७०१
मनोयोगादियुक्तजीवराशिर्भवति अनेन कालसंचयमाश्रित्य संख्या प्ररूपिता, तद्यथा-एतावति काले
प्र२१,८५, १७०१ यद्येतावन्तो जीवाः संचीयन्ते फ =
१ तदा एतावति काले इ२१कियन्तो १०
जीवाः संचीयन्ते ? इति त्रैराशिकं कृत्वा स्वस्वशलाकाभिर्गुणयित्वा प्रमाणराशिना भक्ते सति सत्यमनोयोगादि
योगिनां संख्या भवति, सत्यमनोयोगिनः-
१, १ ४, ६५ =१,८५, १७०१
असत्यमनोयोगिनः
अनुभयमनोयोगिनः
=१।४ उभयमनोयोगिनः =१।१६ ४ । ६५ = ८५ । १७०१
४। ६५ %21८५। १७०१
. समस्तमनोयोगिनः ४। ६५ =2। ८५ । १७०१
४ । ६५ = 21 १७०१
सत्यवाग्योगिनः
काययोगके कालोंका जोड़ ८५४ १७०१ होता है। यथा ८५४१+३४० + १३६० = १७०१ । १५ इस अन्तर्मुहूर्त कालके जितने समय होते हैं,उनसे त्रियोगी जीवोंकी संख्यामें भाग देनेपर जो एक भाग परिमाण आये,उसे सत्य मनोयोग आदिके कालसे गुणा करनेपर सत्य मनोयोग आदिसे युक्त जीवराशिका परिमाण होता है। इससे कालके संचयका आश्रय लेकर संख्याका कथन किया है जो इस प्रकार है-यदि सब योगोंके कालमें पूर्वोक्त सब त्रियोगी जीव पाये जाते हैं, तो विवक्षित योगके कालमें कितने जीव पाये जायेंगे। इस प्रकार . त्रैराशिक करनेपर सब योगोंका काल तो प्रमाणराशि, त्रियोगी जीवोंका परिमाण फलराशि और जिस योगकी विवक्षा हो,उसका काल इच्छाराशि । सो यहाँ फलराशिको इच्छाराशिसे गुणा करके उसमें प्रमाणराशिका भाग देनेपर जो परिमाण आवे,उतने-उतने जीव उस-उस
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