SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 507
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ४४९ त्रियोगिजीवहीनप्रसपर्याप्तराशि ४ द्वियोगिराशिप्रमाणमक्कुं। कायवाग्योगयुक्तजीवराशिये बुदयमा द्वियोगिजीवंर्गाळदमुंत्रियोगिजीवंगलिंदमुं हीन संसारिराशि १३ एकयोगिराशियक्कुं काययोगजीवराशिये बुदमितु खलु स्फुटमागि ज्ञातव्यमक्कुं। अंतोमुहुत्तमेत्ता चउमणजोगा कमेण संखगुणा । तज्जोगो सामण्णं चउवचिजोगा तदो दु संखगुणा ॥२६२।। अंतर्मुहूर्त्तमात्राश्चतुर्मनोयोगाः क्रमेण संख्यगुणाः । तद्योगः सामान्यं चतुर्वाग्योगास्ततस्तु संख्यगुणाः॥ सत्यासत्योभयानुभयमें बी विकल्पंगळप्प नाल्कुं मनोयोगंगळमंतर्मुहर्तमात्रंगळ । प्रत्येकमंतर्मुहर्तकालवृत्तिगळप्पुवंतादोडं कमदिदं संख्येयगुणंगळु सा २१ ८५ मी नाल्कुं उ २१ १६ अ २१ ४ स २१ १ योगकालंगलु युतियुमंतर्मुहूर्तमात्रमेयक्कुमी नाल्कुं मनोयोगकालयुति सामान्यमं नोडलु २१॥ ८५ । १० arrrrrrrrrnar हीनत्रसपर्याप्त राशिः ४ द्वियोगिराशिप्रमाणं भवति-कायवाग्योगयुक्तजीवराशिरित्यर्थः। ताभ्यां द्वित्रियोग anwar राशिम्यां हीनसंसारी १३ = एकयोगिराशिर्भवति-काययोगिजीवराशिरित्यर्थः । एवं खलु स्फुटं ज्ञातव्यम् ॥२६१॥ सत्यासत्योभयानुभयाख्याः चत्वारो मनोयोगाः अन्तर्मुहूर्तमात्राः प्रत्येकमन्तर्मुहूर्तकालवृत्तयः तथापि क्रमेण संख्येयगुणा भवन्तिअ २१। ६४ | एषां कालानां युतिः सामान्यं सामान्यमनोयोगकालो भवति २१८५। अयमप्यन्तर्महर्तमात्र उ २१।१६ | एव, ततः सामान्यमनोयोगकालात्तु पुनः ते चत्वारो वाग्योगकाला अपि क्रमेण संख्यातगणाः, म २१। ४ तथापि प्रत्येकमन्तर्मुहर्तमात्रा एवस २१।१। युक्त जीवोंका परिमाण होता है। संसारी जीवराशिमें से दो योग और तीन योगवाले जीवोंका परिमाण हीन कर देनेपर जो शेष रहे , उतना एक योगी अर्थात् काययोगी जीवोंकी २० राशि होती है ।।२६१॥ सत्य, असत्य, उभय और अनुभय नामक चारों मनोयोगोंमें-से प्रत्येकका काल अन्तर्मुहूर्त है,तथापि क्रमसे संख्यात गुणा है अर्थात् सत्य मनोयोगका काल सबसे स्तोक अन्तमहत है। उससे संख्यातगणा अन्तमहत असत्य मनोयोगका काल है। उससे संख्यातगुणा अन्तर्मुहूर्त उभय मनोयोगका काल है। उससे संख्यातगुणा अन्तर्मुहूर्त अनुभय मनोयोगका काल है। इन चारों योगोंके कालका जोड़ सामान्य मनोयोगका काल है । वह भी अन्तर्मुहूर्त मात्र ही है। सामान्य मनोयोगके कालसे चारों वचनयोगोंका काल भी क्रमसे संख्यातगुना है, तथापि प्रत्येकका काल अन्तर्मुहूर्त मात्र ही है अर्थात् चारों मनोयोगोंके कालोंके जोड़से संख्यातगुणा अन्तर्मुहूर्त सत्य वचन योगका काल है। उससे संख्यातगुणा ५७ २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy