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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ४४७ बादरपुण्णा तेऊ सगरासीए असंखभागमिदा । विक्किरियससिजुत्ता पल्लासंखेज्जया वाऊ ॥२५९॥ बादरपूर्णास्तैजसाः स्वकराशेरसंख्यभागमिताः। विक्रियाशक्तियुक्ताः पल्यासंख्याता वायवः ।। विक्रियाशक्तियुक्तंगळप्प बादरपर्याप्ततेजस्कायिकजीवंगळु तम्म राशि वृंदावल्य ८ संख्येयभागमात्रमप्पुददर पुनरप्यसंख्येयभागप्रमितंगळ ८ बादरपर्याप्तवायुकायिकजीवं- ५ गळोळु विक्रियाशक्तियुक्तंगळु पल्यासंख्येयभागप्रमितंगळु अविक्रि = ५ "बादरतेऊवाऊपंचिदिय पुण्णगा विगुव्वंते" एंदिती तेजस्कायिकवायुकायिकंगळ्णे वैक्रियिकयोगकथनमुटप्पुरिदं । पल्लासंखेज्जायबिंदंगलगणिदसेढिमेत्ता ह। वेगुब्बियपंचक्खा भोगभुमा पुह विगुव्वंति ॥२६०॥ पल्यासंख्याताहतवृंदांगुलगुणितश्रेणिमात्रा खलु । वैक्रियिकपंचेंद्रिया भोगभौमाः पृथक् १. विगूव्वंति ॥ वैक्रियिकयोगिगळप्प पर्याप्तपंचेंद्रियतिय्यंचलं मनुष्यरु पल्यासंख्यातेकभागाभ्यस्तघनांगुल वादरपर्याप्ततेजस्कायिकजीवेषु विक्रियाशक्तियुक्ताः स्वराशेर्वृन्दावल्यसंख्येयभागमात्रस्य ८ पुनरसंख्येय . भागप्रमिता भवन्ति ।। बादरपर्याप्तवायुकायिकजीवेषु लोकसंख्येयभागमात्रेषु १ विक्रियाशक्तियुक्ताः पल्यासंख्येयभागप्रमिता भवन्ति ।। "बादरतेऊवाऊपंचिदियपुण्णगा विगुव्यंति" इत्यनेने अनयोक्रियिकयोगस्य अस्तित्वकथनात् ॥२५९॥ पर्याप्तपञ्चेन्द्रियतिर्यग्मनुष्येषु वैक्रियिकयोगिनः पल्यासंख्यातकभागाभ्यस्ता घनाङ्गुलगुणितजगच्छ्रेणिमात्रा आगे माधवचन्द्र विद्यदेव बारह गाथाओंसे योगमार्गणामें जीवोंकी संख्या कहते हैं ___ बादर पर्याप्तक तैजस्कायिक जीवोंमें विक्रिया शक्तिसे युक्त जीव अपनी राशि अर्थात् आवलीके घनके असंख्यातवें भागमें असंख्यातका भाग देनेसे जितना प्रमाण आता है,उतने २. है । तथा बादर पर्याप्त वायुकायिक जीवोंमें जो कि लोकके असंख्यातवें भागमात्र कहे हैं, विक्रिया शक्तिसे युक्त जीव पल्यके असंख्यातवें भागमात्र होते हैं। पीछे 'बादरवाऊतेऊ पंचिंदियपुण्णगाविगुठवंति' इस गाथाके द्वारा बादर पर्याप्त अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंके वैक्रियिक योगका सद्भाव कहा है ॥२५९॥ पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिथंच और मनुष्योंमें वैक्रियिककाय योगी पल्यके असंख्यातवें २५ १. ब नेन एषामपि वै-। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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