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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ४१३ र्मुहूर्तमि? चरमजीवगुणहानिस्थानांतरदोळावल्यसंख्यभागमात्रकालमिर्दु त्रिचरमद्विचरम समयोत्कृष्टसंक्लेशमं पोद्दि चरमद्विचरमसमयदोत्कृष्टयोगस्थानमं पोद्दि चरमसमयतद्भवस्थानादनातंगे कार्मणशरोरोत्कृष्टसंचयमक्कुं। यितौदारिकादिशरीरंगळुत्कृष्टसंचयसामग्रिविशेषमं पेन्दनंतरं। एक्कं समयपबद्धं बंधदि एक्कं उदेदि चरिमम्मि । गुणहाणीण दिवड्ढं समयपबद्ध हवे सत्तं ॥ एंदी गाथासूत्रमनाचायं त्रिकोणरचनेयं कटाक्षिसि पेळ्दन दोडे एकसमयदोनोर्वजीवनिंद कट्टल्पट्टोंदु समयप्रबद्वदस्थिति एप्पत्तुकोटिकोटिसागरोपममक्कुमदरोळाबाधावज्जितस्थितिप्रथमसमयं मोदल्गोंडु तदुत्कृष्टस्थितिचरमसमयपय्यंतमिई निषेकंगळु प्रतिसमयमेकैकनिषेकंगळे यथाक्रमदिनुदयिसला स्थितियनित कालमप्पत्तुकोटिसागरोपमकालकल्लदोंदु समयप्रबद्धमुदयिसि १० पोगददु कारणदिनेक्कं उदेदि एंदु प्रतिसमयमेकैकसमयप्रबद्धंगळं कटुवागळो दोंदु समयप्रबद्धगळुमुदयिसुवबिद'तु घटियिसुगुम दोडनादिबंधनिबंधनबद्धविवक्षितसमयप्रबद्धचरमनिषेक ।९। मुदयिसुवागळा समय प्रबद्धमं कट्टिदनंतरसमयदोळकट्टिद समयप्रबद्धद द्विचरमनिषेकमुदयिसुगुं। मध्यस्य उपरितनभागे अन्तर्मुहूर्त स्थित्वा चरमजीवगुणहानिस्थानान्तरे आवल्यसंख्येयभागमात्रकालं स्थित्वा त्रिचरमद्विचरमसमये उत्कृष्टसंक्लेशं संप्राप्य चरमद्विचरमसमये उत्कृष्टयोगस्थानं प्राप्य चरमसमयतद्भवस्थो १५ जायते तस्य कार्मणशरीरोत्कृष्टसंचयो भवति । एवमौदारिक[[दि-]शरीराणाम् उत्कृष्टसंचयसामग्रीविशेषः कथितः। ननु एकैकसमये जीवेन बद्धकैकसमयप्रबद्धस्य आबाधावजितस्वस्वस्थितिप्रथमसमयादारभ्य तच्चरमसमयपर्यन्तं प्रतिसमयमेकैकनिषेक एवोदेति कथमेकैकसमयप्रबद्ध उदेतीति प्रश्ने उच्यते-अनादिबन्धनिबन्धनबद्धविवक्षितसमयप्रबद्धचरमनिषेकः ९ उदेति । तदा तदनन्तरसमये बद्धसमयप्रबद्धस्य द्विचरमनिषेकः उदेति १०, तदनन्तर अन्तिम गुणहानिरूप योगस्थानमें अन्तर्मुहूर्त काल तक रहकर आयुके अन्तसे पहले तीसरे २० और दूसरे समयमें उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर अन्तिम समयमें तथा अन्तिमसे पहले समयमें उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त करके जब वह उस भवके अन्तिम समयमें स्थित होता है, तब उसके कार्मणशरीरका उत्कृष्ट संचय होता है। इस प्रकार औदारिक आदि शरीरोंके उत्कृष्ट संचयकी सामग्री विशेषका कथन किया। शंका-एक-एक समयमें जीवके द्वारा बांधे गये एक-एक समयप्रबद्धका आवाधारहित २५ अपनी-अपनी स्थितिके प्रथम समयसे लेकर उसके अन्तिम समय पर्यन्त प्रतिसमय एक-एक निषेकका ही उदय होता है । तब एक-एक समयप्रबद्धका उदय प्रतिसमय कहाँ हुआ ? समाधान-अनादि बन्धनके कारण बँधे विवक्षित समयप्रबद्धके अन्तिम निषेक ९ का उदय होता है। तब उसके अनन्तर समयमें बद्ध समयप्रबद्धका अन्तसे दूसरा निषेक १० का उदय होता है। उसके अनन्तर समयमें बद्ध समयप्रबद्धका अन्तसे तीसरा निषेक ३० १. ब स्थितः विरमद्विचरमसमये उत्कृष्टसंचयो भवति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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