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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ३८३ वैक्रियिकाद्युत्तरोत्तर शरीरसमयप्रबद्धवर्गणावगाहंगळरडुगळं पूर्वपूर्वतदवगाहनद्वयक्षेत्रंगळं नोडलु सूच्यंगुलासंख्येयभागमात्राऽसंख्येय गुणहीनंगळागुत्तं पोपवु। वै स ६॥ तद्वर्गणावगाह २२ aa ६ आहा । स । ।६ तद्वर्ग ६ ते स ख ६ २२२ २२२२२२२ २२२२ aaa paa aaaa aaaa तद्वग्गं का।स ख ख ६। तद्वरगणावगाह ६ २२२२२ २२२२२ २२२२२२ aaaaa aaaaa aaaaaa यीयर्थमने श्रीमाधवचंद्रविद्यदेवरु विशदं माडिदपरु । तस्समयबद्धवग्गण ओगाहो सूइअंगुलासंख । भागहिदबिंद अंगुलमुवरुवरि तेण भजिदकमा ।।२४८॥ तत्समयप्रबद्धवर्गणावगाहः सूच्यंगुलासंख्येयभागहृतवृंदांगुलमुपर्युपरि तेन भजितक्रमाः॥ आ समयप्रबद्धवर्गणावगाहंगळु सूच्यंगुलासंख्यातभागहृतधनांगुलमात्रंगळु। मेल आ भागभक्तं घनाङ्गुलप्रमितम् । औ व ६ । एवं वैक्रियिकाद्युत्तरोत्तरशरीरसमयप्रबद्धवर्गणावगाहनक्षेत्रे द्वे अपि १० २२ aa पूर्वपूर्वतत्क्षेत्राभ्यां सूच्यङ्गुलासंख्येयभागमात्रासंख्येयगुणहीने गच्छतः । वै स ।। ६ ।। ६ । आ । स । ।६ ।व।६ तैस। ख। ६ २२ २२२ २२२ २२ २२ २२ २२ aaa aaa aaaa aaaa व। ६ | का। स ।। ख ख ६। व । ६ ॥२४७॥ अमुमेवार्थ २२२२२ २२२२२ | २२२२२२ । श्रीमाधवचन्द्रविद्यदेवा aaaaa | მ მ მ მ მ მ მ მ მ მ მ | अपि कथयन्ति १५ पूर्वोक्तौदारिकादिशरीरसम्बन्धिसमयप्रबद्धतद्वर्गणानामवगाहनानि घनाङ्गलासंख्येयभागप्रमितान्यपि उपर्युपर्यसंख्यातगुणहीनक्रमाणि भवन्ति । तद्यथा-औदारिकशरीरसमयप्रबद्धस्यावगाहनक्षेत्रं सूच्यङ्गलासंख्येयसूच्यंगलके असंख्यातवें भागसे भाग दो, उतना है। इस प्रकार वैक्रियिक आदि उत्तरोत्तर शरीरोंके समयप्रबद्ध और वर्गणाके अवगाहन क्षेत्र दोनों भी पूर्व-पूर्व अपने क्षेत्रोंसे सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात गुणा हीन होते हैं। अर्थात् वैक्रियिकसे आहारककी, २० आहारकसे तेजसकी, तैजससे कार्मणकी समयप्रबद्ध और वर्गणाकी अवगाहना असंख्यातगुणी असंख्यातगुणी क्रमसे घटती हुई जानना ।।२४७॥ __ इसी बातको आगे माधवचन्द्र त्रैविद्यदेव भी कहते हैं पूर्वोक्त औदारिक आदि शरीर सम्बन्धी समयप्रबद्ध और उनकी वर्गणाओंकी अवगाहना घनांगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण होनेपर भी ऊपर-ऊपर क्रमसे असंख्यात २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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