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गो० जीवकाण्डे
इंतावासादिगळोळं प्रत्येकं त्र राशिकक्रमदिंद लब्धंगळ संख्यातलोकगुणाकारंगळनुळ्ळ मप्पुववर विन्यासमिदु स्कंधंगळु = अडरंगळु = = आवासंगळु = = = पुळवुगळ ⇒ a ॐ a = a = a बादरनिगोदशरीरंगळु sa=a5asa=0l
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जंबूद्वीप भरत कोशल साकेत तद्गृहादयो वा । स्कंधांडरावासपुळ विशरीराणि दृष्टांता ॥ स्कंधंगळगे जंबूद्वीपादिगळु दृष्टांतमंड रंग भरतादिक्षेत्र गळु दृष्टांतमावा संग कोसलादिदेशं दृष्टांतं पुळविगळणे साकेतादिनगरंगळु दृष्टांतं । बादरनिगोदशरीरंगळ तत् साकेता दिनगरंगळ गृहंगळु दृष्टांतं । वा शब्दमिवार्थमी पेद दृष्टांत तंतेयन्यंगळु दृष्टांतंगळ्
१० नडसल्पडुवुवु ।
जंबूदीवं भरहं कोसलसागेदतग्धराई वा ।
खंधंडर - आवासा - पुलविसरीराणि दिता ॥ १९५ ॥
लोकमात्रस्कन्धानां कति अण्डराः स्युः ? इति त्रैराशिकेन - प्र स्कं १, फ अं। इ स्कं । लब्धाण्डराः १५ असंख्यात लोक गुणितासंख्यात लोकमात्रा भवन्ति । एवमावासादिषु प्रत्येकं त्रैराशिकक्रमेण लब्धानामसंख्यातलोकगुणकाराणां विन्यासोऽयं स्कन्धाः पुलवयः a = a
गणिगोदसरीरे जीवा दव्वप्यमाणदो दिट्ठा । सिद्धेहि अनंतगुणा सव्वेण वितीदकालेण || १९६॥
एकनिगोदशरीरे जीवा द्रव्यप्रमाणतो दृष्टाः । सिद्धेभ्योऽनंतगुणाः सर्व्वस्मादप्यतीतकालात् ॥
अण्डराः = asal आवासाः = aamal वादरनिगोदशरीराणि aaa = a ॥ १९४॥ स्कन्धानां दृष्टान्ताः जम्बूद्वीपादयः । अण्डराणां भरतादिक्षेत्राणि । आवासानां कोशलादिदेशाः । पुलवीनां साकेतादिनगराणि । वादरनिगोदशरीराणां साकेतादिनगरगृहाणि । वा शब्दः इवार्थः । उक्तदृष्टान्तवदन्येऽपि दृष्टान्ता नेतव्याः ॥ १९५ ॥ ।
कारण ऊपरके भेद हैं। यदि एक-एक स्कन्धमें असंख्यात लोक मात्र अण्डर हैं, तब असंख्यात लोक मात्र स्कन्धों में कितने अण्डर हुए; इस प्रकार त्रैराशिक करनेपर असंख्यात लोकसे असंख्यात लोक प्रमाण अण्डर होते हैं । इसी तरह आवास आदिके सम्बन्धमें भी त्रैराशिक करने पर अण्डर से असंख्यात लोकगुणे आवास होते हैं । आवाससे असंख्यात २५ लोक गुणे पुलवी होते हैं, उनसे असंख्यात लोकगुणे बादर निगोद होते हैं || १९४ ||
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स्कन्धोंका दृष्टान्त जम्बूद्वीप आदि हैं । अण्डरोंका दृष्टान्त भरत आदि क्षेत्र हैं । आवासका दृष्टान्त कोशल आदि देश हैं । पुलवीका दृष्टान्त साकेत आदि नगर हैं और बादर निगोद शरीरोंका दृष्टान्त साकेत आदि नगरोंके घर हैं । 'वा' शब्द दृष्टान्तके अर्थ में है । अर्थात् जैसे मध्यलोकमें जम्बूद्वीप आदि द्वीप हैं, वैसे ही लोक में स्कन्ध है । जैसे एक ३० जम्बूद्वीपमें भरत आदि क्षेत्र हैं, वैसे ही स्कन्धमें अण्डर हैं । जैसे भरत क्षेत्रमें कोशल आदि देश हैं, वैसे ही अण्डर में आवास हैं। जैसे कोशल देशमें अयोध्या आदि नगर हैं, वैसे ही आवास में पुलवियाँ हैं । तथा जैसे अयोध्या में अनेक घर हैं, वैसे ही पुलवीमें बादर निगोद शरीर है। इसी तरह अन्य भी दृष्टान्त जानना ॥ १९५॥
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