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________________ वतत्वप्रदीपिका ३२३ यस्मिन्नेकस्मिन् शरीरे आवुदानोंदु निगोदशरीरदोळु यदा आगळोम्म एको जीवः ओंदु जोवनु स्वस्थितिक्षयवदिदं म्रियते सत्तुदादोडे तदा तस्मिन् शरीरे आगला निगोदशरीरदोळु समस्थितिकंगळप्पनंतजीवंगळ्गे मरणमोडनेयक्कु मावुदोंदु निगोदसरीरदोळागळोम्मयों दु जीवं प्रक्रामति पुटुगुमागळा निगोदशरीरदोळ समस्थितिकंगळप्पनंतजीवंगळ्गे प्रक्रमणमुत्पत्तियुमोडनेयक्कु मितुत्पत्तिमरणंगळ्गे समकालत्वमुं साधारणलक्षणं तोरल्पट्टदु। द्वितीयादिसमयोत्पन्नानंत- ५ जीवंगळ्गेयु स्वस्थितिक्षयदोलुमोडने मरणमरियल्पडुगुमितोंदु निगोदशरीरदोळ प्रतिसमयमनंतानंतजीवंगळ्गोडने मरणमुमोडनुत्पत्तियुमन्नेवरेगं संभविसुगुमन्नेवरमसंख्यातसागरोपमंगळ कोटिकोटिगळसंख्यातलोकमात्रसमयप्रमितंगळुत्कृष्टनिगोदकायस्थिति परिसमाप्तियक्कुं। इल्लि विशेषमुंटदावुदे दोर्ड ओंदु बादरनिगोदशरीरदोळु सूक्ष्मनिगोदशरीरदोळु मेणु अनंतसाधारणजीवंगळु केवलं पर्याप्तकंगळे पुटुवु मत्तमा ओंदु शरीरदोळे केवलमपर्याप्तकंगळे १० पुटुवुवु अल्लदे मिश्र गळु पुटुवुदिल्लक दोडे अवक्के समानकर्मोदयनियममप्पुदु कारणमागि एगस्स ओंदु साधारणजीवनकर्मादानशक्तिलक्षणयोगदिदं तगयल्पट्ट पुद्गलपिंडोपकारमनंतानंत साधारणजीवंगळ्गयुमाहारकनप्प तनगयुमनुग्रहणमक्कुं। मत्तमनंतानंतसाधारणजीवंगळ योगशक्ति यन्निगोदशरीरे यदा एको जीवः स्वस्थितिक्षयवशेन म्रियते तदा तन्निगोदशरीरे समस्थितिकाः अनन्तानन्ता जीवाः सहव म्रियन्ते । येन्निगोदशरीरे यदा एको जीवः प्रक्रामति-उत्पद्यते तदा तन्निगोदशरोरे १५ समस्थितिकाः-अनन्तानन्ता जीवाः सहैव प्रक्रामन्ति । एवमुत्पत्तिमरणयोः समकालत्वमपि साधारणलक्षणं प्रदर्शितं। द्वितीयादिसमयोत्पन्नानामनन्तानन्तजीवानामपि स्वस्थितिक्षये सहैव मरणं ज्ञातव्यं । एवमेकनिगोदशरीरे प्रतिसमयमनन्तानन्तजीवास्तावत्सहैव नियन्ते सहैवोत्पद्यन्ते यावदसंख्यातसागरोपमकोटीकोटिमात्री असंख्यातलोकमात्रसमयप्रमिता उत्कृष्टनिगोदकायस्थितिः परिसमाप्यते । अत्र विशेषोऽस्ति-स च कः ? एकबादरनिगोदशरीरे सूक्ष्मनिगोदशरोरे वा अनन्तानन्ताः साधारणजीवा केवलपर्याप्ता एवोत्पद्यन्ते पुनरपि २० एकशरीरे केवलमपर्याप्ता एवोत्पद्यन्ते न च मिश्रा उत्पद्यन्ते तेषां समानकर्मोदयनियमात् । एकस्य साधारण जिस निगोद शरीरमें जब एक जीव अपनी आयुके क्षय होनेसे मरता है, तभी उस निगोद शरीरमें समान आयुवाले अनन्तानन्त जीव एक साथ ही मरते हैं। जिस निगोद शरीरमें जब एक जीव उत्पन्न होता है, तब उस निगोद शरीरमें समान आयुवाले अनन्तानन्त जीव एक साथ ही उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार उत्पत्ति और मरणका समकालमें होना भी २५ साधारणका लक्षण कहा है। द्वितीय आदि समयोंमें उत्पन्न अनन्तानन्त जीवोंका भी अपनी आयु पूरी होनेपर एक साथ ही मरण जानना। इस प्रकार एक निगोद शरीरमें प्रतिसमय अनन्तानन्त जीव एक साथ ही मरते हैं और एक साथ ही उत्पन्न होते हैं। ऐसा तबतक होता रहता है, जबतक निगोदकी उत्कृष्ट कायस्थिति असंख्यात सागरोपम कोटि-कोटि मात्र जो कि असंख्यात लोक मात्र समय प्रमाण है, समाप्त हो। यहाँ कुछ विशेष कथन है-एक बादर निगोद शरीरमें या सूक्ष्म निगोद शरीर में अनन्तानन्त साधारण जीव या तो केवल पर्याप्त ही उत्पन्न होते हैं या एक शरीर में केवल अपर्याप्त ही उत्पन्न होते हैं। दोनों एक ही शरीरमें उत्पन्न नहीं होते, क्योंकि उनके एक समान कर्मके उदयका नियम है। एक साधारण जीवके कर्मोंको ग्रहण करनेकी शक्तिरूप योगके ३० १. यस्मिन्नि व। २. तस्मिन्नि ब। ३. णे द ब । ४. ते तेषां ब । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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