SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 379
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ३२१ पुदुगुमन्यपि वा परगे शरीरांतरव्यवस्थितनप्प जीवं स्वायुःक्षयवर्शाददं त्यक्तशरीरनागि बंदु स्वयोग्यमूलादिबीजंगळोळु प्रक्रामति पुदुगु मावु केलवु मूलादिगळु प्रतिष्ठितप्रत्येकशरीरत्व दिंद प्रसिद्धंगळ अवु प्रथमतायां स्वोत्पन्नप्रथमसमयं मोदगोंड यावदंतम्मुंहत्तं तावत्कालपर्यंतं साधारणजीवंर्गाळदमप्रतिष्ठितंगळे यवु । अनंतरं साधारणशरीरवनस्पतिस्वरूपनिरूपणमं गाथाचतुष्टर्यादं माडिदपं । साहारणोदएण णिगोदसरीरा हवंति सामण्णा । ते पुण दुविहा जीवा बादरसुहुमाति विष्णेया || १९१ ॥ साधारणोदयेन निगोदशरीरा भवंति सामान्याः । ते पुर्नाद्वविधाः जीवा बादरसूक्ष्मा इति विज्ञेयाः ॥ साधारण नामकर्मोदर्याददं समुत्पन्ननिगोदशरीर जीवंगळु सामान्यवनस्पतिजीवंगळवु । १० साधारण वनस्पतिळवे बुदत्थं । नि नियतां गां भूमि क्षेत्रमनंतानंतजीवानां ददातीति निगोदं । निगोदं शरीरं येषां ते निगोदशरीराः । ते पुनः साधारणवनस्पतिकायिकाः जीवाः बादराः सूक्ष्माश्च भवंति । एतेषां बादराणां सूक्ष्माणां च लक्षणं पूव्वोक्तमेवेति विज्ञेया भवंति । स्वायुःक्षयवशेन त्यक्तशरीरो भूत्वा आगत्य स्वयोग्यमूलादिबीजे प्रक्रामति । येऽपि च मूलकादयः प्रतिष्ठितप्रत्येकशरीरत्वेन प्रसिद्धाः तेऽपि खलु प्रथमतायां स्वोत्पन्नप्रथमसमये अन्तर्मुहूर्तकालं साधारणजोर्वैरप्रतिष्ठिता १५ एव भवन्ति ॥ १९०॥ साधारणनामकर्मोदयेन जीवा निगोदशरीरा भवन्ति । नि-नियतां गां-भूमि क्षेत्रं अनन्तानन्तजोवानां ददाति इति निगोदं । निगोदं शरीरं येषां ते निगोदशरीराः इति लक्षणसिद्धत्वात् । त एव सामान्याःसाधारणशरीरा जीवाः पुनः बादराः सूक्ष्माश्चेति द्विधा पूर्वोक्तलक्षणलक्षिता विज्ञेयाः ॥१९१॥ २० आयुके क्षय हो जानेसे वह शरीरको छोड़कर अपने योग्य मूल आदि बीज पर्यन्तमें उत्पन्न होता है । जो भी मूली आदि प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर रूपसे प्रतिबद्ध हैं, वे भी अपनी उत्पत्तिके प्रथम समय में अन्तर्मुहूर्त काल तक साधारण जीवोंसे अप्रतिष्ठित ही होते हैं ॥ १९०॥ ५ विशेषार्थ - मूलसे लेकर बीज पर्यन्त वनस्पतिमें जो जीव पहले था, उसकी आयु पूरी होने से मर गया । किन्तु उस वनस्पतिकी उत्पादन शक्ति नष्ट नहीं हुई है, तो बाह्य कारण २५ मिलने पर वही जीव जो पहले उसमें प्रत्येकशरीररूप में जीकर मर गया था, पुन: उसी मूलादि बीजको शरीर बनाकर उत्पन्न होता है अथवा यदि वह पूर्व शरीरका स्वामी जीव अन्यत्र उत्पन्न हो जाता है, तो अन्य जीव आकर उसमें उत्पन्न होता है । तथा जो प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति है, वह भी अपनी उत्पत्तिके प्रथम समय में या अन्तर्मुहूर्त कालतक अप्रतिष्ठित प्रत्येक रहती है । पीछे जब निगोद जीव उसके आश्रित हो जाते हैं, तब प्रतिष्ठित हो जाती है । साधारण नामकर्मके उदयसे जीव निगोद शरीरवाले होते हैं । 'नि' अर्थात् नियत गां अर्थात् भूमि, क्षेत्र या निवास अनन्तानन्त जीवोंको देता है, वह निगोद है । निगोद शरीर जिनका है, वे निगोद शरीर हैं। इस प्रकार लक्षणसे सिद्ध है । वही सामान्य अर्थात् साधारणशरीर होते हैं । उनके दो भेद हैं- बादर और सूक्ष्म । इनका लक्षण पहले कहा है ॥१९१॥ ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only ३० www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy