________________
३१.
गो० जीवकाण्डे इंतु भगवदर्हत्परमेश्वरचारुचरणारविदद्वंद्ववंदनानंदितपुण्यपुंजायमानश्रीमद्रायराजगुरु भूमंडलाचार्य्यमहावादवादीश्वररायवादिपितामहसकलविद्वज्जनचक्रर्वात श्रीमदभयसूरि सिद्धांतचक्रत्ति श्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट्टे श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसार कर्णाटकवृत्तिजीवतत्त्वप्रदीपिकयो जीवकांड विंशतिप्ररूपणंगळोळु सप्तमेंद्रियप्ररूपणाधिकारं लपितमायतु।
इत्याचार्य-श्रीनेमिचन्द्रविरचितायां गोम्मटसारापरनामपञ्चसंग्रहवृत्तौ तत्त्वप्रदीपिकाख्यां
जीवकाण्डे विंशतिप्ररूपणासु इन्द्रियमार्गणाप्ररूपणानाम सप्तमोऽधिकारः ॥७॥
इस प्रकार आचार्य नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अभयनन्दी सिद्धान्त चक्रवतीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमलरचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी माषा टीकामें जीवकाण्डकी बीस प्ररूपणाओंमें- इन्द्रिय प्ररूपणा
नामक सातवाँ महा अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org