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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका २२७ 'आउढराशि वारं ळोगे अण्णोण्ण संगुणे तेऊ' एंदु पेळ्दं । अंता चतुर्थवारं स्थापिसिद शलाकाराशिप्रमाणमप्प तेजस्कायिकान्योन्याभ्यस्तगुणकारशलाकारार्शाियद मेले असंख्यातवर्गस्थानंगळं नडदा तेजस्कायिकजीवराशिय वर्गशलाकाराशि पुट्टिल्लिदं मेलसंख्यातवर्गस्थानंगलं नडेदु तेजस्कायिकजीवराशियर्द्धच्छेदराशि पुट्टिदुल्लिदं मेलसंख्यातवर्गस्थानंगळं नडेदु प्रथममूळं पुट्टिदुदा प्रथममूलमनोम वर्गगोळत्तेजस्कायिक जीवराशि प्रमाणं पुट्टिदु- ५ दल्लिदं मेलसंख्यातवर्गस्थानंगळं नडेदु तेजस्कायस्थितिय वर्गशलाकाराशी पुट्टिदुदी तेजस्कायस्थिति एंबुदेन दोडन्यकायदत्तणिदं बंदु तेजस्कायंगोळु पुट्टिद जीवक्कुत्कृष्टदिदं तेजस्कायिकत्वमं पत्तुविडदिर्प कालम दितु पेळल्पटुदा तेजस्कायिकस्थितिवर्गशलाकाराशियिद मेलसंख्यातवर्गस्थानंगळं नडेदु अर्द्धच्छेदराशि पुट्टिदुल्लिदं मेलसंख्यातवर्गस्थानंगळं नडेदु प्रथममूलं पुट्टिदुददनोर्म वगंगोळ्ल्तेजस्कायिकस्थितिराशि पुट्टिदुल्लिदं मेलसंख्यातवर्गस्थानंगळं नडेदवधि निबद्ध क्षेत्रोत्कृष्टराशिय वर्गशलाकाराशि पुट्टिदुल्लिदं मेलसंख्यातवर्गस्थानंगळं नडेदु नडेदु मर्द्धच्छेद प्रथममूलंगळ्पुट्टिदुवा प्रथममूलमनाम्मे वगंगोळु त्तिरलवधि निबद्धक्षेत्रोस्कृष्टप्रमाणं पुटिदुल्लिदं मेलसंख्यातवर्गस्थानंगळं नडेदु नडेदु वर्गशलाकार्द्धच्छेदप्रथममूलंगळे यथाक्रदिदं पट्टिदुवा प्रथममूलमनोम्म वग्गंगोळलु स्थितिबंधाध्यवसाय राशिप्रमाणं पुट्टिदुदी स्थितिबंधाध्यवसायम बुदेन दोर्ड ज्ञानावरणादिकम्मंगळु ज्ञानाच्छादनादि तंतम्म स्वभावमक्कु १५ पत्तु विडदिर्प कालमुं स्थितिये बुदा स्थितिबंधकारणकषायपरिणामस्थानविकल्पराशिप्रमाणमें - अन्यकायादागत्य तेषत्पन्नस्य तेजस्कायिकत्वमत्यक्त्वा उत्कृष्टेन अवस्थानकालः । ततः असंख्यातवर्गस्थानानि गत्वा तदर्धच्छेदराशिः। ततः असंख्यातवर्गस्थानानि गत्वा प्रथममूलम् । तस्मिन्नेकवारं वगिते तेजस्कायिकस्थितिप्रमाणम् । ततोऽसंख्यातानि वर्गस्थानानि गत्वा गत्वा वर्गशलाकाराशिः अर्धच्छेदशलाकाराशिः प्रथममूलम् । तस्मिन्नेकवारं वगिते अवधिनिबद्धोत्कृष्टक्षेत्रम् । ततोऽसंख्यातानि वर्गस्थानानि गत्वा गत्वा वर्गशलाकाराशि- २० रर्धच्छेदराशिः प्रथममू लम् । तस्मिन्नेकवारं वगिते स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानानि । कानि तानि ? ज्ञानप्रच्छादनादिस्वभावेन कर्मणामवस्थितिकालात्मकस्थितिबन्धनिबन्धनानि । ततोऽसंख्यातानि वर्गस्थानानि गत्वा गत्वा वर्गशलाकाराशिः अर्धच्छेदराशिः प्रथममूलं । तस्मिन्नेकवारं वगिते अनुभागबन्धाध्यवसायस्थानानि । कानि तैजस्कायिक स्थितिसे असंख्यात वर्गस्थान जाकर उसकी अर्द्धच्छेदराशि होती है। उससे असंख्यात वर्गस्थान जाकर प्रथम वर्गमूल होता है। उसमें एक बार वर्ग करनेपर २५ तैजस्कायिक स्थितिका प्रमाण होता है। उससे असंख्यात-असंख्यात वर्गस्थान जा-जाकर अवधिज्ञान सम्बन्धी उत्कृष्ट क्षेत्रकी वर्गशलाकाराशि, अर्द्धच्छेदराशि और प्रथम वर्गमूल होता है। उसमें एक बार वग करनेपर अवधिज्ञानसे सम्बद्ध उत्कृष्ट क्षेत्र होता है । उससे असंख्यात-असंख्यात वर्गस्थान जा-जाकर स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थानोंकी वर्गशलाका, अर्द्धच्छेद और प्रथम वर्गमूल होता है। उसका एक बार वर्ग करनेपर स्थितिबन्धाध्यवसाय ३० स्थानोंका प्रमाण होता है। शंका-स्थितिबन्धाध्यवसायस्थान किसे कहते हैं ? ___ समाधान-ज्ञानावरण आदि कर्मोंका ज्ञानको आवरण करना आदि स्वभाव रूपसे रहनेके कालका नाम तो स्थिति है और स्थितिबन्धके कारणभूत परिणामोंके स्थानोंको स्थितिबन्धाध्यवसायस्थान कहते हैं । उससे आगे असंख्यात-असंख्यात वर्गस्थान जा-जाकर । अनुभागबन्ध्याध्यवसायस्थानोंकी वर्गशलाका, अर्धच्छेद और प्रथम वर्गमूल होता है। उसमें एक बार वर्ग करनेपर अनुभागबन्धाध्यवसायस्थान होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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