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गो० जीवकाण्डे कूडुत्तिर = १६ ला येडेयोळु नाल्कुं राशिगळुमसंख्यातलोकंगळाळापमात्रदिंदप्पुवुवितु नडसल्पडुवुवेन्नेवरं द्वितीयवारं स्थापिसिद शलाकाराशि निष्ठापिसल्पडुदन्नेवरं तदा तद्राशिचतुष्टयमसंख्यात लोकंगळु । मत्तमा तत्रोत्पन्नराशियं त्रिप्रतीक माडि श = वि = a दे = 3 विरलन
राशियं विरलिसि रूपं प्रति देयमनदने कोटु वगितसंवर्ग माडि तृतीयशलाकाराशियोळोदु ५ रूप कळेयल्पडुगुं। श= a तदा राशिचतुष्टयमुमसंख्यातलोकंगळु इन्ती क्रमदिदं नेतव्यमक्कु
मन्नेवरं तृतीयवारं स्थापिसि शलाकाराशि परिसमाप्तमक्कु मन्नेवरं तदान्योन्याभ्यस्तगुणकारशलाकाराशियं वर्गशलाकाराशियुमर्द्धच्छेदराशियं लब्धराशियुमेंबी राशिचतुष्टयमुं तद्योग्यासंख्यातलोकंगळ ।
__ मत्तमा तत्रोत्पन्न महाराशियं त्रिप्रतीक माडि श= a वि = 2 दे = a विरलनराशियं १० विरलिसि रूपं प्रति देयमनदने कोटु वगितसंवर्गमं माडि चतुर्थवारशलाकाराशियोको दु
रूपं कळेयल्पडुगुमिते पुनः पुनं माडि नडेसल्पडुवुदेन्नेवरं अतिक्रांतान्योन्याभ्यस्तगुणकारशलाकगलिदं परिहीनमप्प चतुर्थवारं स्थापितान्योन्याभ्यस्तगुणकारशलाकाराशि परिसमाप्तियक्कुमन्नेवरं।
तदा तेजस्कायिक जीवराशिप्रमाणंमप्पलब्धराशि पुटुगुं। ईयर्थमनाचार्य मनदोलिरिसि :
आलापतः असंख्यातलोका असंख्यातलोका भवन्ति । एवं गत्वा द्वितीयवारनिष्ठापितशलाकाराशिं निष्ठापयेत् । पुनः तत्रोत्पन्नराशि त्रिः प्रतिकं कृत्वा प्राग्वत इमं तृतीयवारस्थापितशलाकाराशिं निष्ठापयेत् । पुनः तत्रोत्पन्नमहाराशि प्राग्वत त्रिःप्रतिकं कृत्वा अतीतगणकारशलाकाराशित्रयहीनोयं चतुर्थवारस्थापितशलाकाराशिनिष्ठाप्यते । तदा तेजस्कायिकजीवराशिरुत्पद्यते । एतद्दष्टा....
'आउढरासिवारं लोगे अण्णोण्णसंगणे तेऊ' इत्युक्तमाचार्यैः । ततोऽसंख्यातदर्गस्थानानि गत्वा तेजस्कायिकस्थितेर्वर्गशलाकाराशिः । का तत्स्थितिः ?
शलाका राशिको भी समाप्त करके जो राशि उत्पन्न हो,उसी प्रमाण विरलन देय और शलाका राशि स्थापित करके, इस चौथी बार स्थापित की गयी शलाकाराशिमें-से पहले कही तीन गुणकार शलाकाराशिके प्रमाणको कम करके जो शेष रहे , उतनी शलाकाराशिमें-से पूर्वोक्त
प्रकारसे एक-एक कम करते जब वह समाप्त हो तब जो राशि उत्पन्न हो,वही अग्निकायिक २५ जीवोंकी राशि है। यह देखकर ही आचार्योंने कहा है कि साढ़े तीन बारकी शलाका राशि
रूपसे लोकको परस्परमें गुणा करनेपर तैजस्कायिक जीवराशि होती है। इस प्रकार अग्निकायिक जीवराशिकी गुणकार शलाकासे आगे असंख्यात-असंख्यात वगेस्थान जाकर उसकी वर्गशलाका, अर्द्धच्छेदराशि और प्रथम वर्गमूल होता है। उसका एक बार वर्ग करनेपर
तैजस्कायिक जीवोंका प्रमाण होता है। उससे असंख्यात-असंख्यात वर्गस्थान जाकर ३० तैजस्कायिककी स्थितिकी वर्गशलाका, अर्द्धच्छेद और प्रथम वर्गमूल होता है।
शंका-तैजस्कायिक स्थिति किसे कहते हैं ?
समाधान-अन्यकायसे आकर तैजस्कायमें जीव उत्पन्न हो। और तेजस्कायको न छोड़कर उत्कृष्ट काल तक तैजस्कायमें ही जन्म लेता रहे। वही काल तैजस्कायिक
स्थिति है। ३५ १. म डुवन्ने ।
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