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________________ HAMARoon २१८ गो० जीवकाण्डे काशप्रदेशप्रमाणं पुट्टिदुदनोर्म वग्गिसिदोडे प्रतराकाशप्रदेशप्रमाणं पुट्टिदुल्लिदं मेलनंतानंतवर्गस्थानंगळं नडेदु धमधिर्मद्रव्यंगळ गुरुलघुगुणाविभागप्रतिच्छेदप्रचयप्रमाणं पुट्टिदुल्लिदत्तलुमनंतानंतवर्गस्थानंगळ्नडदुमेकजीवद्रव्यागुरुलघुगुणाविभागप्रतिच्छेदनिवहप्रमाणं पुट्टिदुल्लिदं मेलनंतानंतवर्गस्थानंगळं नडदु सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तकजघन्यज्ञानाविभागप्रतिच्छेदसमूहप्रमाणं ५ पुट्टिदुल्लिदं मेलनंतानन्तवर्गस्थानंगळ्नडेदु जघन्यक्षायिकलब्ध्यविभागप्रतिच्छेदकलापप्रमाणं पुट्टिदुल्लिदं मेलनंतानंतवर्गस्थानंगळं नडेदु केवलज्ञानवर्गशलाकाराशि पुट्टिदुल्लिदं मेलनंतानंतवर्गस्थानंगळं नडेदर्द्धच्छेदराशिप्रमाणं पुट्टिदुल्लिदं मेलनंतानंतवर्गस्थानंगळं नडदष्टममूलं पुट्टिदुददनोम्में वग्गिसिर्दाडेळेनय मूल पुट्टिदुदनोम्मे वगिसलु षष्ठमूलं पुट्टिदुददनाम वग्गिसल् पंचममूलं पुट्टिदुददनाम्मे वग्गिसिदोडे चतुर्थमूलं पुट्टिदुददनोम्में वर्गगोळल् तृतीयमूलं पुट्टिदुद१० दनाम्मे वगंगोळल् द्वितीयमूलं पुट्टिदुददनाम वग्गिसिदोडे प्रथममूलं पुट्टिदुददनोम्में वग्गिसि दोडे गुणपर्यायवद्रव्यमेंदु द्रव्यगुणंगळ्गज्जवृत्तिलक्षणाविनाभावमुंप्पुरिदं त्रिलोकोदरवत्ति त्रिकालगोचरजीवादिपदार्थसावभासिकेवलज्ञानदिवाकरप्रभाप्रतिपक्षकर्मनिरवशेषक्षयदिनभि - व्यक्तिगतसमस्ताविभागप्रतिच्छेदनिकुरुंबप्रमाणमप्प सर्वोत्कृष्टभावप्रमाणं पुटुगुमिदक्कुत्कृष्टक्षा यिकलब्धि येब पसरुमक्कं। १५ प्रतिच्छेदराशिः । ततोऽनन्तानन्तवर्गस्थानानि गत्वा सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तकजघन्यज्ञानाविभागप्रतिच्छेदसमुह राशिः । ततोऽनन्तानन्तवर्गस्थानानि गत्वा जघन्यक्षायिकलब्ध्यविभागप्रतिच्छेदकलापराशिः । ततोऽनन्तानन्तवर्गस्थानानि गत्वा केवलज्ञानवर्गशलाकाराशिः। ततोऽनन्तानन्तवर्गस्थानानि गत्वा तस्यार्धच्छेदशलाकाराशिः । ततोऽनन्तानन्तवर्गस्थानानि गत्वा तस्याष्टमवर्गमलं। तस्मिन्नेकवारं वगिते सप्तवर्गमलं । तस्मिन्नेकवारं वगिते षष्ठवर्गमूलम् । तस्मिन्नेकवारं वगिते पञ्चमवर्गमूलम् । तस्मिन्नेकवारं वगिते चतुर्थवर्गमूलम् । तस्मिन्नेकवारं वगिते तृतीयवर्गमूलम् । तस्मिन्नेकवारं वगिते द्वितीयवर्गमूलम् । तस्मिन्नेकवारं वगिते प्रथमवर्गमूलम् । तस्मिन्नेकवारं वगिते गुणपर्ययवत् त्रिलोकोदरवर्तित्रिकालगोचरजीवादिपदार्थसार्थावभासिकेवलज्ञानदिवाकरप्रभाप्रतिच्छेदकी राशि होती है। उससे अनन्तानन्त वर्गस्थान जाकर एक जीव द्रव्यके अगुरुलघु गुणके अविभाग प्रतिच्छेदोंकी राशि आती है। उससे अनन्तानन्त वर्गस्थान जाकर सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तकके जघन्य ज्ञानके अविभाग प्रतिच्छेद समूहकी राशि उत्पन्न २५ होती है। उससे अनन्तानन्त वर्गस्थान जाकर जघन्य क्षायिक लब्धिके अविभाग प्रतिच्छेदके समूहकी राशि आती है। उससे अनन्तानन्त वर्गस्थान जाकर केवलज्ञानकी वर्गशलाका राशि आती है। उससे अनन्तानन्त वर्गस्थान जाकर केवलज्ञानकी अर्द्धच्छेदराशि आती है। उससे अनन्तानन्त वर्गस्थान जाकर केवलज्ञानका अष्टम वर्गमूल आता है। उसके एक बार वर्ग करनेपर सप्तम वर्गमूल आता है । उसके एक बार वर्ग करनेपर छठा वर्गमूल आता है। ३० उसका एक बार वर्ग करनेपर पाँचवाँ वर्गमूल आता है । उसका एक बार वर्ग करनेपर चतुर्थ वर्गमूल आता है। उसका एक बार वर्ग करनेपर तृतीय वर्गमूल आता है। उसका एक बार वर्ग करनेपर द्वितीय वर्गमूल आता है। उसका एक बार वर्ग करनेपर प्रथम वर्गमूल आता है। उसका एक बार वर्ग करनेपर गुणपर्यायसे संयुक्त तीनों लोकों और तीन कालोंके जीवादि पदार्थोंके समूहके प्रकाशक केवलज्ञानरूपी सूर्यके प्रतिपक्षी कर्मों के सर्वथा विनाशसे ३५ प्रकट हुए समस्त अविभाग प्रतिच्छेदोंके समूहात्मक भावप्रमाण उत्पन्न होता है। यही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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