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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका २११ अनवस्थाकुंडंगळेगे नववर्गमात्रंगळगलागळु महाशलाकाकुंडदोळगे नवमात्रसर्षपंळ प्रक्षेपिसुत्तिरलेनितु मनवस्थाकुंडंगठप्पुवनलु प्र१। फल १९ = १९। इ। १९ = समस्तानवस्थाकंडंगळिनितु १९ = १९= १९= नडदु कडेयदे बंदर्तमी जघन्यपरिमितासंख्यातराशिगे संदृष्टि १६ । ई राशिय मेलेकाये. कोत्तर क्रमदिदं परिमितासंख्यातमध्यमविकल्पंगळ्नडेववा परीतासंख्यातजघन्यराशियं १६ विरळिसि रूपं प्रति तद्राशियन कोटु संगुणिसल्पडुत्तिरलु लब्धराशियुक्तासंख्यातजघन्यमक्कुमिदक्के ५ संदृष्टि २। ई राशिये प्रसिद्धमप्पावळिये बदक्कुं। ई राशियोळोंदु रूपं कळेदोडे परिमितासंख्यातो त्कृष्टमक्कु । २। मत्तमावलिय मेलेकायेकोत्तरक्रमदि पेचे नडेव राशिगळु युक्तासंख्यातमध्यमविकल्पंगळप्पुवा युक्तासंख्यातजघन्यराशियं वगंगोंडडे द्विकवारासंख्यातजघन्यराशियक्कुमदक्के संदृष्टि ४। ई राशियोळोदु रूपं कळ दोडे युक्तासंख्यातोत्कृष्टराशिप्रमाणमक्कु ४-१ मा द्विकवारासंख्यातजघन्यराशिय मेलेकायेकोत्तरकदिदं पेच्चि नडेव राशिगळु दिकवारासंख्यात १० मध्यमविकल्पंगळप्पुवंता द्विकवारासंख्यातजघन्यराशियं शलाका विरलन देयमदु मूरडयोक्रमदिदं स्थापिसि । श ४ । वि ४ । दे ४। द्वितीयविरलनराशियं विरलिसि रूपं प्रतिदेय राशियं जघन्यपरीतानन्तपर्यन्तं एकाद्यकोत्तरक्रमेण मध्यमान द्विकवारासंख्यातविकल्पान जानन् जघन्यद्विकवारासंख्यातं शलाकाविरलनदेयरूपेण संस्थाप्य श ४ । वि ४ । दे ४ । विरलनराशि विरलयित्वा रूपं प्रति देयराशि दत्त्वा - २० संख्यात होता है । उसमें एक कम करनेपर उत्कृष्ट यक्तासंख्यात होता है । जघन्य असंख्याता- १५ संख्यातके ऊपर एक-एक बढ़ते हुए एक कम उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात पर्यन्त मध्यम असंख्यातासंख्यातके भेद होते हैं। एक कम जघन्य परीतानन्त प्रमाण उत्कृष्ट असंख्या संख्यात होता है। अब जघन्य परीतानन्तको कहते हैं-जघन्य असंख्यातासंख्यात राशिको शलाका विरलन और देय राशिके रूपमें तीन जगह स्थापित करें। विरलन राशिका विरलन करके अर्थात् जघन्य असंख्यातासंख्यातको अलग-अलग एक-एकके रूपमें फैलाकर लिखो और उनके ऊपर देय राशिको स्थापित करो। अर्थात् जघन्य असंख्यातासंख्यातका जितना प्रमाण है, उतनी जगह जघन्य असंख्यातासंख्यातको रखकर परस्परमें एक दूसरेसे गुणा करो। और एक बार गुणा करनेपर जघन्य असंख्यातासंख्यात प्रमाण शलाका राशिमें-से एक कम करो। ऐसा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो,उतनी ही विरलन और देयराशि स्थापित करो। विरलन । राशिका विरलन करके देयराशिको एक-एकके ऊपर स्थापित करके परस्परमें गुणा करो । और शलाकाराशिमें-से एक और घटा दें। ऐसा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो,पुनः उस राशि प्रमाण विरलन और देयराशि स्थापित करके विरलन राशिको एक-एकके रूपमें विरलित करके प्रत्येकपर देयराशि देकर परस्परमें गुणा करो और शलाका राशिमें-से पुनः एक कम करो । ऐसा करते-करते जब प्रथम बार स्थापित जघन्य असंख्यातासंख्यात प्रमाण शलाका राशि सब समाप्त हो जावे,तब जो राशि उत्पन्न हो,उतने ही परिमाणको लिये शलाका विरलन और देयराशि स्थापित करो। विरलन राशिका विरलन करके देयराशिको प्रत्येकपर देकर परस्परमें गुणा करो और शलाका राशिमें-से एक कम करो। ऐसा करनेसे जो राशि उत्पन्न हुई,उतनी ही विरलन और देयराशि स्थापित करके विरलन राशिका विरलन करके देयराशिको उसपर देकर परस्परमें गुणा करो और शलाका राशिमें से एक कम करो । ऐसा करते करते ३५ ३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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