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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका २०९ गठनोळकोड सूचीव्यासमं तंदु सहस्रयोजनोत्सेधमनुळ्ळ द्वितीयानवस्थितकुंडम शिखाफलसहितमागि तुंबि । तुबित्तेंदु शलाकाकुंडदोळु बेरेरडु सर्षपंगळं कल्पिसि मोदलोंदु मनिगलिनोंदुमनितेरडुमं हाइक्कि मत्ता द्वितीयानवस्थितकुंडसर्षपंगळं मुंनिनंते मुंदण द्वीपक्कों दं समुद्रक्कोंदं कुडुत्तं पोगि यावेडयोळा सर्षपंगळ्समाप्तंगळक्कं अदू गुडि पेरगण समस्तद्वीपसमुद्रंगळनोलकोंड सूचीव्यासमं तंदु सहस्रयोजनोत्सेधमप्प तृतीयानवस्थितकुंडम शिखाफलं बेरसुतुंवि तुंबित्तेंदु मुन्निन शलाकाकुंडदोळ्मत्तोंदु सर्षपमं बेरोदं कल्पिसि हाइक्किलल्लिमूरु सर्षपंगळक्कुल्लिदं बळिका तृतीयानवस्थाकुंडसर्षपंगळु मुन्निनंत मुंदण द्वीपसमुद्रगळिगत्तुपरिसमाप्तमादुदु मदिल्गोंडु परगण द्वीपसमुद्रंगळनितुमनोळकोंडु सूचीव्यासमं तंदु सहस्रयोजनोत्सेधमप्प चतुझ्नवास्थितकंडम सर्षपंगळ शिखिबेरसु तुंबितुंबितेंदु मत्तोंदु सर्षपमं बेरोंदं कल्पिसि शलाकाकुंडदोळु हाइक्कलद् कूडि नाल्कु शलाकगळप्पुर्विती क्रमदिंदनवस्थाकुंडगळं नडसि नडसि तुंबि तुंबितेंदोंदु सर्षपंगळं १० हाइक्कुत्तं बरला शलाकाकुंडमुमा अनवस्थाकुंडमु मोदले तुंबुगुमंतु तुंबुतिरलु शलाकाकुंडं तुंबिदुदेंदु प्रतिशलाकाकंडदोळु बेरोंदु सर्षपमं कल्पिसि हाकि शलाकाकुंडम बळिकय्दु मुन्निनंतयनवस्था कुंडंगळं नडसि तुंबि तंबि शलाकाकुंडमुमं द्वितीयवारमुं तुंबि प्रतिशलाकाकुंडदोमुन्निनंत बेरोंदु देवो वा गृहीत्वा जम्बूद्वीपादिद्वीपसमुद्रेषु एकैकस्मिन् दत्ते यत्र द्वीपे समुद्रे वा परिसमाप्यन्ते तावद्द्वीपसमुद्रसूचीव्यासं पूर्वोक्तागाधं द्वितीयमनवस्थाकुण्डं कृत्वा सशिखं सर्षपैर्भूत्वा शलाकाकुण्डे अपरं सर्षपं निक्षिपेत् । १५ तत्कुण्डसर्षपान् तदग्रतनद्वीपसमुद्रेषु एकैकं दत्वा तत्सहितपूर्वद्वीपसमुद्रव्यासं प्रागुक्ता गाधं तृतीयमनवस्थाकुण्डं कृत्वा सर्षपैः सशिखं भृत्वा प्राक्तनशलाकाकुण्डे अपरं सर्षपं निक्षिपेत् । अनेन क्रमेण प्रागुक्तैकनवाद्यङ्ककृतसंख्यामात्रेषु अनवस्थाकुण्डेषु गतेषु शलाकाकुण्डं सशिखं भ्रियते तदा प्रतिशलाकाकुण्डे एकं सर्षपं निक्षिपेत् । पुनः शलाकाकुण्डं रिक्तयित्वा पुनस्तावत्सु अनवस्थाकुण्डेषु गतेषु शलाकाकुण्डं भ्रियते तदा प्रतिशलाकाकुण्डे अपरं सर्षपं निक्षिपेत् । अनेन क्रमेणैकनवाद्यङ्कवर्गमात्रेषु अनवस्थाकुण्डेषु गतेषु प्रतिशलाकाकुण्डमपि भ्रियते २० मनुष्य अपनी बुद्धिके द्वारा अथवा देव ग्रहण करके जम्बूद्वीपसे लेकर प्रत्येक द्वीप और समुद्र में एक-एक सरसों क्षेपण करें। ऐसा करनेपर जिस द्वीप या समुद्र में सरसों समाप्त हों, उतने द्वीप समदोंके सचीव्यास प्रमाण चौडा तथा एक हजार योजन गहरा दसरा अनवस्था कुण्ड करके उसे भी पूर्ववत् शिखा पर्यन्त सरसोंसे भरकर शलाका कुण्डमें दूसरी बार एक सरसों क्षेपण करें । उस कुण्डके सरसोंको उससे आगेके द्वीपसमुद्रोंमें एक-एक सरसों क्षेपण करने. २५ पर जिस द्वीप या समुद्रमें वे सरसों समाप्त हों, वहाँ तकके समस्त पूर्व द्वीपसमुद्रोंके व्यास प्रमाण चौड़ा और एक हजार योजन गहरा तीसरा अनवस्था कुण्ड करके उसे शिखा तक सरसोंसे भरकर पूर्वोक्तं शलाका कुण्डमें तीसरी बार एक सरसों क्षेपण करें । पुनः उसी प्रकार करें । इस क्रमसे पूर्वोक्त एक नौ आदि अंकोंकी संख्यामात्र अनवस्था कुण्डोंके होनेपर शलाका कुण्ड शिखा पर्यन्त भरता है। शलाका कुण्डके भरनेपर प्रतिशलाकाकुण्डमें एक ३० सरसों क्षेपण करें। पुनः शलाकाकुण्डको खाली करके उसी तरह अनवस्था कुण्डके द्वारा उसे भरना चाहिए। उक्त एक नौ आदि अंक प्रमाण अनवस्थाकुण्डोंके होनेपर शलाका कुण्ड भरता है। उसके भरनेपर प्रतिशलाका कुण्डमें पुनः एक सरसों क्षेपण करें। इस प्रकार क्रमसे एक नौ आदि अंकोंके वर्ग प्रमाण अनवस्था कुण्डोंके होनेपर प्रतिशलाका कुण्ड भी भर जाता है। प्रतिशलाका कुण्डके भरनेपर महाशलाका कुण्डमें अन्य सरसों क्षेपण करें। इस ३५ १. क हाकि । २. म°बिदुदेंदु । २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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