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________________ १८६ गो० जीवकाण्डे ई जघन्यराशिय ४८०० नी भागहारदिदं ४८०० भागिसि बंद लब्धं ४८०० हारस्य हारो गुण ४८०० ३०१ कोंशराशे : एंदी भिन्नगणिताश्रयदिदं अवक्तव्यभागवृद्धिय प्रथमावगाहनविकल्प ३०१ मथसंदृष्टियो मिते योजिसिलिंतुटक्कु मी प्रकादिदं चरमावक्तव्यभागवृद्धिस्थानावसानं स्थानंगळुमं तंदुकोवुदु । मत्तमा अवक्तव्यभागवृद्धिय चरमावगाहनस्थानदोळोंदु रूपं निक्षेपिसुत्तिरल्संख्यातभागवृद्धिय प्रथमावगाहनस्थानमक्कुं ज मेले अल्लिदत्तलेकैकप्रदेशपरिवृद्धिक्रमदिंदमवगाहनस्थानंगळासंख्यातंगळ्नडदु। अवरद्धे अवरुवरि उड्ढे तव्यड्ढि परिसमत्ती हु । रूवे तदुवरि उड्ढे होदि अवत्तव्वपढमपदं ।।१०६।। अवरा॰ अवरोपरि वृद्धे तवृद्धिपरिसमाप्तिः खलु । रूपे तदुपरि वृद्ध भवत्यवक्तव्यप्रथमपदं ॥ जघन्यावगाहनाद्ध ज जघन्यावगाहनद मेले पेर्चुत्तिरलु संख्यातभागवृद्धिचरमावगाहनस्थानमक्कु ज ०००० ज मी संख्यातभागवृद्धिस्थानंगळेनितक्कुमदडे आदी ज अंते ज सुद्धे १५ १५ २ कोशराशेरितिभिन्नगणिताश्रयेण ४८०० अनेन भागहारेण ४८०० भक्ते सति लब्धं ४८०० हारस्य हारो ३०१ ४८०० ३०१ तदवक्तव्यभागवृद्ध : प्रथमावगाह्नविकल्पः ३०१ स्यात् अर्थसंदृष्टावप्येवमेव योजयितव्यं । अनेन क्रमेण चरमावक्तव्यभागवृद्धिस्थानावसानस्थानान्यानेतव्यानि । पुनस्तदवक्तव्यभागवृद्धेश्वरमावगाहनस्थाने एकरूपे युते सति संख्यातभागवृद्धः प्रथमावगाहनस्थानं स्यात् । ज । तदग्रे एकैकप्रदेशपरिवृद्धिक्रमणावगाहनस्थानान्यसंख्यातानि गच्छन्ति ॥१०५।। जघन्यावगाहनार्धे ज जघन्यावगाहनस्योपरि वृद्धे सति संख्यातभागवृद्धिचरमावगाहनस्थानं स्यात् २ ज ० ० ० ज एतानि संख्यातभागवृद्धिस्थानानि कति ? इति चेत् आदी ज अन्ते ज सुद्धे ज १५-२ १५२ १५ २ २ १५. २० हना विकल्प होता है। अर्थ संदृष्टि में भी इसी प्रकार लगाना चाहिए । इसी क्रमसे अन्तिम अवक्तव्य भागवृद्धिके अन्तिम स्थान पर्यन्त लाना चाहिए। पुनः उस अवक्तव्य भागवृद्धिके अन्तिम अवगाहनास्थानमें एक जोड़नेपर संख्यात भागवृद्धिका प्रथम अवगाहना स्थान होता है। उससे आगे एक-एक प्रदेशवृद्धिके क्रमसे असंख्यात अवगाहना स्थान प्राप्त होते हैं ॥१०५॥ जघन्य अवगाहनाका आधा जघन्य अवगाहनाके ऊपर बढ़ानेपर संख्यात भागवृद्धिका अन्तिम अवगाहना स्थान होता है। ये संख्यात भागवृद्धि के स्थान कितने हैं ? यह १. म कोंन्दु । २. म तस्थानंगलु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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