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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १८३ २ ज । ज । २ ज । ३ ज । ४ ज । ५ १ ज। ०००। ज। १ ० ज ००० ज। मक्कू ज ००० । ज १६ १६ मीयसंख्यातभागवृद्धिस्थानं गळे नितादुवे दोर्ड आदि ज अंते १६ सुद्धे १६ वढिहिदे १६ । १ रूपसंजुदे ठाणा १६ । १ एंदिनितु स्थानविकल्पंगळप्पुवु । तस्सुवरि इगिपदेसे जुदे अवत्तव्वभागपारंभो। वरसंखमवहिदवरे रूऊणे अवर उवरि जुदे ॥१०४॥ तस्योपरि एकप्रदेशे युते अवक्तव्यभागप्रारंभः। वरसंख्यापहृतावरे रूपोनेवरोपरि युते ॥ मुन्निन असंख्यातभागवृद्धिय चरमावगाहनस्थानदोनोंदु प्रदेशमुं कूडुत्तिरलुमवक्तव्यभागवृद्धिप्रारंभावगाहनस्थानमक्कु ज मिल्लिदं मुंदै प्रदेशोत्तरवृद्धि दिदमवक्तव्यभागवृद्धिस्थानंगळनडे ज १६ अस्य जघन्यस्योपरि यते सति ज अपवत्यं ज स १६ १६ १६ राशि: असंख्यातभागवद्धधवगाहनस्थानानां r-m---- - १ १ अवसानस्थानं स्यात एतानि । ज । ज । ज । ज । ज । ज । ००० ज ज । ००० ज असंख्यातभाग-१० वृद्धिस्थानानि । तु आदी ज, अन्ते ज शुद्ध ज वढिहिदे ज रूवसंजुदे ज ठाणेत्येतावति भवन्ति ॥१०३।। प्राक्तनासंख्यातभागवृद्धश्चरमावगाहनस्थाने तु एकप्रदेशे युते सति अवक्तव्यभागवद्धिप्रारम्भाव गाहनस्थानं स्यात् ज तदने प्रदेशोत्तरवृद्धिक्रमेण अवक्तव्यभागवृद्धिस्थानान्यसंख्यातान्यतीत्य एकत्र स्थाने १५ अन्तिम स्थान होता है। इन सब असंख्यात भागवृद्धिके स्थानोंकी संख्या 'आदी अंते सुद्धे वडिहिदे रूव संजदे ठाणा'. इस करण सत्रके अनसार असंख्यात भागवदिरूप अवग आदिस्थानके प्रदेशोंके परिमाणको अन्तिम स्थानके प्रदेश परिमाणमें-से घटाकर उसमें एकसे भाग देनेपर उतने ही रहे, उनमें एक जोड़नेपर जितनी संख्या होती है, उतने ही असंख्यात भागवृद्धिके स्थान जानना ॥१०३॥ पूर्वोक्त असंख्यात भागवृद्धिके अन्तिम अवगाहना स्थानमें एक प्रदेश जोड़नेपर अवक्तव्य भागवृद्धिका प्रारम्भरूप अवगाहना स्थान होता है। उससे आगे क्रमसे एक-एक २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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