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________________ गोम्मटसार जीवकाण्ड भी प्राचीन है। धवला में पंचसंग्रह की बहुत-सी गाथाएँ उद्धृत हैं। वे गाथाएँ धवला में जिस क्रम से उद्धृत हैं, प्रायः उसी क्रम से पंचसंग्रह में पायी जाती हैं। अधिकांश गाथाएँ पंचसंग्रह के अन्तर्गत जीवसमान नामक प्रकरण की हैं। यद्यपि वीरसेन स्वामी ने पंचसंग्रह का नामोल्लेख नहीं किया है, किन्तु एक स्थान पर जीवसमास का उल्लेख किया है। धवला पु. ४, पृ. ३१५ पर 'जीवसमासए वि उत्तं' करके नीचे की गाथा उधत है छप्पंचणवविहाणं अत्थाणं जिणवरोवइट्ठाणं। आणाए अहिगमेण य सद्दहणं होइ सम्मत्तं ॥ यह गाथा 'पंचसंग्रह' के अन्तर्गत जीवसमास नामक प्रथम अधिकार में है। तथा सत्प्ररूपणा की धवला टीका में उद्धत लगभग १२५ गाथाएँ भी जीवसमास नामक अधिकार की हैं। तथा कुछ गाथाएँ 'पंचसंग्रह' के अन्य अधिकारों की भी उद्धृत हैं। इसी धवला टीका के आधार पर आचार्य नेमिचन्द्र ने गोम्मटसार का संग्रह किया था। अतः पंचसंग्रह से परिचित उसके टीकाकारों ने उसे पंचसंग्रह नाम देकर उचित किया है। सत्प्ररूपणा पंचसंग्रह और गोम्मटसार आचार्य नेमिचन्द्र ने यद्यपि अपने ग्रन्थ का नाम गोम्मटसंग्रहसूत्र रखा है और उसी के आधार पर टीकाकारों ने उसे गोम्मटसार नाम दिया है, किन्त ग्रन्थकार ने यह स्पष्ट रूप से नहीं लिखा कि इसका संग्रह किस ग्रन्थ से किया गया है। तथापि कर्मकाण्ड में जो उन्होंने छह खण्डों की साधना करने का कथन किया है, उसपर-से तथा षट्खण्डागम और गोम्मटसार के विषयों की समानता होने से यह स्पष्ट हो जाता है कि षटखण्डागम अर्थात धवला टीका से उसका संग्रह किया गया है। 'पंचसंग्रह' नाम का उन्होंने कोई संकेत नहीं किया। फिर भी तुलना करने से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि पंचसंग्रह का भी उपयोग उन्होंने किया है और अपनी इस बहुमूल्य कृति को संग्रह नाम देकर उन्होंने 'पंचसंग्रह' नाम को ही प्रकारान्तर से व्यक्त किया है। सम्भवतया पंचसंग्रह नामक ग्रन्थ वर्तमान था, इसलिए भी उन्होंने अपनी इस कृति का नाम पंचसंग्रह न रखकर गोम्मटसंग्रह रखना उचित समझा हो। इसमें नाम की पुनरुक्ति भी नहीं होती और पंचसंग्रह की ध्वनि भी व्यक्त होती है। अतः यथार्थ में इसका नाम गोम्मटसंग्रह ही ग्रन्थकार को इष्ट रहा है। इस तरह पंचसंग्रह के इस लघुभ्राता का नाम गोम्मटसंग्रह उचित भी है। इससे दोनों में आनुवांशिकता भी आ जाती है। यहाँ इन तीनों ग्रन्थों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए हम सर्वप्रथम पंचसंग्रह और सत्प्ररूपणा की धवला टीका को उपस्थित करते हैं। वीरसेन स्वामी ने षटखण्डागम की रचना का इतिवृत्त देते हए लिखा है कि आचार्य पुष्पदन्त ने विंशति सूत्रों की रचना करके जिनपालित को पढ़ाकर भूतबली भगवान् के पास भेजा और उन्होंने विंशति सूत्रों को पाकर द्रव्यप्रमाणानुगम को आदि लेकर ग्रन्थरचना की। श्रुतावतार के रचयिता इन्द्रनन्दि ने लिखा है वाञ्छन् गुणजीवादिकविंशतिविधसूत्र सत्प्ररूपणया। युक्तं जीवस्थानाद्यधिकारं व्यरचयत् सम्यक् ॥१३५॥ ‘अर्थात् भूतबली ने गुणस्थान जीवसमास आदि बीस प्रकार के सूत्रगर्भित सत्प्ररूपरणा से युक्त जीवस्थान नामक प्रथम अधिकार रचा।' ये बीस प्रकार के सूत्र कौन हैं, यह वीरसेन स्वामी ने स्पष्ट नहीं किया। किन्तु 'पंचसंग्रह' की दूसरी गाथा में ही स्पष्ट कर दिया है कि गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा और चौदह मार्गणा तथा उपयोग ये बीस प्ररूपणाएँ हैं। इन्हीं बीस प्ररूपणाओं का कथन पंचसंग्रह के जीवसमास नामक प्रथम अधिकार में है। षट्खण्डागम के प्रारम्भिक सत्प्ररूपणा सूत्रों में भी गुणस्थान और मार्गणाओं का कथन है, किन्तु इस प्रकार से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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