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________________ प्रस्तावना २१ 'श्रीचामुण्डराय"द्रव्यानुयोगप्रश्नानुरूपं महाकर्मप्रकृति प्राभृत प्रथम सिद्धान्त जीवस्थानाख्य प्रथम खण्डार्थ संग्रह गोम्मटसार नामधेय पंचसंग्रहशास्त्रं प्रारभमाण"तद्गोम्मटसार प्रथमावयवभूतं जीवकाण्डं विरचयन् ।' और केशववर्णी की कर्णाटवृत्ति में लिखा है 'श्रीमत् चामुण्डराय प्रश्नावतीर्णेकचत्वारिंशत् पदनामसत्त्वप्ररूपणाद्वारेण भगवान् शास्त्रकारो महाकर्मप्रकृतिप्राभूत-प्रथमसिद्धान्तजीवस्थान-क्षुद्रकबन्ध-बन्धस्वामित्व-वेदनाखण्ड-वर्णणाखण्ड-महाबन्धानां षट्खण्डानां मध्ये जीवादिप्रमेयांशं निरवशेष समुद्धृत्य गृहीत्वा गोम्मटसार-पंचसंग्रहप्रपंचमारचयन। इनमें प्रथम में प्रथम सिद्धान्त के प्रथम खण्ड जीवस्थान से गोम्मटसार के प्रथम भाग जीवकाण्ड की रचना बतलायी है। और दूसरे में प्रथम सिद्धान्त के छह खण्डों में से समस्त जीवादि प्रमेयांश को गृहीत करके गोम्मटसार पंचसंग्रह की रचना बतलायी है। दोनों ही टीकाकारों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से ठीक ही लिखा है। मन्दप्रबोधिनी के कर्ता जीवकाण्ड को दृष्टि में रखकर उसे प्रथम सिद्धान्त के प्रथम खण्ड जीवस्थान से संगृहीत बतलाते हैं। और केशववर्णी पूरे गोम्मटसार को दृष्टि में रखकर उसे छहों खण्डों से संगृहीत कहते हैं। अतः दोनों ही कथन यथार्थ हैं। दोनों ही गोम्मटसार का अपरनाम पंचसंग्रह कहते हैं। किन्तु गोम्मटसार के रचयिता ने उसका यह अपरनाम कहीं भी नहीं लिखा है। तब टीकाकारों ने उसे यह नाम कैसे दिया? यह जिज्ञासा हो सकती है। पंचसंग्रह नाम पंचसंग्रह' नामक चार ग्रन्थ वर्तमान में उपलब्ध हैं-दो प्राकृत में और दो संस्कृत में। प्राकृत में 'पंचसंग्रह' एक दिगम्बर परम्परा का है और एक श्वेताम्बर परम्परा का। दिगम्बर परम्परा के पंचसंग्रह में पाँच प्रकरण हैं-जीवसमास, प्रकृति समुत्कीर्तन, कर्मस्तव, शतक और सप्ततिका। अतः ‘पंचसंग्रह' नाम उचित ही है। संस्कृत के दोनों पंचसंग्रह इसी प्राकृत पंचसंग्रह के संस्कृत रूपान्तर हैं। इस प्राकृत पंचसंग्रह के अन्त में एक वाक्य लिखा है-'इति पंचसंग्रहो समत्तो' ग्रन्थ में कहीं भी यह नाम नहीं आता। अमितगति ने अपने संस्कृत पंचसंग्रह में एक स्थान पर (पृ. १३१) लिखा है-पंचसंग्रह के अभिप्राय से यह कथन है। अतः संस्कृत पंचसंग्रह के रचनाकाल (वि. सं. १०७०) में यह ग्रन्थ पंचसंग्रह के नाम से प्रसिद्ध था। उसी संस्कृत पंचसंग्रह के आदि में इस पंचसंग्रह नाम की परिभाषा दी है-जो बन्धक, बध्यमान, बन्ध के स्वामी, बन्ध के कारण और बन्ध के भेद कहता है, वह पंचसंग्रह है। किन्तु श्वेताम्बराचार्य चन्द्रर्षि महत्तरकृत 'पंचसंग्रह' के प्रारम्भ में पंचसंग्रह नाम की सार्थकता बतलाते हुए कहा है-इस ग्रन्थ में शतक आदि पाँच ग्रन्थों को संक्षिप्त किया गया है अथवा इसमें पाँच द्वार हैं, इसलिए इसका नाम पंचसंग्रह है। शतक आदि पाँच ग्रन्थों का नाम ग्रन्थकार ने नहीं बताया। किन्तु इसके टीकाकार मलयगिरि ने लिखा है कि इस पंचसंग्रह में शतक, सप्ततिका, कषायप्राभृत, सत्कर्म और कर्मप्रकृति इन पाँच ग्रन्थों का संग्रह है। अथवा योगोपयोग विषय मार्गणा, बन्धक, बन्धव्य, बन्धहेतु, बन्धविधि इन पाँच अर्थाधिकारों का संग्रह होने से इसका नाम पंचसंग्रह है। दिगम्बर पंचसंग्रह में भी जीवसमास, कर्मप्रकृतिस्तव, बन्धोदयोदीरणासत्त्व, शतक, सप्ततिका नामक पाँच अधिकार हैं, इसलिए इसका पंचसंग्रह नाम सार्थक है। इन्हीं में बन्धक, बध्यमान, बन्ध के स्वामी, बन्ध के कारण और बन्धक भेद आ जाते हैं। अतः इन पाँचों का कथन होने से इसे पंचसंग्रह कहते हैं। यह दिगम्बर आचार्य कृत प्राकृत पंचसंग्रह वीरसेन स्वामी की धवला टीका से १. 'बन्धकं बध्यमानं यो बन्धेशं बन्धकारणम्। भाषते बन्धभेदं च तं स्तुवे भाव (पंच) संग्रहम् ॥' २. सवगाइ पंचगंथ-जहारिहं जेण येत्थ संखिता। दाराणि पंच अहवा वेन जहत्थाभिणाम इदं ॥ ३. 'पंचानां शतक-सप्ततिका-कषायप्राभृत-सत्कर्म, कर्मप्रकृति लक्षणानां ग्रन्थानामथवा पंचानामर्थाधिकाराणां योगोपयोगविषय मार्गणा-बन्धक-बन्धव्य-बन्धहेतु-बन्धविधिलक्षणानां संग्रह: पंचसंग्रहः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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