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गो० जीवकाण्डे
पर्याप्तोत्कृष्टावगाहनं संख्यातगुण । “६१ १२" मिदं नोडे द्वांद्रियपर्याप्तोत्कृष्टावगाहनं संख्यातगुण ।६।१११ । मिदं नोडलप्रतिष्ठित - प्रत्येकपर्याप्तोत्कृष्ठावगाहनं संख्यातगुण ६ १ १ ११ मिदं नोडल्सकलेंद्रियपर्याप्तोत्कृष्टावगाहनं संख्यातगुणं ६१ ११ १२ । अनंतरं सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्या
तकजघन्यावगादिदं मुंदण सूक्ष्मवायुकायिकलब्ध्यपर्याप्तकजघन्यावगाहनद गणकारभूतावल्य५ संख्येयभागदुत्पत्तिक्रममुमं तन्मध्यावगाहनविकल्पप्रकारंगमं पेळलेंदु मुंदण गाथानवकमं पेन्दपरु।
अवरुवरि इगिपदेसे जुदे असंखेज्जभागवड्डीए ।
आदी णिरंतरमदो एगेगपदेसपरिवड्ढी ॥१०२॥ अवरोपर्येकप्रदेशयुतेऽसंख्येयभागवृद्धेरादिनिरंतरमत एकैकप्रदेशपरिवृद्धिः॥
१० ६११ अतः द्वीन्द्रियपर्याप्तोत्कृष्टावगाहनं संख्यातगणं ६ ।।।१ । अतः अप्रतिष्टितप्रत्येकपर्याप्तोत्कृष्टा
वगाहनं संख्यातगुणं ६ । । । १। । अतः सकलेन्द्रियपर्याप्तोत्कृष्टावगाहनं संख्यातगुणं भवति ६ १ १ १ १ १, ॥१०१।। अथ सूक्ष्म निगोदलब्ध्यपर्याप्तकजघन्यावगाहनतोऽग्रतनसुक्ष्मवायकायिकलब्ध्यपर्याप्तकजघन्यावगाह्नस्य गुणकारभुतावल्यसंख्येयभागस्योत्पत्तिक्रमं तन्मध्यावगाह विकल्पप्रकारांश्च गाथानवकेना ह
१५ अवगाहना दो बार पल्यके असंख्यातवें भागसे और नौ बार संख्यातसे भाजित घनांगुल
प्रमाण होती है। उससे बादर अप्रतिष्ठित प्रत्येक पर्याप्तकी जघन्य अवगाहना पल्यके असंख्यातवें भागसे गुणित है। यहाँ भी अपवर्तन करना। इससे बादर दोइन्द्रिय पर्याप्तकी जघन्य अवगाहना पल्यके असंख्यातवें भाग गुणित है। यहाँ भी अपवर्तन करनेपर पल्यके
असंख्यातवे भागका भागहार समाप्त होकर केवल नौ बार संख्यातसे भाजित घनांगुल २० प्रमाण अवगाहना रहती है । आगे तेन्द्री, चौन्द्री, पंचेन्द्री पर्याप्त की जघन्य अवगाहना प्रत्येक
पूर्व-पूर्वसे संख्यातगुणित-संख्यातगणित हैं। इससे तेन्द्रीं अपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना संख्यातगुणी है। इससे चौन्द्री अपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना संख्यातगणी है। इससे दोइन्द्रिय अपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना संख्यातगुणी है। उससे अप्रतिष्ठित प्रत्येक
अपर्याप्त की उत्कृष्ट अवगाहना संख्यात गुणी है। उससे पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकी उत्कृष्ट २५ अवगाहना संख्यातगुणी है। इस तरह एक-एक बार संख्यात गुणकारको नौ बार संख्यातके
भागहार में-से कम करनेपर पंचेन्द्रिय अपर्याप्त की उत्कृष्ट अवगाहना एक बार संख्यातसे भाजित घनांगुल प्रमाण होती है। इससे तेइन्द्रिय अपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना संख्यात गुणी है। सो अपवर्तन करनेपर यहाँ गुणकारके संख्यातका प्रमाण भागहारके संख्यातके
प्रमाणसे बहुत है । अतः तेइन्द्रिय पर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना संख्यात गुणित घनांगल प्रमाण ३० होती है । उससे चौइन्द्रिय पर्याप्त की उत्कृष्ट अवगाहना संख्यात गुणी है। उससे दोइन्द्रिय
पर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना संख्यात गुणी है। उससे अप्रतिष्ठित प्रत्येक पर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना संख्यात गुणी है। उससे पंचेन्द्रिय पर्याप्त की उत्कृष्ट अवगाहना संख्यात गुणी है । इस तरह क्रमसे अवगाहनास्थान जानना ॥१०॥
सूक्ष्म निगोदलब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहनासे सूक्ष्मवायुकायिक लब्ध्यपर्याप्तकी ३५ जघन्य अवगाहनाका गुणाकार आवलीका असंख्यातवाँ भाग कहा है। आगे उसकी उत्पत्ति
का क्रम और उन दोनोंकी मध्य अवगाहनाके भेदोंके प्रकार नौ गाथाओंसे कहते हैं
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