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प्रस्तावना
१६
ग्रन्थरचना-स्थान
यह ग्रन्थरचना चन्द्रगिरि पर चामुण्डराय के द्वारा निर्मापित जिनालय में इन्द्रनीलमणि निर्मित नेमीश्वर प्रतिबिम्ब के सान्निध्य में ही हुई है। 'गोम्मटसार' कर्मकाण्ड की प्रशस्ति में इस जिनालय में स्थित बिम्ब का निर्देश है तथा जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड और त्रिलोकसार की आद्य मंगल गाथाओं में नेमिजिन को नमस्कार भी किया गया है। ___'बाहुबलिचरित' के अनुसार जब चामुण्डराय अपनी माता के साथ गोम्मटेश्वर की मूर्ति के दर्शन के लिए पोदनापुर गये थे, तो नेमिचन्द्र भी उनके साथ थे। तथा नेमिचन्द्र को ही यह स्वप्न आया था कि विन्ध्यगिरि पर गोम्मटेश्वर की मूर्ति थी। उसके पश्चात् ही चामुण्डराय ने वहाँ मूर्ति की स्थापना की और नेमिचन्द्र के चरणों में चामुण्डराय ने मूर्ति की पूजा के निमित्त ग्राम अर्पित किये, जिनकी आय छियानवे हजार द्रव्य प्रमाण थी। यथा
भास्वद्देशीगणाग्रेसररुचिरसिद्धान्तविन्नेमिचन्द्रश्रीपादाग्रे सदा षण्णवति दशशतद्रव्यभूग्रामवर्यान् । दत्त्वा श्रीगोम्मटेशोत्सव-नित्यार्चना वैभवाय
श्रीमच्चामुण्डराजो निजपुरमथुरां संजगाम क्षितीशः ॥६१॥ रचनाकाल
जैसा ऊपर के लेख से स्पष्ट है कि नेमिचन्द्राचार्य ने चामुण्डराय के निमित्त से अपने 'गोम्मटसार' और 'त्रिलोकसार' नामक ग्रन्थों की रचना की थी। तथा 'गोम्मटसार' की अन्तिम प्रशस्ति में राजा गोम्मट अर्थात चामुण्डराय का जयकार करते हुए उनके द्वारा निर्मित दक्षिण कुक्कुटजिन-बाहुबली की मूर्ति तथा चन्द्रगिरि पर निर्मित जिनालय का उल्लेख किया है। इससे यह प्रकट है कि उक्त निर्माणों के पश्चात् या उनके समकाल में ही 'गोम्मटसार' रचा गया है।
चामुण्डराय ने अपना 'चामुण्डरायपुराण' शक सं. ६०० (वि. सं. १०३१) में समाप्त किया था। उसमें उन्होंने अपने सब कार्यों का विवरण दिया है, किन्तु मूर्ति निर्माण कार्य का उल्लेख नहीं किया। अतः इसके पश्चात् ही मूर्ति की प्रतिष्ठा हुई है। तथा मूर्ति की प्रतिष्ठा गंगनरेश राचमल्ल द्वितीय के राज्यकाल में हुई है और उसका राज्यकाल वि. सं. १०३१ से १०४१ तक है। 'बाहुबलीचरित' में गोम्मटेश की प्रतिष्ठा का जो समय दिया है, उसके अनुसार वि. सं. १०३७-३८ में प्रतिष्ठा हुई है। उस समय राचमल्ल का राज्यकाल था। तथा 'त्रिलोकसार' की टीका में उसकी प्रथम मंगल गाथा के 'बलगोविन्द' आदि पद का व्याख्यान श्री माधवचन्द्र विद्य ने 'बलश्चामुण्डरायः गां पृथ्वीं विन्दति पालयतीति गोविन्दो राचमल्लदेवः' किया है। तथा 'गोम्मटसार' जीवकाण्ड की मन्दप्रबोधिनी टीका के प्रारम्भ में भी गंगराज राचमल्ल के मन्त्री चामुण्डराय इत्यादि निर्देश है। अतः गोम्मटसार और त्रिलोकसार की रचना वि. सं. १०३७-४० में हुई है।
रचनाएँ
आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती की तीन ही रचनाएँ समुपलब्ध हैं-गोम्मटसार, लब्धिसार और त्रिलोकसार। 'बाहुबलीचरित' में भी उनकी इन्हीं तीन रचनाओं का निर्देश है। यथा
सिद्धान्तामृतसागरं स्वमतिमन्थक्ष्माभृदालोड्य मध्ये लेभेऽभीष्टफलप्रदानपि सदा देशीगणाग्रेसरः। श्रीमद् गोम्मट-लब्धिसार विलसत् त्रैलोक्यसारामरमाजश्रीसुरधेनुचिन्तितमणीन् श्रीनेमिचन्द्रो मुनिः ॥६३॥
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