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________________ १२२ गो० जीवकाण्डे १० उसे अविभाग प्रतिच्छेद कहते हैं। एक परमाणुमें जितने अविभाग प्रतिच्छेद होते हैं उनके समूहका नाम वर्ग है। जिन परमाणुओंमें परस्पर समान गणनाको लिये अविभाग प्रतिच्छेद होते हैं, उनके समूहका नाम वर्गणा है । अन्य परमाणुओं में-सेजिनमें थोड़े अविभागप्रतिच्छेद पाये जाते हैं, उनके समूहका नाम जघन्य वर्ग है । उस परमाणुके समान जिन परमाणुओंमें अविभाग प्रतिच्छेद पाये जाएँ ,उनके समूहका नाम जघन्य वर्गणा है। जघन्य वर्गसे एक अविभाग प्रतिच्छेद.जिनमें अधिक पाया जाये,ऐसे परमाणुओंके समूहका नाम दूसरी वर्गणा है। इस प्रकार जहाँ तक एक-एक अविभाग प्रतिच्छेद अधिक लिये हुए वर्गणा पायी जाये,उन सबके समहका नाम जघन्य स्पर्धक है। इससे ऊपर जघन्य वर्गणाके वों में जितने अविभाग प्रतिच्छेद थे , उनसे दूने जिस वर्गणाके वर्गमें अविभाग प्रतिच्छेद हों,वहाँसे दूसरा स्पर्धक प्रारम्भ होता है । वहाँ भी पूर्वोक्त प्रकार एक-एक अविभाग प्रतिच्छेद बढ़नेके क्रमको लिये वोंके समूह रूप जितनी वर्गणा होती है,उनके समूहका नाम द्वितीय स्पर्धक है। प्रथम स्पर्धककी प्रथम वर्गणाके वर्गों में जितने अविभाग प्रतिच्छेद थे , उनसे तिगने अविभाग प्रतिच्छेद जिस वर्गणाके वर्गों में पाये जायें,वहाँसे तीसरा स्पर्धक प्रारम्भ होता है। उसमें भी पूर्वोक्त क्रम जानना। सारांश यह है कि जहाँ तक वर्गणाओंके वर्गों में क्रमसे एक-एक अविभाग प्रतिच्छेद बढ़ता है,वहाँ तक वही स्पर्धक कहा जाता है। और जहाँसे एक साथ अनेक अविभाग प्रतिच्छेद बढ़ते हैं, वहाँसे नवीन अन्य स्पर्धकका आरम्भ होता है । सो चतुर्थ आदि स्पर्धकोंकी प्रथम वर्गणाके वर्गमें अविभागी प्रतिच्छेद प्रथम स्पर्धकके प्रथम वर्गणाके वर्गमें जितने थे,उनसे चौगुणे, पाँचगुणे आदि क्रमसे जानना । तथा अपनी-अपनी द्वितीयादि वर्गणाके वर्गमें अपनी-अपनी प्रथम वर्गणाके वर्गसे एक-एक अविभाग प्रतिच्छेद क्रमसे बढ़ता जानना। ऐसे स्पर्धकोंके समूहका नाम प्रथम गुणहानि है। इस प्रथम गुणहानिकी प्रथम वर्गणामें जितने परमाणुरूप वर्ग होते हैं ,उनसे एक-एक चय प्रमाण घटते हुए द्वितीयादि वर्गणाओंके वर्ग जानने। इस क्रमसे जहाँ प्रथम गुण - हानिकी वर्गणाके वोंसे आधे वर्ग जिस वर्गणामें होते हैं ,वहांसे दूसरी गुणहानि आरम्भ होती है। इस क्रमसे जितनी गुणहानियाँ सब कर्म परमाणुओंकी पायी जाती हैं ,उनके समूहका नाम नाना गुण२५ हानि है। इन वर्गणादिमें परमाणुओंका प्रमाण लानेके लिए द्रव्य, स्थिति, गुणहानि, दो गुणहानि, नानागुणहानि, अन्यान्याभ्यस्तराशि ये छह जानना। उसमें-से सर्व कर्म परमाणुओंका प्रमाण किंचित् ऊन द्वयर्ध गणहानि गुणित समय प्रबद्ध प्रमाण है । उसे सर्व द्रव्य जानो। तथा नाना गुणहानिसे गणहानि आयामको गुणा करने पर जो सर्व द्रव्यमें वगणाओंक प्रमाण होता है ,वह यहाँ स्थिति जानना । एक गुणहानिमें अनन्त गुणित अनन्त प्रमाण वर्गणा पायी जाती है सो गुणहानि आयाम जानना । उसको दुना करने पर जो प्रमाण हो, वह दो गुणहानि है। सर्व द्रव्यमें जो अनन्त गुणहानियाँ होती हैं, उनका नाम नाना गुणहानि है । क्योंकि दोके गुणाकार रूप घटता-घटता द्रव्य जिसमें पाया जाये , वह गुणहानि है और अनेक गुणहानि नाना गुणहानि है। नाना गुणहानि प्रमाण दोके अंक रखकर परस्परमें गुणा करने पर जो प्रमाण हो, वह अन्योन्याभ्यस्त राशि है । एक कम अन्योन्या३५ भ्यस्त राशिका भाग सर्वद्रव्यमें देनेपर जो प्रमाण आवे , उतना ही अन्तकी गुणहानिके द्रव्यका प्रमाण है । उससे दूना-दूना प्रथम गुणहानि पर्यन्त द्रव्यका प्रमाण है । २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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