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________________ गोम्मटसार जीवकाण्ड नेमिचन्द्र अपने प्रारम्भिक कथन में लिखते हैं कि नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने अनेक उपाधिधारी चामुण्डराय के लिए प्रथम सिद्धान्त ग्रन्थ के आधार पर गोम्मटसार ग्रन्थ रचा । १४ नेमिचन्द्र और चामुण्डराय समकालीन थे तथा मूर्ति की स्थापना और गोम्मटसार का संकलन भी प्रायः समकालीन घटनाएँ हैं । इसलिए गोम्मट का जो भी अर्थ लगाया जाये, वह मूर्ति तथा उक्त प्राकृत ग्रन्थ के नाम के साथ में संगत होना चाहिए। क्योंकि चामुण्डराय का सम्बन्ध बेलगोला की मूर्ति के साथ भी उसी प्रकार है, जिस प्रकार उक्त ग्रन्थ के साथ है। यदि हम गोम्मटसार की कुछ अन्तिम गाथाओं को ध्यानपूर्वक पढ़ें, तो एक बात निर्विवाद सिद्ध है कि चामुण्डराय का - जो वीर मार्तण्ड की उपाधि से शोभित थे, एक नाम गोम्मट था और वे गोम्मटराय भी कहे जाते थे। नेमिचन्द्र ने ओजपूर्ण शब्दों में उनकी विजय की भावना की है। जैसा कि निम्न दो गाथाओं से प्रकट हैं अज्जज्जसेण गुणगणसमूह संधारि अजियसेण गुरू । भुवणगुरू जस्स गुरू सो राओ गोम्मटो जयउ ॥ ७३३ ॥ - जीवकाण्ड जेण विणिम्मिय-पडिमा वयणं सव्वट्टसिद्धिदेवेहिं । सव्वपरमोहिजो गिहिं दिट्ठ सो राओ गोम्मटो जयऊ ॥६६६ ॥ - कर्मकाण्ड इनमें पहली गाथा जीवकाण्ड की और दूसरी कर्मकाण्ड की है। पहली में कहा है कि वह राय गोम्मट जयवन्त हों, जिनके गुरु वे अजितसेन गुरु हैं जो भुवनगुरु हैं। दूसरी गाथा में कहा है कि वह राजा गोम्मट जयवन्त हों, जिनकी निर्माण करायी हुई प्रतिमा (बाहुबली की मूर्ति) का मुख सर्वार्थसिद्धि के देवों और सर्वावधि तथा परमावधि के धारक योगियों के द्वारा देखा गया है। इस समकालीन साक्षी के सिवाय ई. सन् ११८० के एक शिलालेख' से ज्ञात होता है कि चामुण्डराय का दूसरा नाम गोम्मट था । डॉ. उपाध्ये इसे चामुण्डराय का घरेलू नाम बतलाते हैं। और लिखते हैं- कि बाहुबली को प्राचीन जैन साहित्य में गोम्मटेश्वर नहीं कहा गया है तथा यह शब्द केवल बेल्गोला की मूर्ति की प्रतिष्ठा के बाद ही व्यवहार में आया है-इन बातों को स्मृति में रखते हुए यह बात आसानी से विश्वास किये जाने योग्य हो जाती है कि यह मूर्ति गोम्मटेश्वर के नाम से इसलिए प्रसिद्ध हुई; क्योंकि इसे चामुण्डराय ने, जिसका दूसरा नाम गोम्मट था, बनवाकर स्थापित किया था । गोम्मटेश्वर का अर्थ होता है- 'गोम्मट के देवता' । इसी तरह गोम्मटसार नाम इसलिए दिया गया, क्योंकि वह धवलादि ग्रन्थों का सार था, जिसे नेमिचन्द्र ने गोम्मट चामुण्डराय के लिए तैयार किया था। जब एक बार बेलगोला की मूर्ति का नाम गोम्मटेश्वर पड़ गया, तो धीरे-धीरे यह नाम • कर्मधारय समास के तौर पर (गोम्मटश्चासौ ईश्वरः) समझ लिया गया। और बाद में बाहुबली की दूसरी मूर्तियों के लिए भी व्यवहृत हुआ । आगे डॉ. उपाध्ये ने अनेक प्रमाणों के आधार पर यह प्रमाणित किया है कि भारत की आधुनिक भाषाओं में मराठी ही ऐसी भाषा है जिसमें यह शब्द प्रायः व्यवहत हुआ इस तरह डॉ. उपाध्ये के निष्कर्ष के अनुसार गोम्मट चामुण्डराय का व्यक्तिगत नाम था, चूँकि उन्होंने बाहुबली की मूर्ति की प्रतिष्ठा करायी थी, इसलिए वह मूर्ति गोम्मटेश्वर कहलाने लगी और अन्त में नेमिचन्द्र ने जो धवलादिका सार तैयार किया, वह गोम्मटसार कहलाया अक्षरशः गोम्मट का अर्थ है-उत्तम आदि । ( यह डॉ. उपाध्ये के लेख का सार है) किन्तु जिन आचार्य नेमिचन्द्र ने अपने गोम्मटसार के अन्त में गोम्मट राजा का जयकार किया है, उन्होंन 1. देखो ( 1. C. II) नं. 238, पंक्ति 16 और अँगरेज़ी संक्षेप का पृष्ठ 98 भी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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