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________________ ७७ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका कंगळं कडि ईयक्षरमनितनेयदेंदु पेळ्वुददेंतेने-भक्तकथालापो लोभी रसनेंद्रियवशगतो निद्रालुः स्नेहवान बुदि दिनितनेयालापम दोड तत्तत्कोष्ठगतांकंगळरडु' पदिनारुमं कूडल ३० मूवत्तनयदेंदु पेवुदु मत्तमवनिपालकथालापी लोभी चक्षुरिंद्रियवशगतो निद्रालुः स्नेहवानेबिदिनितनेयालापम दोड तत्तत्कोष्ठगतांकंगळु नाल्कु पन्नेरडं नाल्वत्तं टुमं कूडि इदरुवत्तनाल्कनेयदेंदु पेल्वुदी प्रकारमं सर्वत्र व्यापकमागरिवुदु ॥ इंतु मलोत्तरोत्तरप्रमादंगळ्गे यथासंभवमागि संख्यादि पंचप्रकारनिरूपणं माडि प्रमादसंख्याविशेषमनरियल्पडुवुदुमदतने विकथेगळिप्पत्तदु २५, कषायंगळिप्पत्तय्दु २५, इंद्रियंगळु ६, निद्रेगळ , स्नेहमोहंगळेरडुमि देल्लमनडरि गुणियिसिदोडे ३७५०० प्रमादंगळप्पुवुमिल्लियु तमालापं ततिथं ब्रूयात् । तथा अवनिपालकथालापी लोभी चक्षुरिन्द्रियवशगतो निद्रालु: स्नेहवान् इत्यालापः कतिथः ? इति प्रश्ने तत्तत्प्रमादकोष्ठगतचतुदिशाष्टचत्वारिंशदथेषु मिलितेषु या संख्या चतुःषष्टिः स्यात् तमालापं ततिथं वयात, एवमन्यालापे पृष्टेऽपि कुर्यात् । एवं मलोत्तरोत्तरप्रमादानां यथासंभवं संख्यादिपञ्चप्रकारान निरूप्य इदानीमपरं प्रमादसंख्याविशेषं ज्ञापयति । तद्यथा-स्त्रोकथा अर्थकथा भोजनकथा राजकथा चोरकथा वैरकथा परपाखण्डकथा देशकथा भापाकथा गुणबन्धकथा देवीकथा मिष्ठरकथा परपैशुन्यकथा कन्दर्पकथा देशकालानुचित कथा भण्डकथा मूर्खकथा आत्मप्रशंसाकथा परपरिवादकथा परजुगुप्साकथा परपीडाकथा कलहकथा परिग्रहकथा कृष्याद्यारम्भकथा संगीतवाद्यकथा चेति विकथा पञ्चविंशतिः २५ । षोडशकषाय- १५ नवनोकषायभेदेन कषायाः पञ्चविंशतिः २५ । स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रमनोनामानि इन्द्रियाणि षट् ६ । स्त्यानगृद्धिः निद्रानिद्रा प्रचलाप्रचला निद्रा प्रचला चेति निद्राः पञ्च ५। स्नेहो मोहश्चेति द्वौ २ । एतेषु उपरितनभङ्गेषु एककस्मिन् अधस्तनभङ्गाः, अधस्तनभङ्गेषु एकैकस्मिन्नुपरितनभङ्गाश्च सर्वे मिलन्तीति संख्यावाला है ? ऐसा प्रश्न होनेपर उस-उस प्रमाद कोठोंमें स्थित एक, चार और बत्तीस अंकोंको जोड़नेपर जो सैंतीस संख्या होती है, उस आलापको उसी संख्यावाला कहना २० चाहिए । तथा अवनिपालकथालापी, लोभी, चक्षु इन्द्रियके अधीन, निद्रालु, स्नेहवान्, यह आलाप कितनी संख्यावाला है ? ऐसा प्रश्न होनेपर उस-उस प्रमादके कोठोंके अंक चार, बारह, अड़तालीसको जोड़ने पर जो चौसठ संख्या आती है, उस आलापको उतनी ही संख्यावाला कहना चाहिए। इसी प्रकार अन्य आलापोंके विषयमें पूछने पर भी करना चाहिए। __ इस प्रकार मूल और उत्तर प्रमादोंके यथासम्भव संख्या आदि पाँच प्रकारोंको २५ कहकर अब प्रमादोंकी अन्य विशेष संख्या बतलाते है । जो इस प्रकार है-स्त्रीकथा, अर्थकथा, भोजनकथा, राजकथा, चोरकथा, वैरकथा, परपाखण्डकथा, देशकथा, भाषाकथा, गुणबन्धकथा, देवीकथा, निष्ठुरकथा, परपैशुन्यकथा, कन्दपंकथा, देशकालानुचितकथा, भण्डकथा, मूखकथा, आत्मप्रशंसाकथा, परपरिवाद कथा, परजुगुप्साकथा, परपीडाकथा, परिग्रहकथा, कृष्यादि आरम्भकथा, संगीतवाद्यकथा ये २५ विकथा हैं । सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके ३० भेदसे पच्चीस कषाय हैं। स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र और मन ये छह इन्द्रियाँ हैं। स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, निद्रा, प्रचला ये पाँच निद्रा हैं । स्नेह और मोह ये दो हैं। इन ऊपरके भंगोंमें-से एक-एकमें नीचेके भंग और नीचेके भंगोंमें-से एक-एकमें ऊपरके १. म क्षमितितेनयं। २. म°दिदेनितेनेवा। ५. ममिवेल्ल। ३. म डु पन्नेरडं पं। ४. म ३. नेयदेंदु । ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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