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________________ ७५ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका इगिवितिचखचडबारं खसोलरागट्ठदाल चउसद्धिं । संठविय पमदठाणे णठुद्दिढ़ जाण तिट्ठाणे ॥४४।। एकद्वित्रिचतुःखचतुरष्टद्वादशखषोडशरागाष्टचत्वारिंशच्चतुःषष्टि संस्थाप्य च प्रमादस्थाने नष्टोद्दिष्टे च विद्धि त्रिस्थाने ॥ स्प. , र १६, घ्रा ३२, च ४८, श्रो. ६४ क्रो. . मा ४, मा ८, लो १२ स्त्री १, भ २, रा ३, अ ४, तत्तत्कोष्ठगतप्रमादेषु स्नेहनिद्राभ्यामग्रे उच्चरितेषु स्नेही निद्रालुः श्रोत्रेन्द्रियवशगतो मायावी भक्तकथालापीति पृष्टालापः स्यात् ।। तथा एकषष्टितम आलापः कीदृग ? इति प्रश्ने अत्रापीन्द्रियकषायविकथानां यद्यत्कोष्ठगताङ्कशन्येष मिलितेष सा संख्या | स्यात ] तत्तत्कोष्ठगतप्रमादेषु प्राग्वदृच्चरितेष स्नेही निद्रालः, १० स्पर्शनेन्द्रियवशगतः क्रोधी अवनिपालकथालापीति तत्पृष्टालापः स्यात् । एवमन्यालापप्रश्नेऽपि विधेयं । उद्दिष्टं तु स्नेही निद्रालुः स्पर्शनेन्द्रियवशगतो मानी राष्ट्रकथालापीत्यालापः कतिथ: ? इति प्रश्ने स्नेहनिद्रावजिततत्तत्कोष्ठगतैकपञ्चचत्वारिंशदषु मिलितेषु या संख्या षटचत्वारिंशज्जायते स पृष्टालापस्ततियो भवति । तथा स्नेही निद्रालुः चक्षुरिन्द्रियवशगतो लोभी भक्तकथालापीत्यालाप: कतिथः ? इति प्रश्ने तत्तत्कोष्ठगतचतु:पञ्चदविंशत्यङ्केषु मिलितेषु या संख्या एकान्नचत्वारिंशत् संपद्यते स पृष्टालापस्ततिथो भवति । एवमन्यालापेऽपि १५ पृष्ट कर्तव्यं ॥४३॥ अथ द्वितीयप्रस्तारापेक्षया नष्टोददिष्टयोगंढयन्त्रमाह स्त्री १, भ २, रा ३, अ ४, क्रो० , मा ४, मा ८, लो १२, स्प० , र १६, घ्रा ३२, च ४८, श्रो० ६४ आलाप कौन-सा है ? ऐसा पूछनेपर, यहाँ भी इन्द्रिय, कषाय और विकथाके जिस-जिस २० कोठेमें स्थापित अंकों और शून्योंको जोड़नेपर वह संख्या आती है उस-उस कोठेके प्रमादोंको पहलेकी तरह उच्चारित करनेपर स्नेही, निद्रालु, स्पर्शन इन्द्रियके अधीन, क्रोधी, अवनिपालकथालापी,यह पूछा हुआ आलाप है। अर्थात् इकसठवाँ आलाप है। इसी तरह अन्य आलाप सम्बन्धी प्रश्नमें भी करना चाहिए । अब उद्दिष्टको लीजिए-स्नेही, निद्रालु, स्पर्शन इन्द्रियके अधीन, मानी, राष्ट्रकथालापी इस आलापकी संख्या कितनी है ? ऐसा प्रश्न होनेपर २५ स्नेह और निद्राको छोडकर उस-उस प्रमादके कोठोंमें स्थापित एक, पाँच और चालीस अंकोंको जोड़नेपर जो छियालीस संख्या होती है, पूछा गया आलाप उतनी ही संख्यावाला होता है । तथा स्नेही, निद्रालु, चक्षु इन्द्रियके अधीन, लोभी, भक्तकथालापी यह आलाप किस संख्याका है ? ऐसा प्रश्न होनेपर उस-उस प्रमादके कोठेमें स्थापित चार, पन्द्रह, बीस अंकोंको जोड़नेपर जो संख्या उनतालीस आती है, पूछा हुआ आलाप उतनी ही संख्याका है। ३० इसी प्रकार अन्य आलापोंके पूछनेपर भी करना चाहिए ॥४३।। आगे दूसरे प्रस्तारको अपेक्षा नष्ट-उद्दिष्टका गूढ़ यन्त्र बतलाते हैं प्रमादके स्थानोंमें विकथा प्रमादके चार कोठोंमें क्रमसे एक, दो, तीन, चार अंकोंको स्थापित करो। तथा कषाय प्रमादके चार कोठोंमें क्रमसे शून्य, चार, आठ, बारहका अंक स्थापित करो । तथा इन्द्रिय प्रमादके पाँच कोठोंमें क्रमसे शून्य, सोलह, बत्तीस, अड़तालीस, ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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