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________________ ३९४ ) छवखंडागमे संतकम्मं गुणो । तिरिक्खगई० अनंतगुणो । णीचागोद० अनंतगुणो । असजकित्ति० अनंतगुणो । पलापयला. अनंतगुणो । णिद्दाणिद्दा० अनंतगुणो । थोर्णागिद्धि० अनंतगुणो । अपच्चक्वाणमाणे ० अनंतगुणो । कोधे० विसेसाहिओ । माया० विसेसा० । लोभे० विसे० । पच्चक्खाणमाणे अनंतगुणो । कोधे विसेसा० । मायाए० विसे० । लोभे० विसे० । असाद० अतगुणो । जसकित्ति० अनंतगुणो । साद० अनंतगुणो । मिच्छत्त० अणंतगुणो । आहार० अनंतगुणो । एवमोघो समत्तो । 1 रिगईए सव्वमंदाणुभागं सम्मत्तं । सम्मामिच्छत्त अनंतगुणो । अणंताणुबंधिमाणे० अनंतगुणो । कोधे० विसे० । माया० विसे० । लोभे० विसे० । तिरिखखाउ० अनंतगुणो । मणुस्सा उ० अनंतगुणो । णिरयाउ० अनंतगुणो । ओरालिय० अनंतगुणो । उ० अनंतगुणो | तेजा० अनंतगुणो । कम्मइय० अनंतगुणो । हस्स० अनंतगुणो । रदि० गुण । रिगई० अनंतगुणो । तिरिक्खगई० अनंतगुणो । मणुस गई ० अनंतगुणो । देवगई. अनंतगुणो | णीचागोद० अनंतगुणो । अजसगित्ति ० अणंतगुणो । पयला० अनंतगुण | णिद्दा० अनंतगुणो । पयलापयला० अनंतगुणो । णिद्दाणिद्दा० अनंतगुणो । दुगंछा० अतगुणो । भय० अनंतगुणो । सोग० अनंतगुणो । अरदि० अनंतगुणो । पुरिसवेद० O O शरीरमें अनन्तगुणा है । तिर्यग्गति में अनन्तगुणा है । नीचगोत्र में अनन्तगुणा है । अयशकीर्ति अनन्तगुणा है । प्रचलाप्रचलानें अनन्तगुणा है । निद्रानिद्रा में अनन्तगुणा है । स्त्यानगृद्धि में अनन्तगुणा है । अप्रत्याख्यानावरण मानमें अनन्तगुणा है । अप्रत्याख्यानावरण क्रोध में विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरण मायामें विशेष अधिक है । अप्रत्याख्यानावरण लोभमें विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरण मानमें विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरण क्रोध में विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरण मायामें विशेष अधिक है । प्रत्याख्यानावरण लोभ में विशेष अधिक है । असातावेदनीय में अनन्तगुणा है । यशकीर्ति में अनन्तगुणा है । सातावेदनीयमें अनन्तगुणा है । मिथ्यात्वमें अनन्तगुणा है | आहारशरीर में अनन्तगुणा है । इस प्रकार ओघ अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । नरकगति में सबसे मन्द अनुभागवाली सम्यक्त्व प्रकृति है । उससे सम्यग्मिथ्यात्व में वह अनन्तगुणा है । अनन्तानुबन्धी मानमें अनन्तगुणा है । अनन्तानुबन्धी क्रोधमें विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धी मायामें विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धी लोभ में विशेष अधिक है । तिर्यगायुमें अनन्तगुणा है | मनुष्यायुमें अनन्तगुणा है । नारकायुमें अनन्तगुणा है । औदारिकशरीरमें अनन्तगुणा है । वैक्रियिकशरीर में अनन्तगुणा हैं । तैजसशरीर में अनन्तगुणा है। कार्मणशरीरमें अनन्तगुणा है । हास्य में अनन्तगुणा है । रतिमें अनन्तगुणा है । नरकगतिम् अनन्तगुणा है । तिर्यचगति में अनन्तगुणा है । मनुष्यगति में अनन्तगुणा है । देवगतिम अनन्तगुणा है । नीचगोत्र में अनन्तगुणा है । अयशकीर्ति में अनन्तगुणा है । प्रचलामें अनन्त - गुणा है । निद्रा अनन्तगुणा है । प्रचलाप्रचलामें अनन्तगुणा है । निद्रानिद्रामें अनन्तगुणा है । जुगुप्सा में अनन्तगुणा है । भयमें अनन्तगुणा है । शोकमें अनन्तगुणा है । अरतिम For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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