________________
संकमाणुयोगद्दारे अणुभागसंकमो
साद-जस कित्ति उच्चागोदाणं मणुसगइ मणुसगइपाओग्गाणुपुथ्वी-ओरालियसरीर ओरालियसरीरअंगोवंग- बंधण-संघाद-पढमसंघडण आदावुज्जोवणामाओ मोत्तूण सेसाणं पसत्थणामपयडीणं च उक्कस्साणुभागसंकामओ केवचिरं० ? जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० पुव्वकोडी देसूणा । अणुक्कस्साणुभागसंकामओ केवचिरं० ? उब्वेल्लमाणपयडीओ मत्तू साण अणादिओ अपज्जवसिदो अणादिओ सपज्जवसिदो वा । उव्वेल्लमाणाण पडीणमणुक्कस्साणुभागसंकामओ केवचिरं० ? जह० पलिदो० असंखे० भागो, अधवा अवस्साणि सादिरेयाणि । उक्कस्सेण जो जस्स पर्याडिसंतकालो तच्चिरं कालं ।
( ३८३
आउआ ? जट्ठिदिबंधमाणगो जमणुभागं निव्वत्तेदि जाव तट्ठिदि ण ओवट्टेदि ताव तत्तियं कालं सो अणुभागं होदि । एदेण बीजेण देव - णिरयाउआणं उक्कस्साणुक्कस्सअणुभागसंकामओ जह० अंतोमुहुत्तं, उवक० तेत्तीस सागरोवमाणि सादिरेयाणि । मणुस - तिरिक्खाउआणं उक्कस्साणुक्कस्सअणुभागसंकमो केवचिरं ० ? जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि सादिरेयाणि । णवर तिरिक्खाउ - अअणुक्कस्सअणुभागसंकमस्स उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अप्पसत्थाणं णामपयडीणं णीचागोद-पंचंतराइयाणं च उक्स्कसाणुभागसंकमो जह०
सातावेदनीय, यशकीर्ति उच्चगोत्र तथा मनुष्यगति, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, औदारिकबंधन, औदारिकसंघात, प्रथम संहनन तथा आतप व उद्योतको छोड़कर शेष प्रशस्त नामप्रकृतियों के भी उत्कृष्ट अनुभागके संक्रामकका काल कितना है ? वह जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से कुछ कम पूर्वकोटि मात्र है । इनके अनुत्कृष्ट अनुभाग के संक्रामकका काल कितना है ? उक्त काल उद्वेल्यमान प्रकृतियोंको ( आहारकविक्र, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, देवविक, नारकचतुष्क, उच्चगोत्र और मनुष्यविक ) को छोडकर शेष प्रकृतियों का अनादि - अपर्यवसित और अनादि- सपर्यवसित भी है । उद्वेल्यमान प्रकृतियों के अनुत्कृष्ट अनुभाग के संक्रामकका काल कितना है ? वह जघन्यसे पत्योपम के असंख्यातवें भाग अथवा साधिक आठ वर्ष मात्र है । उत्कर्ष से जो जिसके प्रकृतिसत्वका काल है उतना काल उनके अनुत्कृष्ट अनुभाग के संक्रामकका है ।
आयु कर्मोंकी जिस स्थितिको बांधनेवाला जिस अनुभागकी रचना करता है व जब तक उस स्थितिका अपवर्तन नहीं करता है तब तक उतनें मात्र काल उसके वह अनुभाग होता है । इस बीजपदके अनुसार देवायु व नारकायुके उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट अनुभाग के संक्रामकका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे साधिक तेतीस सागरोपम मात्र है । मनुष्यायु और तिर्यगायके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के संक्रामकका काल कितना है ? वह जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे साधिक तीन पल्योपम मात्र है । विशेष इतना है कि तिर्यंच आयुके अनुत्कृष्ट अनुभाग के संक्रामका काल उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र है ।
अप्रशस्त नाम प्रकृतियों, नीचगोत्र और पांच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभाग के संक्रमका
४४ अ-काप्रत्योः 'काल' इति पाठः । ॐ ताप्रती ' -कम्पकालो । तच्चिरं कालं आउआणं ।' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org