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________________ संकमाणुयोगद्दारे अणुभागसंकमो ( ३८१ सम्मामिच्छत्तखवगो अपच्छिमे अणुभागखंडए वट्टमाणओ सो होदि । पुरिसवेदतिसंजलणाणं जहण्णाणुभागसंकामगो को होदि ? एदेसि खवओ* एदेसिल चेव अपच्छिमसमयपबद्धाणं चरिमफालीयो संछुहमाणओ। णवरि पुरिसवेदस्स पुल्लिगेण उवढिदो त्ति वत्तव्वं । णवंसयवेदस्स जहण्णाणुभागसकामओ को होदि ? णवंसयवेदक्खवगो णवंसयवेदोदएणेव खवगसेडिमारूढो णqसयवेदचरिमफालि संछुहमाणगो। इत्थिवेदस्स जहण्णाणुभागसंकामओ को होदि ? इत्थिवेदखवगो अण्णदरवेदोदएण खवगसेडिमारूढो इत्थिवेदचरिमाणुभागखंडय वरिमफालि संछुहमाणओ। छण्णोकसायाणमित्यिवेदभंगो । चदुण्णमाउआणं जहण्णाणुभागसंकामओ को होदि ? अप्पप्पणो जहणियाओ द्विंदीओ णिवत्तेदूण आवलियमदिक्कतो। अणंताणुबंधीणं जहण्णाणुभागसंकामओ को कौन होता है ? जो सम्बग्मिथ्यात्वका क्षपक अन्तिम अनुभागकाण्डकमें वर्तमान है वह उसके जघन्य अनुभागका संक्रामक होता है। पुरुषवेद और तीन संज्वलन कषायोंके जघन्य अनुभागका संक्रामक कौन होता है ? जो इन प्रकृतियोंका क्षपक इन्हींके अन्तिम समयप्रबद्धोंको अन्तिम फालियों का क्षेपण कर रहा हो वह उनके जघन्य अनुभागका संक्रामक होता है । विशेष इतना है कि पुरुषवेदका संक्रामक पुल्लिंगसे उपस्थित हुआ जीव होता है, ऐसा कहना चाहिये । नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागका संक्रामक कौन होता है ? नपुंसकवेदका क्षपक जो जीव नपुंसकवेदके उदयके साथ ही क्षपकश्रेणिपर आरूढ होकर नपुंसकवेदकी अन्तिम फालिका क्षेपण कर रहा हो वह उसके जघन्य अनुभागका संक्रामक होता है । स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागका संक्रामक कौन होता है ? जो स्त्रीवेदका क्षपक जीव अन्यतर वेदोदय के साथ क्षपकश्रेणिपर आरूढ होकर स्त्रीवेदके अन्तिम अनुभागकाण्डककी अन्तिम फालिका क्षेपण कर रहा हो वह स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागका संक्रामक होता हैं। छह नोकषायोंके जघन्य अनुभागसक्रामककी प्ररूपणा स्त्रीवेदके समान है । चार आयु कर्मोंके जघन्य अनुभागका संक्रामक कौन होता है? अपनी अपनी जघन्य स्थितियोंको रचकर बन्धावलीको वितानेवाला जीव उनके जघन्य अनुभागका संक्रामक होता है । अनन्तानबन्धी कषायोंके जघन्य अनभागका संक्रामक कौन होता है ? विसंयोजना करके जो तेइंदियो वा चरिदिओ वा पंचिदिओ वा । एव पट्टणं कसाणं । क. पा. सु. पू. ३५१, ४७-५०. ★ सम्मामिच्छ तस्स जहण्णाणुभागसंकामओ को होइ ? चरिमाणु भागखंडयं संछहमाणओ। क. पा. सु. पृ. ३५२, ५३-५४. xxxनियगचरमरसखंडे दिदिमोहदुगे । क. प्र. २, ५७. अ-काप्रत्यो: 'खवदि' ताप्रती 'खवदि (ओ,' इति पाठः। 0 अप्रतौ 'एदासि ' इति पाठः। कोहगंजलणस्स जहण्णाणभागसकामओ को होइ ? चरिमाणुभागबंधस्स चरिमसमयअणिल्लेवगो। एवं माण-मापासंजलण-पुरिसवेदाणं । क पा. सु. पृ. ३५३, ५७-५९. . इत्यिवेदस्स जहण्णाणभागसंकामओ को होइ? इत्थिवेदक्खवगो तस्सेव चरिमाणभागखंडए व माणओ। णवूमयवेदस्स जहण्णाणभागसंकामओ को होड? णवंसयवेदक्खवओ तस्सेव चरिमे अणुभागखंडए बट्टमाणओ। छण्णोकसायाणं जहण्णाणभागसंकामओ को होइ ? खवगो तेसिं चेव छण्णोकसायवेदणीयाणं चरिमे अणुभागखंडए वट्टमाणओ। क. पा. सु. पृ. ३५३, ६३-६७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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