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________________ संक्रमाणुयोगद्दारे अणुभागसंकमो ( ३७९ बादरेसु पज्जत्तएसु अपज्जत्तएसु वा होदि । उज्जोवणामाए उक्कस्साणुभागसंकमो कस्स ? सत्तमाए पुढवीए सणमोहुवसामगंतेण अधापवत्तकरणचरिमसमए जं बद्धमणुभागं आवलियादीदं संक्रममाणस्त । सो कत्थ होदि ? णेरइएसु तिरिक्खेसु मणुस्सेसु एइंदिएसु विलिदिएसु सुहमेसु बादरेसु पज्जत्तएसु अपज्जत्तएसु वा होदि । __णिरयगदीए सादस्स उक्कस्साणुभागसंकमो कस्स होदि ? चरिमसमयसुहमसांपराइएण उवसामएण जो बद्धो अणुभागो तमघादेदूण अण्णदरिस्से पुढवीए उववज्जेज्ज तस्स उक्कस्सअणुभागसंकमो। एवं सव्वत्थ वत्तव्वं*। एवमुक्कस्ससामित्तं समत्तं । __ एत्तो जहण्णाणुभागसंकमस्स सामित्तं- कसाए खवेंतस्स जाव अंतरं अकदं ताव अप्पसत्थाणं कम्माणं अणुभागसंतकम्मं सुहमसंतकम्मादो उरि होदि, अंतरं कदे सुहमसंतकम्मादो हेढदो होदि । एदेण बीजपदेण जहण्णसामित्तं कायव्वं । पंचणाणावरण-छदसणावरण-पंचंतराइयाणं जहण्गाणुभागसंकामओ को होदि? जो जहण्णट्टिदिसंकामओ सो चेव जहण्णाणुभागस्स वि संकामओ। एवं सम्मत्त-लोहसंजलणागं । सूक्ष्मोंमें, बादरों में, पर्याप्तकोंमें और अपर्याप्तकोंमें होता है। उद्योत नामकर्मका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रम किसके होता है ? सातवी पृथिवीमें दर्शनमोहका उपशम करनेवाले जीवके द्वारा अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें जो अनुभाग बांधा गया है, बन्धावलीके पश्चात् उसका संक्रम करनेवालेके उद्योतका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रम होता है। वह कहांपर होता है ? वह नारकियों में, तिर्यंचोंमें, मनुष्योंमें, एकेन्द्रियोंमें, विकलेन्द्रियोंमें, सूक्ष्मोंमें, बादरोंमें, पर्याप्तकोंमें और अपर्याप्तकों में होता है। नरकगतिमें सातावेदनीयका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रम किसके होता है ? अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्म साम्पराय उपशामकके द्वारा जो अनुभाग बांधा गया है उसका घात न करके जो अन्यतर पृथिवी में उत्पन्न होने वाला है उसके सातावेदनीयका उत्कृष्ट अनुभागसंक्रम होता है । इसी प्रकारसे सर्वत्र प्ररूपणा करना चाहिये । इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ। यहां जघन्य अनुभागसंक्रमके स्वामित्वका कथन किया जाता है- कषायोंका क्षपण करनेवाले जीवके, जब तक वह अन्तर नहीं करता है तब तक, अप्रशस्त कर्मों का अनुभागसत्कर्म सूक्ष्म एकेन्द्रियके सत्कर्मसे अधिक होता है। किन्तु अन्तर करनेपर वही सूक्ष्म एकेन्द्रियके सत्कर्मसे नीचे होता है। इस बीज पदके अनुसार जघन्य स्वामित्वको करना चाहिये । पांच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण और पांच अन्तरायके जघन्य अनुभागका संक्रामक कौन होता है ? जो इनकी जघन्य स्थितिका संक्रामक है वही उनके जघन्य अनुभागका भी संक्रामक होता है। इसी प्रकार सम्यक्त्व और संज्वलन लोभके सम्बन्धमें कहना चाहिये। * सम्बत्याचावुज्जोव-मगुसगइपंचगाग आऊणं । समयाहिगालिगा सेसग त्ति सेसाण जोगता। क. प्र. २-५४. नताप्रतौ 'पा मत्तं कस्स? कसार' इति पाठः। अ-काप्रत्यो: 'अंतरं कथं', ताप्रती ' अंतर कद' इति पाठः। * खवगस्संतकरणे अकए घाईण सूहमकम्मुवरि । क. प्र. २-५५. अप्रती 'संकामओ' का-ताप्रत्योः 'संकमो' इति पाठः । .ताप्रतौ 'लोहसंजलणाणं' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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