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________________ ३६८ ) छक्खंडागमे संतकम्म गुणा । मणुस-तिरिक्खाउआणं संखेज्जगुणाओ । जद्विदी विसे० । अणंताणुबंधीगं असंखेज्जगुणाओ। जट्ठिदीओ विसे । आहारसरीर० असंखे० गुणाओ। जट्ठिदीओ विसे० ओ। सम्मामिच्छत्तस्स असंखे० गुणाओ। देवगइ-णिरयगइ-वेउब्वियसरीर० असंखे० गुणाओ। उच्चागोदस्स विसे० ओ। मणुसगइ० विसे० ओ। जसकित्ति० विसे० । अजसकित्ति० विमे० ओ। तिरिक्खगई. विसे० ओ । ओरालिय-तेजाकम्मइय० विसे० । सादस्स० विसे० । सेसाणं तीसियाणं विसे० । पुरिसवेद० विसेसा० । इथिवेद० विसे । हस्स-रदि० विसे० । णवंसयवेद० विसे० । अरदिसोग० विसे० । भय-दुगुंछाणं जाओ द्विदीओ ताओ विसे० । बारसकसायाणं जाओ द्विदीओ ताओ विसे० । मिच्छत्तस्स विसे०। सव्वासि पि जट्ठिदीयो विसेसाहियाओ। तिरिक्खगईए तिरिक्खेसु तिरिक्खाउअस्स सम्मत्तस्स य जो जहण्णढिदिसंकमो (सो) थोवो। जट्टिदिसंकमो असंखेज्जगुणो। मणुस्साउअस्स संखे० गुणाओ। देवाउअस्स णिरयाउअस्स य संखेज्जगुणाओ । अणंताणुबंधोणं असंखे० गुणाओ। णिरयगइ-देवगइ-मणुसगइ-वेउव्विय-आहारसरीर-उच्चागोदाणं जाओ द्विदीओ ताओ असंखे० गुणाओ। सम्मामिच्छत्तस्स० संखे० गुणाओ। जसकित्तीए असंखे० गुणा । अजस गित्तीए गुणी है । मनुष्यायु और तिर्यगायुकी प्रकृत स्थितियां संख्यातगुणी हैं। जस्थितियां विशेष अधिक है । अनन्तानुबंधी कषायोंकी असंख्यातगुणी हैं । जस्थितियां विशेष अधिक हैं। आहारशरीरकी असंख्यातगुणी हैं। जस्थितियां विशेष अधिक हैं। सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगणी हैं। देवगति, नरकगति और वैक्रियिकशरीरकी असंख्यातगणी हैं । उच्चगोत्रकी विशेष अधिक हैं। मनुष्यगतिकी विशेष अधिक हैं। यशकीर्तिकी विशेष अधिक हैं । अयशकीर्तिकी विशेष अधिक हैं। तिर्यंचगतिकी विशेष अधिक हैं। औदारिकशरीर, तैजसशरीर और कार्मणशरीरकी विशेष अधिक हैं । सातावेदनीयकी विशेष अधिक हैं। शेष विशिक प्रकृतियोंकी विशेष अधिक हैं। पुरुषवेदकी विशेष अधिक हैं। स्त्रीवेदकी विशेष अधिक हैं। हास्य व रतिकी विशेष अधिक हैं । नपुंसकवेदकी विशेष अधिक हैं । अरति व शोककी विशेष अधिक हैं । भय और जुगुप्साकी जो उक्त स्थितियां हैं वे विशेष अधिक है। बारह कषायोंकी जो उक्त स्थितियां हैं वे विशेष अधिक हैं। मिथ्यात्वकी जो उक्त स्थितियां हैं विशेष अधिक हैं। सभीकी जस्थितियां विशेष अधिक हैं। तिर्यंचगतिमें तिर्यंचोंमें तिर्यंचआयु और सम्यक्त्वका जो जघन्य स्थितिसंक्रम है वह स्तोक है । जस्थितिसंक्रम असंख्यातगणा है। मनुष्यायुकी उक्त स्थितियां संख्यातगुणी हैं। देवायु और नारकायुकी संख्यातगुणी हैं । अनन्तानुबंधी कषायोंकी असंख्यातगुणी हैं। नरकगति, देवगति, मनुष्यगति, वैक्रियिकशरीर, आहारकशरीर और उच्चगोत्रकी जो उक्त स्थितियां हैं वे असंख्यातगुणी हैं । सम्यग्मिथ्यात्वकी संख्यातगुणी हैं । यशकीर्तिकी असंख्यातगुणी हैं । अयशकीर्तिकी अप्रतौ 'सिमाग.', काप्रतौ 'तिसाणं', ताप्रतौ 'तस (तीसि ) याणं.', मप्रती 'तसयाणं.' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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