________________
संकमाणुयोगद्दारे पर्याडिसंकमो
( ३६७
जहणण पंचणाणावरणीय छदंसणावरणीय-सम्मत्त - लोहसंजलण चत्तारिआउपंचतराइयाणं जह० द्विदिसंकमो एगा ट्ठिदी । जद्विदीओ असंखेज्जगुणाओ । णिद्दापलाणं जट्ठिदीओ संखे० गुणाओ । कुदो ? आवलि० असंखे० भाएणन्भहियदोआवलिय पमाणत्तादो। देवगइ वे उव्वियसरीर - आहारसरीर अजसकित्ति - णीचागोदाणं जाओ ट्ठिदीओ ताओ संखे० गुणाओ । मणुसगइ ओरालिय- तेजा - कम्मइयसरीरजसकित्ति उच्चागोदाणं जाओ द्विदीओ ताओ विसेसा० । सव्वासि जद्विदीयो विसेसा० । सादासादाणं जाओ द्विदीओ ताओ विसेसा० । जट्ठिदिसंकमो विसे० । मायासंजलण० जाओ द्विदीओ ताओ संखे० गुणाओ । जट्ठिदी विसे० । माणे विसे० । कोधे विसे० । पुरिस० संखे ० गुणाओ । छण्णोकसाय० संखे० गुणाओ । इत्थि णवंसयवेद० असंखे ० गुणाओ # । थोणगिद्धितियस्स जहण्णद्विदी असंखे० गुणा । णिरय-तिरिक्खगईणं असं० गुणाओ । अट्ठकसायाणं जाओ द्विदीओ ताओ असंखे० गुणाओ । सम्मामिच्छत्तस्स असंखे० गुणाओ । मिच्छत्तस्स असंखे० गुणाओ । अनंताणुबंधीणं असंखेज्जगुणाओ । सव्वासि जद्विदीयो विसे० ओ ।
रिगईए णिरयाउअस्स सम्मत्तस्स य जहण्णद्विदिसंकमो थोवो । जट्ठिदी असंखे ०
जघन्य पदकी अपेक्षा पांच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, सम्यक्त्व, संज्वलन लोभ, चार आयु और पांच अन्तराय; इनका जघन्य स्थितिसंक्रम एक स्थितिस्वरूप है । जस्थितियां असंख्यातगुणी हैं । निद्रा और प्रचलाकी जस्थितियां संख्यातगुणी हैं, क्योंकि, वे आवलीके असंख्यानवें भागसे अधिक दो आवली प्रमाण हैं । देवगति, वैक्रियिकशरीर, आहारशरीर, यशकीर्ति और नीचगोत्र इनकी जो जघन्य स्थितियां संक्रान्त होती हैं वे संख्यातगुणी हैं । मनुष्यगति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, यशकीर्ति और उच्चगोत्र इनकी जो उक्त स्थितियां हैं वे विशेष अधिक हैं । सबकी जस्थितियां विशेष अधिक हैं । साता और असातावेदनीयकी जो उक्त स्थितियां हैं वे विशेष अधिक हैं । जस्थितिसंक्रम विशेष अधिक है, संज्वलन मायाकी जो उक्त स्थितियां हैं वे संख्यातगुणी हैं । जस्थितियां विशेष अधिक हैं । संज्वलन मानमें विशेष अधिक हैं । संज्वलन क्रोधमें विशेष अधिक हैं । पुरुषवेदकी संख्यातगुणी हैं। छह नोकषायोंकी संख्यातगुणी हैं । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी उक्त स्थितियां असंख्यात गुणी हैं। स्त्यानगृद्धि आदि तीनकी जघन्य स्थिति असंख्यातगुणी है। नरकगति और तिर्यग्गतिको उक्त स्थितियां असंख्यातगुणी हैं । आठ कषायोंकी जो उक्त स्थितियां है वे असंख्यातगुणी हैं । सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणी हैं । मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणी हैं । अनन्तानुबन्धी कषा - योंकी संख्यातगुणी हैं। सबकी जस्थितियां विशेष अधिक हैं ।
नरकगति नारका और सम्यक्त्वका जघन्य स्थितिसंक्रम स्तोक है । जस्थिति असंख्यात -
अप्रती 'भारणञ्चहियादोआव लिय ' ताप्रती 'मागेण भहियादो आवलिय' इति पाठः अप्रती 'जा' इति पाठः । अ-काप्रत्योः ' गुणा' इति पाठः । अ-काप्रत्योः अष्टकषान-सम्यग्मिथ्यात्व सम्बन्धि सन्दर्भोJain Educsयं त्रुटितोऽस्ति, मप्रतितः कृतसंशोधने च केवलमष्टकषाय सम्बन्धि सन्दर्भों योजितो न तु सम्यग्मिथ्यात्वसम्बन्धी ।
For Private & Personal Use
www.jainelibrary.org