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________________ संकमाणुयोगद्दारे ट्ठिदिसंकमो ( ३६५ सोलसणं कसायाणं जाओ द्विदीओ ताओ तुल्लाओ । जट्रिदीओ विसे० ओ। सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणं जाओ द्विदीओ ताओ विसे० ओ। जद्विदीओ विसे० ओ। मिच्छत्तस्स जाओ द्विदीओ ताओ विसे० ओ । जद्विदीयो विसेसाहियाओ। णिरयगगईए रइएसु मणुस-तिरिक्खाउआणं जाओ द्विदीओ ताओ थोवाओ । जट्टिदीओ विसेसाहिओ । गिरयाउअस्स जाओ द्विदीओ ताओ असंखे० गुणाओ। जट्ठिदीओ विसे० ओ। आहारसरीरस्स जाओ द्विदीओ ताओ संखे० गुणाओ। जट्टिदीयो विसे० ओ। देवगईए जाओ द्विदीओ ताओ संखे० गुणाओ। जट्टिदी० विसे० । मणुसगइ-जसकित्ति-उच्चागोदाणं जाओ द्विदीओ ताओ विसे० । जट्ठिदीयो विसे० । णिरयगइ-बेउव्वियसरीर-णीचागोदओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीर-अजसकित्तीणं जाओ छिदीओ ताओ तत्तियाओ चेव। जट्ठिदीयो विसे० ओ। सादस्स जाओ द्विदीओ ताओ विसे० ओ। जद्विदीयो विसे । पंचणाणावरण-णवदंसणावरण-असाद-पंचंतराइयाणं जाओ द्विदीओ ताओ तत्तियाओ चेव । जट्ठिदीयो विसे० ओ। णवणोकसायाणं जाओ द्विदीओ ताओ विसे० ओ। जट्ठिदीयो विसे० ओ । सोलसकसायाणं जाओ ट्ठिदीओ ताओ तत्तियाओ चेव । जद्विदीयो विसे० । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जाओ द्विदीओ सोलह कषायोंकी जो स्थितियां संक्रान्त होती हैं वे समान रूपसे तुल्य होकर उतनी मात्र ही हैं । जस्थितियां विशेष अधिक हैं । सम्यक्त्व और सम्यांग्मथ्यात्वकी जो स्थितियां संक्रांत होती हैं वे विशेष अधिक हैं। जस्थितियां विशेष अधिक हैं। मिथ्यात्वकी जो स्थितियां संक्रांत होती हैं वे विशेष अधिक हैं । जस्थितियां विशेष अधिक है । नरकगतिमें नारकियोंमें मनुष्यायु और तिर्यगायुकी जो उक्त स्थितियां हैं वे स्तोक हैं। जस्थितियां विशेष अधिक है। नारकायुकी जो उक्त स्थितियां हैं वे असंख्यातगुणी हैं। जस्थितियां विशेष अधिक हैं। आहारशरीरकी जो उक्त स्थितियां हैं वे संख्यातगणी हैं । जस्थितियां विशेष अधिक हैं । देवगतिकी जो उक्त स्थितियां हैं वे संख्यातगुणी हैं । जस्थितियां विशेष अधिक हैं। मनुष्यगति, यशकीर्ति और उच्चगोत्रकी जो उक्त स्थितियां हैं वे विशेष अधिक हैं। जस्थितियां विशेष अधिक हैं। नरकगति, वैक्रियिकशरीर, नीचगोत्र, औदारिक, तैजस एवं कार्मणशरीर तथा अयशकीर्तिकी जो उक्त स्थितियां हैं वे उतनी मात्र ही हैं। जस्थितियां विशेष अधिक हैं । सातावेदनीयकी जो उक्त स्थितियां हैं वे विशेष अधिक हैं । जस्थितियां विशेष अधिक हैं। पांच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय और पांच अन्तरायकी जो उक्त स्थितियां हैं वे उतनी मात्र ही हैं। जस्थितियां विशेष अधिक हैं। नौ नोकषायोंकी जो उक्त स्थितियां हैं वे विशेष अधिक हैं। जस्थितियां विशेष अधिक हैं। सोलह कषायोंकी जो उक्त स्थितियां हैं वे उतनी मात्र ही हैं । जस्थितियां विशेष अधिक हैं। सम्यक्त्व और सम्यमिथ्यात्वकी जो उक्त ४ अप्रतौ ' जाओ द्विदीयो', काप्रती 'ज० द्विदीयो' इति पाठः । ताप्रती — विसे० रखे० Jain Educ गुणाओ । णिरयगइ' इति पाठः। * अप्रती जपणद्विदीयो', का-ताप्रत्योः 'ज. ट्ठिदीयो' इति पाठः। www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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