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सं माणुयोगद्दारे ट्ठिदिसंकमो
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बंधी च जहण द्विदिसंकमकालो जह० एगसमओ, उक्क० आवलि० असंखे भागो * । तिरिक्खाउअस्स जहण्णट्ठि दिसंकामया केवचिरं० ? सव्वद्धा । परभवियं पडुच्च आवलि० असंखे० भागो । सेसाणं कम्माणं जह० ट्ठिदिसंकामया केवचिरं ? जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया । सव्वकम्माणं पि अजहण्णट्ठिदिसंकामया केवचिरं ? सव्वद्धा । एवं णाणाजीवेहि कालो समत्तो ।
णाणाजीवेहि अंतरं । तं जहा - णिरयाउअस्स उक्कस्सट्ठि दिसंकामयंतरं जट्ठिदिसंकामया त्ति जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । पंचणाणावरणणवदंसणावरण-सादासाद - - सोलस कसाय - णवणोकसाय - मणुस - - तिरिक्ख --- देवाउआणं मिच्छत्त-सम्मत्त - सम्मामिच्छत्ताणं सव्वासि णामपयडीणं उच्च-णीचगोद-पंचंतराइयाणं च उक्कस्सट्ठिदिसं कामयंतरं जह० एगसमओ, उक्क० अंगुलस्स असंखे ० भागो ।
जीवेहि जट्ठिदिसंकामयंतरं । तं जहा - पंचणाणावरण-णवदंसणावरणसादासाद-मिच्छत्त-सम्मत्त - सम्मामिच्छत्त- अट्ठकसाय - छण्णोकसाय -- लोहसंजलणाणंसव्वासि णामपडीणमुच्च णीचागोद-पंचंतराइयाणं च जह० ट्ठिदिसंकामयंतरं णाणाजीवे पडुच्च जह० एगसमओ, उक्क० छम्मासा | अनंताणुबंधि जह० ट्ठिदिसंकामयंतरं
जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र है । तिर्यगायुकी जघन्य स्थिति के संक्रामकों का कितना काल है ? सर्वकाल है । परभविककी अपेक्षा वह आवलीके असंख्यातवें भाग मात्र है । शेष कर्मोंकी जघन्य स्थितिके संक्रामकों का कितना काल है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से संख्यात समय मात्र है । सभी कर्मोंकी अजघन्य स्थिति के संक्रामकोंका काल कितना है ? सर्वकाल है । इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा कालकी प्ररूपणा समाप्त हुई ।
नाना जीवों की अपेक्षा अन्तरकी प्ररूपणा की जाती है । यथा - नारकायुकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंका अन्तर, जस्थितिके संक्रामक रहनेके कारण जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र होता है । पांच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, मनुष्यायु, तिर्यगायु, देवायु, मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सब नामप्रकृतियां, उच्चगोत्र, नीचगोत्र और पांच अन्तराय; इनकी उत्कृष्ट स्थिति के संक्रामकोंका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र होता है ।
नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य स्थितिके संक्रामकोंका अन्तर इस प्रकार है- पांच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, आठ कषाय, छह नोकषाय, संज्वलनलोभ, सब नामप्रकृतियां, उच्चगोत्र, नीचगोत्र और पांच अन्तराय ; इनकी जघन्य स्थिति के संक्रामकोंका अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से छह मास प्रमाण होता है । अनन्तानुबन्धी कषायोंकी जघन्य स्थितिके संक्रामकोंका अन्तर
वरि अनंताणुबंधीणं जहण्णट्ठिदिसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? जहणेण एयसमओ । उक्कस्सेण आवलिया असंखेज्जदिभागो । क. पा. सु. पू. ३२४, १०४ - ६. ॐ मप्रतौ ' सव्वसव्वद्धा ' इति पाठः ।
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