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________________ ३६० ) छक्खंडागमे संतकम्म समओ। सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं उक्कस्सटिदिसंकामयंतरं जह० अंतोमहत्तं, उक्क० उवड्ढपोग्गलपरियढें। पंचतराइयाणं उक्कस्सद्विदिसंकामयंतरं जह० अंतोमहत्तं, उक्क० असंखे० पोग्गलपरियट्टा। देव-णिरयाउआणं उक्क० टिदिसंकामयंतरं जह० अंतोमुत्तं। उक्क० देवाउअरस उवड्ढपोग्गलपरियट्टं णिरयाउअस्स असंखे० पोग्गलपरियट्टा । जििद पडुच्च देवणिरयाउआणं उक्कस्सटिदिसंकामयंतरं जह० समऊणपुव्वकोडी दसवस्ससहस्साणि च, उक्क० तं चेव। मणुस-तिरिक्खाउआणं उक्कस्सद्विदिसंकामयंतरं जह० अंतोमहत्तं, उक्क० असंखे० पोग्गलपरियट्टा। जििद २ पडुच्च जह० पुवकोडी समऊणा। उक्कस्संतरं तं चेव । उक्कस्सदिदि बंधमाणो जाओ णाम पयडीओ बंधदि तासि णामपयडीणं उक्कस्सढिदिसंकामयंतरं जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० असंखे० पोग्गलपरियट्टा । सेसागं णामपयडोणं उक्कस्सटिदिसंकामयंतरं जह०एयसमओ, उक्क० असंखेन्पोग्गलपरियट्टा। आहारसरीर-आहारसरीरंगोवंग-बंधण-सांघादाणं उक्कस्सट्ठिदिसंकामयंतरं जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० उवड्ढपोग्गलपरियट्टं। तित्थयरणामाए उक्कस्स डिदिसंकामयंतरं णत्थि । जघन्यसे एक समय मात्र है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका अन्तरकाल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन मात्र है। पांच अन्तराय कर्मोकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका अन्तरकाल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गल परिवर्तन मात्र है। देवायु और नारकायुकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका अन्तरकाल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त है। उत्कर्षसे वह देवायुका उपाधं पुद्गल परिवर्तन तथा नरकायुका असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र है। जस्थितिकी अपेक्षा देवायु और नरकायुकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका अन्तरकाल जघन्यसे एक समय कम एक पूर्वकोटि और दस हजार वर्ष तथा उत्कर्षसे भी उतना मात्र ही है। मनुष्याय और तिर्यगायुकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका अन्तरकाल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र है। जस्थितिकी अपेक्षा वह जघन्य से एक समय कम पूर्वकोटिप्रमाण है । उत्कृष्ट अन्तरकाल भी उसका वही है। उत्कृष्ट स्थितिको बांधनेवाला जीव जिन नामकर्मकी प्रकृतियोंको बांधता है उन प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका अन्तर जघन्यसे अन्तर्महर्त और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र है। शेष नामप्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका अन्तरकाल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन मात्र है । आहारशरीर, आहारशरीरांगोपांग. आहारक शरीरबंधन और आहारकशरीरसंघातकी उत्कष्ट स्थितिके संक्रामकका अन्तरकाल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन मात्र है। तीर्थकर नामकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका अन्तरकाल सम्भव नहीं है। ४ ताप्रती 'जं ट्ठिदि ' इति पाठः । * अप्रतौ — सुणाम' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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