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________________ संकमाणुयोगद्दारे ट्ठिदिसंकमो जहण्णदिदिसंकमो कस्स ? खवगस्स अपच्छिमट्ठिदिखंडयचरिमसमए वट्टमाणस्स । सादासादाणं जहण्णट्ठिदिसंकमो कस्स ? चरिमसमयसजोगिस्स। मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जहण्णट्ठिदिसंकमो कस्स ? दसणमोहक्खवगस्स अपच्छिमट्ठि दिखंडयचरिमसमए वट्टमाणस्स* । अणंताणुबंधीणं जहण्णढिदिसंकमो कप्स ? अणंताणुबंधि विसंजोएंतस्स अणंताणुबंधीणं अपच्छिमट्टिदिखंडयचरिमसमए वट्टमाणस्स । अट्ठण्णं कसायाणं जहण्णट्ठिदिसंकमो कस्स ? अट्ठकसायक्खवगस्स अपच्छिमट्ठिदिखंडयस्स चरिमफालि पादेंतस्स। णवंसय वेदस्स जहण्णढिदिसंकमो कस्स ? णवंसयवेदेण खवगसेडिमुवट्ठियस्स खवगस्स णवंसयवेदचरिमट्टिदिखंडयचरिमफालि संछहमाणस्सD । इथिवेदस्स जहण्णद्विदिसंकमो कस्स ? इत्थिवेदोदएण अणुदएण वा खवगसेडिमारूढस्स खवगस्स इत्थिवेदचरिमद्विदिखंडयचरिमफालि संकममाणस्स। छण्णोकसायाणं जहण्णट्ठिदिसंकमो कस्स ? छण्णोकसायखवगस्स तेसि चरिमट्ठिदिखंडयचरिमफालि संकममाणस्स। कोध-माण-मायासंजलणाणं जहण्णछिदिसंकमो कस्स? तेसि खवयस्स अपच्छिमसमयजघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? वह अन्तिम स्थितिकाण्डकके चरम समयमें वर्तमान क्षपकके होता है। साता और असाता वेदनीयका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? वह अन्तिम समयवर्ती सयोगीके होता है । मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जधन्य स्थितिसंक्रम किसके होता हैं ? वह अन्तिम स्थितिकाण्डकके चरम समयमें वर्तमान दर्शनमोहक्षपकके होता है। अनन्तानुबन्धी कषायोंका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? वह अनन्तानुबन्धी कषायोंके अन्तिम स्थितिकाण्डकके चरम समयमें वर्तमान ऐसे अनन्तानुबन्धी की विसंयोजना करने वाले जीवके होता है । आठ कषायोंका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? वह अन्तिम स्थितिकाण्डककी चरम फालिको नष्ट करनेवाले ऐसे आठ कषायोंके क्षपकके होता हैं। नपुंसक वेदका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? वह नपुंसक वेदसे क्षपकश्रेणिपर उपस्थित हुए उस क्षपकके होता है। जो नपुंसकवेदके चरम स्थितिकाण्डककी चरम फालिका क्षेपण कर रहा है। स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? जो क्षपक स्त्रीवेदके उदय अथवा उसके अनुदयके साथ क्षपकश्रेणिपर आरूढ होकर स्त्रीवेदके चरम स्थितिकांडककी चरम फालिका संक्रमण कर रहा है। छह नोकषाययोंका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है ? वह उनके चरम स्थितिकांडककी चरम फालिका संक्रमण करनेवाले छह नोकषायोंके क्षपकके होता है। संज्वलन क्रोध, मान और मायाका जघन्यस्थितिसंक्रम किसके होता है ? वह उनके क्षपकके होता ह * क. पा. सु. पृ. ३२०, ५४-५५. ४ अणंताणुवंधीणं जहण्णट्टि देसंकमो कस्स ? विसंजोएंतस्स तेसिं चेव अच्छिमट्ठदिखंडयचरिमसमयसंकामयस्स । क. पा. सु. पृ. ३२०, ६०-६१. . अट्ठण्हं कसायाणं जहण्णदिदिसंकमो कस्स ? खवयस्स तेसि चेव आच्छिमदिदिखंडयं चरिमसमयसंछुहमा गयस्स जहण्ण । क. पा सु ३२०, ६२-६३. 0 क पा सू प. ३२१, ७१-७२. इत्यिवेदस्स जहण्णदिदिसंकमा कस्स? ख वयस्स इस्थिवेदोदयक्खवयस्स तस्स अपच्छिमट्ठिदिखंडयं संछहमागयस्स तस्स जहण्णयं । क, पा. सु. पृ. ३२१, ६९-७०. क. पा. सु. पृ. ३२२, ७३-७४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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