SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५२ ) छक्खंडागमे संतकम्म असंखे० भागो । देवगई-देवगइपाओग्गाणुपुत्वी--मणुसगइ--मणुसगइओग्गाणुपुवी-- पंचसरीर-पंचसरीरबंधण-पंचसरीरसंघाद-छसंठाण-छसंघडण-पसत्थापसत्थवण्ण-गंधरस-फास--अगुरुअलहुअ--उवघाद-परघाद-उस्सास-पसत्थापसत्थविहायगइ-तस-बादरपज्जत्तापज्जत्त-पत्तयसरीर-थिराथिर-सुहासुह-सुभग--दूभग--सुस्सर-दुस्सर - आदेज्जअणादेज्ज-जसकित्ति-अजसकित्ति-णिमिण-तित्थयर-णीचुच्चागोदाणं जहण्णढिदिसंकमो अंतोमुहुत्तं । एवं जहण्णुक्कस्सअद्धाच्छेदो समत्तो। एत्तो सामित्तं । तं जहा- जहा उक्कस्सियाए द्विदीए उदीरणाए सव्वकम्माणं पि सामित्तं परूविदं तहा उक्कस्सटिदिसंकमे वि सव्वकम्माणं पि सामित्तं परूवेयव्वं । एवमुक्कस्सछिदिसंकमसामित्तं समत्तं । जहण्णढिदिसंकमसामित्तं वत्तइस्सामो । तं जहा- पंचणाणावरण-चउदंसणावरण-पंचतराइयाणं जहण्णढिदिसंकमो कस्स ? समयाहियावलियचरिमसमयछदुमत्थस्स । णिद्दा-पयलाणं जहण्णटिदिसंकमो कस्स ? दोहि आवलियाहि आवलियाए असंखे० भागेण चरिमसमयछदुमत्थस्स। णिहाणिद्दा--पयलापयला--थीणगिद्धीणं और साधारणशरीर नामकर्मोका जघन्य स्थितिसंक्रम पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र है। देवगति, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, मनुष्यगति, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, पांच शरीर, पांच शरीरबन्धन, पांच शरीरसंघात, छह संस्थान, छह संहनन, प्रशस्त व अप्रशस्त वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर शभ, अशभ, सभग, दर्भग, सस्वर, दस्वर. आदेय. अनादेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, तीर्थकर, नीचगोत्र और उच्चगोत्र; इनका जघन्य स्थितिका संक्रम अन्तर्मुहूर्त मात्र है। इस प्रकार जघन्य व उत्कृष्ट अद्धाच्छेद समाप्त हुआ। यहां स्वामित्वका कथन करते हैं। वह इस प्रकार है-- जिस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणामें सभी कर्मोंके स्वामित्वकी प्ररूपणा की गयी है उसी प्रकारसे उत्कृष्ट स्थितिके संक्रममें भी सभी कर्मों के स्वामित्वकी प्ररूपणा करना चाहिये । इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमका स्वामित्व समाप्त हुआ। जघन्य स्थितिसंक्रमके स्वामित्वका कथन करते हैं। वह इस प्रकार है- पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पांच अन्तरायकी जघन्य स्थितिका संक्रम किसके होता है ? जिसके चरम समयवर्ती छद्मस्थ होने में एक समय अधिक आवली मात्र शेष है उसके उपर्युक्त प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिसंक्रम होता है। निद्रा और प्रचलाका जघन्य स्थितिसंक्रम किसके होता है? जिसके अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थ होने में दो आवली और आवलीका असंख्यातवां भाग शेष रहा है उसके निद्रा और प्रचलाका जघन्य स्थितिसंक्रम होता है। निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धिका ४सामित्तं । उकास्सट्ठिदिसकामयस्स सामित्तं जहा उक्कस्सियाए द्विदीए उदीरणा तहा णेदव्वं । __क. पा. सु. पृ. ३१९, ५१-५२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy