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________________ ५५) परिशिष्ट सुपर्ण सुभग सुर सूरसेन सुखदुखपञ्चक १५-१६४ सूक्ष्मसाम्परायिक ७.५, ८.४ / संकलनसूत्र ३ ९१,९३ सुगन्धर्व ४-३१९ , सूक्ष्माद्धा ५,११९ संकलनसंकलना १०.२०० सुचक्रधर १.५८ सूचीक्षेत्रफल ४.१६ | संकलना ४.१५९; १३.२५६ सूच्यंगुल ३.१३२,१३५,४.१० | सूत्र १.११०,८.५७,९.२०७, | संकुट १.१२० २०३,२१२,९.२१ २५९,१४.८ संक्लेश ६.१८०; ११.२०९ सुनयवाक्य ९-१८३ | सूत्रकृत १.९९ ३०९ १३-३९१ / सूत्रकृतांग ९.१९७ सक्लेशक्षय १६.३७० ६-६५,८-११ १३.२८९ / संक्लेशस्थान ११.२०८ सुभगनाम १३-३६३,३६६ | सूत्रपुस्तक १३.३८२] संक्लेशावास १०.५१ सुभिक्ष १३-३३२,३३६ सूत्रसम ९२५९,२६१,२६८; ] संख्या ३.७ १३-३९१ १३.२०३, १४.८ संख्यात ३.२६७; १३.३०४, सुरभिगन्ध ६.७५ १३.३३५ ३०८ सुरभिगन्धनाम १३ ३७० सूर्पक्षेत्र ४.१३ | संख्यातगुणवृद्धि ११.३५१ सुषमसुषमा ९.११९ सूर्य ४.१५०,३१९ संख्यातभागवृद्धि ११.३५१ सुषिर १३.२२१ सूर्यप्रज्ञप्ति १.११०; १.२०६ संख्यातयोजन १३.३१४ सुस्वर ६.६५,८.१० सेचिकस्वरूप ५२६७ | संख्यातवर्षायुष्क ८.११६; सुस्वरनाम सेचीयादो उदय १५.२८९ १०.२३७ | सेन १३.२६१ संख्यातीतसहस्र १३.३१५ सूक्ष्म १.२५०,२६७; ३-३३१ सोपक्रमायु । ९८९ | सोपक्रमायुष्क १०.२३३,२३८ संख्येयगुणवृद्धि ६-६२; ८-९ १६ २२, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति १३-८३. सोम १३.११५,१४१ सोमरुचि सस्येयभागवृद्धि ६ २२, १९९ १६-५२१,५७९ १३.११५,१४१ सौद्धादनि सूक्ष्म क्रियाप्रतिपातिध्यान १३.२८८ गस्ययराशि ४.:३८ सौधर्म संख्यय वर्षायुक ४.२३५ ६-४१६; १०-३२५ ११.८९ | सौधमंइन्द्र सूक्ष्मकर्म ९.२१३,१२९ १.८४ १-२५३ सौधर्मविमान ४.२२९,२३५ संग्रहकृष्टि ६.६७५ सूक्ष्मत्व १०-४३ सूक्ष्मनाम १३.३६३,३६५ | सौधर्मादि ४.५६२| संग्रहनय ६.९९,१०१,१०४; सूक्ष्मनिगोदजीव १३.३०१ | संयम ९.१७०,१३.४,५, १६ ४९५ सुक्ष्मानगोदवर्गणा १४-११३ संक्रमण ५.१७१, ६.१६८ ३९,१९९ सूक्ष्मप्ररूपणा १२.१७४ | सक्रममार्गणा १६.५१९ | संघवयावृत्य १३.६३ सूक्ष्मसाम्पराय संक्रमस्थान १.३७३ | ६.२३; १२.४८०; १२.२३१; | संघात सूक्ष्मसांपरायकृष्टि ६.२९६ १६.४०८ १३.२६०; १४.१२१ सूक्ष्मसांपरायकादिक ७.५ | संकर १४.१३४ सूक्ष्मसाम्परायसंयत ८.३०८ | संकरअनुयोगद्वार ९.२३४ | संघातनकृति ९.३२६ सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयत संकलन ४.१४४,१९९; संघातनपरिशातन ९.३२७ १-१८६,३७१, ७-९४ १०.१२३ संघातसमास ६.२३; १२.४८० | संघातसमासश्रुतज्ञान १३.२६९ संग्रह ९.२४० | संघातज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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