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________________ धवलासहितसमग्रषट्खंडागमस्य पारिभाषिक-शब्द-सूची ८.८ सहानवस्थानलक्षणविरोध | साधिकमास १३-३०६ | साम्परायिकबन्धन ७-५ ४-२५९,४१२, ७-४३६ | साधु १-५१,८-८७,३६४ / सारभट ४-३१८ ४-३१९ साकार उपगोग १३-२०७ | साधसमाधि ८-७९,८८| सावित्र | सासादन साकारोपयुक्त ६ २०७ | साध्य सान साकारक्षय | सासादनगुण १३-२२४ १५-२३८, ५-७; ६-१८५ सासादनकाल ४-६५१ २६४ सानत्कुमार ४-२३५ सासादनपश्चादागतसागर ३-१३२,४-१०,१८५ सान्तर ५-२५७, ८-७ मिथ्यादृष्टि सागरोपम ४-१०,१८५,३१७, सान्तरक्षेत्र १३-७ सासादनमारणणान्तिक३६०,३८०,३८७ ; ५-६; सान्तरनिरन्तर क्षेत्रायाम ४-१६२ १३-२९८, | सान्तरनिरन्तरद्रव्यवर्गणा सासादनसम्यक्त्व ६-४८७ १४-४७४मासादनसम्यक्त्वपृष्ठायत सागरोपमपृथक्त्व ५-१० | सान्तरबन्धप्रकृति ८-१७ ४-३२५ सागरोपमशतपृथक्त्व ४-४००, सान्तरवक्रमणकाल १४-४४७ ४-३२५ सान्त रवक्रमणकालविशेष ४४१,४८. ;५-७२ ...सासादनसम्यग्दृष्टि १-१६६; सात १४-४७७ १३.३५७ ६-४४६,४५८,४५९, सान्तरसमयोपक्रमणकाल सातबन्धक ११-३१२ ४६६,४७१, ७-१०९; साताद्धा १४-४७४ १०-२४३ ८-४,३८० सान्त रसमयोपक्रमणकालसाताम्यधिक सासंयमसम्यक्त्व ५-१६ विशेष सातावेदनीय १३-३५६,३५७ १४-७५ सांख्य ६-४९०, ९-३२३ सातासात सान्तरोवक्रमणजघन्यकाल ९-२३५ सांशयिकमिथ्यात्व ८-२० सातासातबंधपरावृत्ति १४-४७६ सिद्ध १-४६,४-३३६, सान्तरोपक्रमणवार ४-३४० ५-१३०,१४२ ४७७; ९-१०२,१४-१३ सादिक ८-८ सान्निपातिकभाव ५-१९३ सिद्धगति सादिविस्रसाबन्ध १४-३४ | सामान्य १३-१९९,२३४ सिद्धभाव १४-१७ सादिशरीरबन्ध १४-४५ सामान्य मनुष्य ७-५२; | सिद्धसेन सादिसान्तनामकर्म १६-४०४ १५-९३ सिक्थ्यमत्स्य११.५२,१२.३९० सादृश्यसामान्य ४-३,१०-१०; सामायिक १-९६;९-१८८ सिद्धत्रत्वकाल ५-१०४ ११, १३-१९९ सामायिकछेदोपस्थापन सिद्धयमानभव्य ७-१७३ साधन | शुद्धिसंयत ८-२९८ सिद्धायतन ९-१०२ साधारण सामायिकछेदोपस्थापना सिद्धार्थ ४-३१९ शुद्धिसंयत साधारणजीव १४-२२७,४८७ ७-९१ | सिद्धिगति १-२० सामायिकभावश्रुत साधारणनाम १३-३६३,३६५ सिद्धिविनिश्रय १३-३५६ सामायिकशुद्धिसंयत १-३७३ सिंहल साधारणभाव ५-१९६ १३-२२२ साधारणलक्षण १४-२२६ | सामायिकशुद्धि संयम १-३६९ | सुख ६-३५; १३-२०८,३६२ साधारणशरीर१-२६९,३-३३, ३७० ३३४,३४१,१४-३२८ ६-६३, १३.३८७; १४-२२५ | साम्परायिक ४-३९१ | १५-६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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