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________________ अप्पाबहुअणुयोगद्दारे पच्छिमक्खंधाणुयोगद्दारं ( ५७७ महावाचयाणं खमासमणाणं उवदेसेण सव्वत्थोवाणि कसाउदयढाणाणि । ठिदिबंधज्झवसाणढाणाणि असं० गुणागि । पदेसउदीरयअज्झवसाणट्ठाणाणि असंखे० गुणाणि । पदेससंकमणाअज्झवसाणाणि असंखे० गुणाणि । उवसामयअज्झवसा० असं० गुणाणि । णिधत्तमज्झवसाणाणि असं० गुणाणि। णिकाचणज्झवसा० असं० गुणाणि। एत्थ अणंतराणंत (र) गुणगारो असं० लोगा। एवं णिकाचिदं त्ति समत्तमणुयोगद्दारं। ___ कम्मढिदि त्ति अणुयोगद्दारे एत्थ महावाचया अज्जणंदिणो संतकम्मं करेंति । महावाचया टिदिसंतकम्मं पयासंति । एवं कम्मट्ठिदि त्ति समत्तमणुयोगद्दारं।। __पच्छिमक्खंधे त्ति अगुयोगद्दारे तत्थ इमा मग्गणा- आउअस्स अंतोमुहुत्ते सेसे तदा आवज्जिदकरणं करेदि । आवज्जिदकरणे कदे तदो केवलिसमुग्घादं करेदिपढमसमए दंडं करेदि । ठिदीए असंखेज्जे भागे हणदि । अप्पसत्थकम्मं सव्वं अणंतभागे अणुभागखंडएण हणदि । तदो बिदियसमए कवाडं करेदि । तत्थ सेसियाए द्विदीए असंखेज्जे भागे हणदि । सेसस्स च अणुभागस्स अणंतभागे हणदि । तदो तदियसमए मंथं करेदि । तत्थ वि सेसियाए द्विदीए असंखेज्जे भागे हणदि । सेसस्स च अणुभागस्स अणंतभागे हणदि । तदो चउत्थसमए लोगं पूरेदि । लोगे पुण्णे एगा महावाचक क्षमाश्रमणके उपदेशके अनुसार कषाय उदयस्थान सबसे स्तोक हैं। स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं। प्रदेशउदीरक अध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं । प्रदेशसंक्रम अध्यवसानस्थान असंख्यात गुणे हैं। उपशामक अध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं। निधत अध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं। निकाचन अध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हैं। यहां अनन्तर-अनन्तर गुणकारका प्रमाण असंख्यात लोक है। इस प्रकार निकाचित अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। कर्मस्थिति अनुयोगद्वारमें यहां महावाचक आर्यनन्दी सत्कर्मकी प्ररूपणा करते हैं और महावाचक ( नागहस्ती ) स्थितिसत्कर्मको प्रकाशित करते हैं। इस प्रकार कर्मस्थिति अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। पश्चिमस्कन्ध इस अनुयोगद्वारमें वहां यह मार्गणा है-- आयुके अन्तर्मुहुर्त मात्र शेष रहनेपर तब आवजित करणको करता है। आजित करणके कर चुकने पर फिर केवलिसमुद्घातको करता है। इसमें प्रथम समय में दण्ड कसमुद्घातको करता है। स्थितिके असंख्यात बहुभागको नष्ट करता है। सब अप्रशस्त कर्म के अनन्त बहुभागको अनुभागकाण्डक द्वारा नष्ट करता है। पश्चात् द्वितीय समय में कपाटसमुद्घातको करता है। उसमें शेष स्थितिके असंख्यात बहुभागको नष्ट करता है। शेष अनुभागके भी अनन्त बहुभागको नष्ट करता है । तत्पश्चात् तृतीय समयमें मंथ समुद्घातको करता है। उसमें भी शेष स्थितिके असंख्यात बहुभागको नष्ट करता है। शेष अनुभागके भी अनन्त बहुभागको नष्ट करता है। तदनंतर अ-काप्रत्योः ' करेंति करेंति',ताप्रती '(करेंति)' इति पाठः। तातो' (आ अस्स. ) अंतो- महत्तसेसे ' इति पाठः।प्रतिष 'सेस च ' इति पाठः। 9 अ-काप्रत्योः 'मत्यं ' इति पाठः। *अ-काप्रत्योः 'लोगो चरेदि', ताप्रती 'लोगो च (पू. रेदि' इति पाठः। प्रतिष 'एदा' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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