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________________ अप्पाबहुअणुयोगद्दारे पोग्गलअत्ताणुयोगद्दारं ( ५७५ सादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडिछद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तमसंखेज्जगुणं । जं सादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडिछुद्धं असादत्ताए वेदिज्जदि तं विसेसाहियं । ( जमसादत्ताए बद्धं संछुद्ध पडिछुद्धं सादत्ताए वेदिज्जदि तं संखेज्जगुणं )। जमसादत्ताए बद्धं संछुद्धं पडिछुद्ध असादत्ताए वेदिज्जदि तं विसेसाहियं । एवं सादासादे त्ति समत्तमणुयोगद्दारं । दोहे रहस्से त्ति अणुयोगद्दारे इमा मग्गणा। तं जहा- पयडिदीहं ट्ठिदिदीहं अणुभागदीहं पदेसदीहं ति चउन्विहं दोहं । एवं रहस्सं पि चउन्विहं । एदेसिमट्टण्ह पि अप्पाबहुअपरूवणाए कदाए दोहे रहस्से ति अणुओगद्दारं समत्तं होइ। भवधारणे त्ति अणुओगद्दारे इमा मग्गणा । तं जहा- कदरेण कम्मेण भवो धारिज्जदि ? आउएण कम्मेण धारिज्जदि । एत्थ अप्पाबहुअपरूवणा कायव्वा । एवं भवधारणे त्ति समत्तमणुओगद्दारं ।। पोग्गलअत्ते त्ति अणुओगद्दारे इमा गाहा मग्गिदव्वा - ममत्ति०* आहारे परिभोयं परिग्गहग्गय तहा च परिणामा । आदेसपमाणत्ता (?) पुण अट्ठविहा पोग्गला अत्ता ।। १ ।। अत्ता मवुत्ति परिभोग परि गहणे तथा च परिणामे । आहारे गहणे पुण चउविहा पोग्गला अत्ता ।। २ ।। बांधा जाकर संक्षिप्त और प्रतिक्षिप्त होकर सात स्वरूपसे वेदा जाता है वह असंख्यातगुणा है। जो सात स्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त और प्रतिक्षिप्त होता हुआ असात स्वरूपसे वेदा जाता है वह विशेष अधिक हैं। ( जो असात स्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त और प्रतिक्षिप्त होता हुआ सात स्वरूपसे वेदा जाता है वह असंख्यातगुणा है । ) जो असात स्वरूपसे बांधा जाकर संक्षिप्त और प्रतिक्षिप्त होता हुआ असात स्वरूपसे वेदा जाता है वह विशष अधिक है । इस प्रकार सातासात अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। दीर्घ-ह स्व अनुयोगद्वारमें यह मार्गणा है । यथा- प्रकृतिदीर्घ, स्थितिदीर्घ, अनुभागदीर्घ और प्रदेशदीर्घ इस प्रकार दीर्घ चार प्रकारका है। इसी प्रकारसे ह स्व भी चार प्रकारका है। इन आठोंके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करनेपर दीर्घ-ह,स्व अनुयोगद्वार समाप्त होता है । ___ भवधारण अनुयोगद्वार में यह मार्गणा है । यथा- किस कर्मके द्वारा भव धारण किया जाता है ? आयु कर्मके द्वारा धारण किया जाता है। यहां अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करना चाहिये। इस प्रकार भवधारण अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। पुद्गलात्त अनुयोगद्वारमें इस गाथाकी मार्गणा करना चाहिये-- ममत्ति० आहार, परिभोग, परिग्रहगत तथा परिणामस्वरूपसे पुद्गल ग्रहण किये जाते हैं । परन्तु आदेशप्रमाणकी अपेक्षा (?) आठ प्रकारके पुद्गल ग्रहण किये जाते हैं ।। १ ।। ममत्व, परिभोग, परिग्रहण तथा परिणाम रूपसे चार प्रकारके पुद्गल ग्रहण होते हैं। तथा आहार और ग्रहणमें चार प्रकारके पुद्गल ग्रहण किये जाते हैं ॥ २ ॥ ४ तातो 'दीहरहस्से' इति पाठः। अ-काप्रत्योः 'अप्पाबहअ परूवणाए कदाए दीए', ताप्रती 'अप्पाबहुअं परूवणाए का । एवं दीहे ' इति पाठः। * तापतौ 'मग्गिदम्बा ममत्तिा ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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