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________________ ५६४ ) छक्खंडागमे संतकम्म विसे । मदि० विसे०। ओहिदसण० विसे०अचक्ख०विसे०। चक्खु० विसे०। असाद० संखे० गुणं। उच्चागोदे० विसे० । णीचागोदे० विसे । एवमेइंदियदंडओसमत्तो। जहण्णेण जं पदेसग्गं संकामिज्जदि सम्मत्ते तं थोवं। सम्मामिच्छत्ते० असंखे० गुणं' मिच्छत्ते० असंखे० गुणं । अणंताणुबंधिमाणे असंखे० गुणं । कोहे. विसे० । मायाए । विसे० । लोहे विसे०। पयलापयला० असंखे०गुणं । णिहाणिद्धा०विसे । थीणगिद्धी० विसे० । अपच्चक्खाणमाणे० असंखे० गुणं । कोहे० विसे० । मायाए० विसे० । लोहे. विसे० । पच्चक्खाणमाणे विसे० । कोहे० विसे० । मायाए. विसे० । (लोहे० विसे० ) । पयला. विसे० । णिद्दा. विसे० । केवलदसण विसे० । णिरयगइ० अणंतगुणं । देवगइ० असंखे० गुणं । वेउन्विय० संखे० गुणं । आहार० असंखे० गुणं । मणुसगइ० संखे० गुणं । उच्चागोद० संखे० गुणं । तिरिक्खगइ० असंखे० गुणं । णवंस० असंखे० गुणं । णीचागोद० संखे० गुणं । इत्थि असंखे० गुणं । ओरालिय० असंखे० गुणं । कोहसंजल असंखे० । माण. विसे० । पुरिस० विसे० । माय० विसे० । जसकित्ति० असंखे० गुणं । तेज० संखे० गुणं । कम्मइय: विसे० । ज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। अवधिदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरण में विशेष अधिक है चक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। असातावेदनीयमें संख्यातगुणा है। उच्चगोत्रमें विशेष अधिक है। नीचगोत्र में विशेष अधिक है। इस प्रकार एकेन्द्रियदण्डक समाप्त हुआ। जघन्य रूपसे जो प्रदेशाग्र सम्यक्त्व प्रकृतिमें संक्रान्त होता है वह स्तोक है । सम्यग्मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है। मिथ्यात्व में असंख्यातगणा है। अनन्तानुबन्धी मानम असंख्यातगुणा है। अनन्तानुबन्धी क्रोधमें विशेष अधिक है अनन्तानुबन्धी मायामें विशेष अधिक है। अनन्तानुबन्धी लोभमें विशेष अधिक है। प्रचलाप्रचलामें असंख्यातगुणा है । निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धि में विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरण मानमें असंख्यातगुणा है। अप्रत्याख्यानावरण क्रोधमें विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरण मायामें विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरण लोभमें विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मानमें विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण क्रोध में विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मायामें विशेष अधिक है। ( प्रत्याख्यानावरण लोभमें विशेष अधिक है ।। प्रचलामें विशेष अधिक है । निद्रामें विशेष अधिक है। केवलदर्शनावरण में विशेष अधिक है। नरकगति में अनन्तगुणा है । देवगतिमें असंख्यातगुणा है । वैक्रियिकशरीरमें संख्यातगुणा है । आहारशरीरमें असंख्यातगुणा है। मनुष्यगतिमें संख्यातगुणा है। उच्चगोत्रमें संख्यातगुणा है । तिर्यग्गतिमें असंख्यातगुणा है । नपुंसकवेदमें असंख्यातगुण। है । नीचगोत्रमें संख्यातगुणा है । स्त्रीवेदमें असंख्यातगुणा है। औदारिकशरीरमें असंख्यातगुणा है । संज्वलन क्रोधमें असंख्यातगुणा है । संज्वलन मानमें विशेष अधिक है। पुरुषवेदमें विशेष अधिक है। संज्वलन मायामें विशेष अधिक है। यशकीति में असंख्यातगुणा है । तैजसशरीरमें संख्यातगुणा है। कार्मणशरीरमें विशेष अधिक है। Jain Education Internationas For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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