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________________ अप्पा बहुअणुयोगद्दारं संक्रमप्पा बहुअं ( ५५७ संखेज्जगुणं । देवगड-वेउब्विय- आहार णीचागोद- अजसकित्तीणं जाओ द्विदीओ ताओ संखे० गुणाओ । ओरालिय-तेजा- -कम्मइय- उच्चागोद- जसकित्ति मणुसगदीणं जाओ द्विदीओ ताओ विसेसाहियाओ। सव्वासि जद्विदीओ विसे० । सादासादाणं जह० विसे० ० । जट्ठिदी० विसे० । मायासंजलणाए जह० संखे० गुणं । जट्ठिदि० विसे० 1 माणसं जलाए जह० विसे० । जट्ठिदि० विसे० । कोहसंजलणाए जह० विसे० । जट्ठिदि विसे० । पुरिस० जह० संखे गुणं । जट्ठिदि विसे० । इत्थि णवंसयवेदाणं जह० असंखे० गुणं । श्रोणगिद्धितियस्स जह० असंखे० गुणं । जट्ठिदि० विसे० । रियगइ - तिरिक्खगइणामाणं जह० असं० गुणं । जट्ठिदि० विसे । अट्टहं कसायाणं जह० असं गुणं । जट्ठदि० विमे० । सम्मामिच्छत्तस्स जह० संखे० । जट्ठिदि० विसे० । मिच्छत्त० ० जह० असंखे० । जट्ठिदि० विसे० । अणंताणुबंधिचउक्कस्स जह० असंखे ० गुणं । द्विदि० विसे० । एवमोघदंडओ समत्तो । O t जहणेण सव्वमंदाणुभागं लोहसंजलणं । मायासंज० अनंतगुणं । माणसंज० अनंतगुणं । कोहमंज० अनंतगुणं । सम्मत्त० अनंतगुणं । पुरिस० अनंतगुणं । सम्मामिच्छत्त० अनंतगुणं । मणपज्जव० अनंतगुणं । दाणंतराइय० अनंतगुणं । असंख्यातगुणी है । निद्रा और प्रचल की जस्थिति संख्यातगुणी है । देवगति, वैक्रियिकशरीर, आहारकशरीर, नीचगोत्र और अयशकीर्ति; इनकी जो स्थितियां संक्रान्त होती हैं वे संख्यातगुणी हैं । औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर उच्चगोत्र, यशकीर्ति और मनुष्यगतिकी जो स्थितियां संक्रान्त होती हैं वे विशेष अधिक हैं । इन सबकी जस्थितियां विशेष अधिक हैं । साता और असातावेदनीयकी जो जघन्य स्थितियां संक्रान्त होती हैं वे विशेष अधिक हैं । जस्थिति विशेष अधिक है । संज्वलन मायाकी उक्त जघन्य स्थितियां संख्यातगुणी हैं । जस्थिति विशेष अधिक है । संज्वलन मानकी वे जघन्य स्थितियां विशेष अधिक हैं । 'जस्थिति विशेष अधिक है । संज्वलन क्रोत्रकी वे जघन्य स्थितियां विशेष अधिक हैं । जस्थिति विशेष अधिक है । पुरुषवेदकी वे जघन्य स्थितियां संख्यातगुणी हैं । जस्थिति विशेष अधिक है । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी वे जघन्य स्थितियां असंख्यातगुणी हैं । स्त्यानगृद्धित्रयकी जघन्य स्थितियां असंख्यातगुणी हैं। जस्थिति विशेष अधिक है। नरकगति और तिर्यग्गति नामकर्मोंकी वे जघन्य स्थितियां असंख्यातगुणी हैं । जस्थिति विशेष अधिक है। आठ कषायोंकी वे जघन्य स्थितियां असंख्यातगुणी है । जस्थिति विशेष अधिक है । सम्यग्मिथ्यात्वकी वे जघन्य स्थितियां संख्यातगुणा हैं । जस्थिति विशेष अधिक है । मिथ्यात्वकी वे जघन्य स्थितियां असंख्यातगुणी हैं । जस्थिति विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धिचतुष्ककी वे जघन्य स्थितियां असंख्यातगुणी हैं । जस्थिति विशेष अधिक है। इस प्रकार ओघदण्डक समाप्त हुआ । जघन्यकी अपेक्षा सबसे मंद अनुभागवाला संज्वलन लोभ है । संज्वलन माया अनतगुणी है संज्वलन मान अनन्तगुणा है । संज्वलन क्रोध अनन्तगुणा है । सम्यक्त्व अनन्तगुणा है । पुरुषवेद अनन्तगुणा है । सम्यग्मिथ्यात्व अनन्तगुणा है । मन:पर्ययज्ञानावरण अनन्तगुणा है । अ-ताप्रत्योः 'विसेसाहिओ ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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