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________________ छक्खंडागमे संतकम्म माण० विसे०। माया० विसे० । पंचणाणावरण-छदसणावरण-पंचंतराइय-ओरालियतेजा-कम्मइय-अजसकित्तीणं विसेसाहियं । एवमोघदंडओ समत्तो। मोहणीयस्स पयडिहाणसंकमेण णवण्हं संकमया थोवा । छण्णं संकामया विसेसाहिया । चोद्दसण्णं संखेज्जगुणं । पंचण्हं संखे० गुणं । अढण्हं विसेसाहियं । अट्ठारसण्हं विसे । उणवीसण्णं विसेसाहियं । चदुहं संखे० गुणं । सत्तण्हं विसे० । वीसण्हं विसे० । एक्किस्से संखे० गुणं । दोण्हं विसे० । दसण्हं विसे० । एक्कारसण्हं विसे । बारसण्हं विसे । तिण्हं संखे० गुणं । तेरसण्हं संखेज्जगुणं । बावीसण्हं संखेज्जगुणं । छन्वीसण्हं असंखे० गुणं । एक्कवीसण्हं असंखे० गुणं । तेवीसण्हं असंखे० गुणं । सत्तवीसहं असंखे० गुणं । पणुवीसण्हें अणंतगुणं । एवमोघदंडो समत्तो । उक्कस्सदिदिसंकमो सुगमो। जहण्णढिदिसंकमे पयदं-पंचणाणावरण-चउर्दसणावरणसम्मत्त-लोहसंजलण-आउचउक्क-पंचंतराइयाणं जाओ द्विदीओ संकामिज्जदि ताओ थोवाओ। णिहा-पयलाणं तत्तिओ चेवा जट्टिदी* असंखेज्जी।णिद्दा-पयलाणं जट्ठिदी संक्रामक विशेष अधिक हैं। संज्वलन क्रोधके संक्रामक विशेष अधिक है। संज्वलन मानके संक्रामक विशष अधिक है। संज्वलन मायाके संक्रामक विशेष अधिक हैं। पांच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, पांच अन्तराय, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर और अयशकीर्तिके संक्रामक विशेष अधिक है। इस प्रकार ओघदण्डक समाप्त हुआ। प्रकृतिस्थानसंक्रमकी अपेक्षा मोहनीयको नौ प्रकृतियोंके संक्रामक स्तोक हैं। उसकी छह प्रकृतियोंके संक्रामक विशेष अधिक हैं। चौदह प्रकृतियोंके संक्रामक संख्यातगुणे हैं । पांच प्रकृतियों के संक्रामक संख्यातगणे हैं। आठ प्रकृतियोंके संक्रामक विशेष अधिक हैं। अठारह प्रकृतियों के संक्रामक विशेष अधिक हैं। उन्नीस प्रकृतियोंके संक्रामक विशेष अधिक हैं । चार प्रकृतियोंके संक्रामक संख्यातगुणे हैं। सात प्रकृतियोंके संक्रामक विशेष अधिक हैं। बीस प्रकृतियोंके संक्रामक विशेष अधिक हैं। एकके संक्रामक संख्यातगुणे हैं। दोके संक्रामक विशेष अधिक हैं। दसके संक्रामक विशेष अधिक हैं। ग्यारहके संक्रामक विशेष अधिक है। बारहके संक्रामक विशेष अधिक हैं। तीनके संक्रामक संख्यातगुणे हैं । तेरहके संक्रामक संख्यातगुणे हैं । बाईसके संक्रामक संख्यातगुणे हैं। छब्बीसके संक्रामक असंख्यातगुणे हैं। इक्कीसके संक्रामक असंख्यागुणे हैं। तेईसके संक्रामक असंख्यातगुणे हैं। सत्ताईसके संक्रामक असंख्यातगुणे हैं। पच्चीसके संक्रामक अनन्तगुणे हैं। इस प्रकार ओघदण्डक समाप्त हुआ। उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम सुगम है । जघन्य स्थितिसंक्रम अधिकार प्राप्त है- पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सम्यक्त्व, संज्वलन लोभ, चार आयु कर्म और पांच अन्तराय; इनकी जो स्थितियां संक्रान्त होती हैं वे स्तोक हैं। निद्रा और प्रचलाकी उतनी मात्र ही हैं। उनकी जस्थिति ४ अ-काप्रत्योः 'ऊण वीसयं ' इति पाठः। * मरति गठोऽयम् । अ-का-ताप्रतिषु 'जंद्विदी' इति पाठः । अग्रेऽप्ययमेव पाठक्रमः । ताप्रती 'संखेज्ज' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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