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________________ ५४० ) छक्खंडागमे संतकम्म सेसाणं सव्वकम्माणं जहण्णाणुभागसंतकम्मं (?) सव्वघादिफद्दएण समाणत्तादो* केवलदसणाणुभागसंतकम्मस्स उक्कस्सस्स उक्कस्साणुभागं : चडिदूण जाव ण घादेदि ताव उक्कस्साणुभागसंतकम्मिओ । सो इदाणों को होज्ज? एइंदियो बेइंदियो तीइंदियो चरिदियो च सण्णी असण्णी पज्जत्तओ अपज्जत्तओ सुहुमो बादरो वा होज्ज। सवेसि कम्माणं उक्कस्साणुभागसंतकम्मं जहा मदिआवरणस्स वुत्तं तहा वत्तव्वं । सादस्स उक्कस्साणुभागसंतकम्मं कस्स ? चरिमसमयसुहमसांपराइयस्स खवयमादि कादूण जाव दुचरिमसमयभवसिद्धियादो त्ति। उच्चागोद-जसकित्तीणं सादभंगो। मणुसगइ-मणुसगइपाओग्गाणुपुवी-ओरालियसरीर-ओरालियसरीरअंगोवंग- वज्जरिसहवइरणारायणसरीरसंघडणाणं उक्कस्साणुभागसंतकम्मं कस्स? देवेण सव्वविसुद्धण बद्धाणुभागमघादेदूणमण्णदरगदीए वट्टमाणस्स । जाओ पसत्थाओ गामपयडीओ तासिमुक्कस्साणुभागसंतकम्मं कस्स? खवयस्स परभवियणामाणं चेव बंधमाणाणं * सर्वघाति स्पर्धकके समान होनेसे केवलदर्शनावरणके उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका उत्कृष्ट अनुभाग चढकर जब तक नहीं घातता है तब तक वह उसके उत्कृष्ट अनुभाग सत्कर्मसे संयुक्त होता है। शंका-- वह इस समय कौन हो उकता है ? समाधान-- वह एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, संज्ञी व असंज्ञी पंचेन्द्रिय, पर्याप्त, अपर्याप्त, सूक्ष्म और बादर हो सकता है। सब कर्मोंका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मके, जैसे मतिज्ञानावरणका कहा गया है, वैसे कहना चाहिये। सातावेदनीयका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? वह अन्तिम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपकको आदि करके द्विचरम समयवर्ती भव्यसिद्धिक तक होता है। उच्चगोत्र और यशकीर्ति के उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मके स्वामीकी प्ररूपणा सातावेदनीयके समान करना चाहिये। मनुष्यगति, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, औदारिकशरीर, औदारिकशरीररांगोपांग और वज्रर्षभवज्रनाराचशरीरसंहननका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? जो सर्वविशुद्ध देवके द्वारा बांधे गये अनुभागको न घातकर अन्यतर गतिमें वर्तमान है उसके इनका उत्कृष्ट सत्कर्म होता है । जो प्रशस्त नामप्रकृतियां हैं उनका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? वह परभविक नामकर्मोको ही बांधनेवाले क्षपकके अन्तिम समयको आदि करके द्विचरम स्थानमधिकृत्य द्विस्थानम, घातिसंज्ञामधिकृत्य देशघाति । इहोत्कष्टानभागसत्कर्मस्वामिन उत्कृष्टानभागसंक्रमस्वामिन एव वेदितव्याः । जघन्यानभागसत्कर्मस्वामिनः पुनराह--'सामिगो येत्यादि 'सम्यक्त्वज्ञानावरणपंचक-दर्शनावरणषटकान्तरायपंचकरूपप्रकृतिषोडशक--किट्रिरूपसंज्वलनलोभ-वेदत्रयाणां स्व स्वान्तिम. समये वर्तमाना जघन्यानुभागसत्कर्मस्वामिनो वेदितव्याः । मलय. S8 प्रतिषु स्खलितोऽत्र प्रतिभाति पाठः, मतिज्ञानावरणस्योत्कृष्टानभागसत्कमप्ररूपणाया अभावात् । * ताप्रती 'समाण (णं) ता (त) दो' इति पाठः। काप्रतौ कम्मरस उक्कस्साणभाग', 'ताप्रती 'कम्मस्स उक्कस्सं, उक्कस्साणभागं ' इति पाठः। ॐ अ-काप्रत्यो: 'अपज्जत्त' इति पाठः। ता-मप्रत्यो: '-मघादेदूण चरिमगदीए' इति पाठः। * अ-प्रती 'वमाणस्साणं', का-ताप्रत्यो: Jain Education Internatiवट्टमाणाणं' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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