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________________ अप्पा बहुअणुयोगद्दार ठिदिसंतकम्मसामित्तं ( ५३३ कस्स ? तस्स चेव वा देवस्स उक्कस्सयं द्विदि बंधिदूण एइंदिएसु उववण्णस्स पढमसमय तब्भवत्थस्स वा, देव णेरइयपच्छायदपंचिदियतिरिक्खस्स वा । मणुसगइणामाए उक्कस्सियं द्विदितकम्मं कस्स ? मणुसगई बंधमाणस्स उक्कस्सट्ठिदि* संकामयस्स मणुस्सस्स । उक्कस्सियाओ जाओ द्विदीओ कस्स ? एरिसस्स चेव मणुस्सस्स । देवगइणामाए उक्कस्सयं द्विदिस्तकम्मं कस्स ? देवगई बंधमाणस्स उक्कस्सट्ठिदिसंकामगस्स । जाओ द्विदीओ एरिसस्सेव । एवं जादिणामाणं । वेव्वियसरीरणामाए णिरयगइभंगो । णवरि समऊणं ण होदि । ओरालिय सरीरणामाए तपाओग्गबंधण संघादाणं च तिरिक्खगइभंगो । ओरालियसरीर अंगोवंग - असंपत्तसेवट्टसंघडणाणं उक्कस्सियं द्विदिसंतकम्मं कस्स ? णेरइयस्स सणवकुमार माहिंददेवस्स वा उक्कस्सां ट्ठिदि बंध माणस्स । एदेसि दोष्णं कस्माणं जाओ द्विदीओ उक्कस्सियाओ कस्स ? एदेसि चेव देव णेरइयाणं तत्पच्छायदस्स पढमसमयतिरिक्खस्स वा | पंचसंठाण --पंच संघडणाणं उक्कस्सियं द्विदितकम्मं कस्स ? एदासि पयडीणं बंधमाणस्स उक्कस्सियं ट्ठिदिसंक मे वट्टमाणस्स । जाओ द्विदीओ उक्कस्सियाओ कस्स ? एदस्स चेव 1 htra | हुंडठाणस्स उक्कस्सट्ठिदिसंतकम्मं वरि अप्पिदपयडीए वेदओ किसके होती हैं ? वे उसके ही होती हैं, उत्कृष्ट स्थितिको बांधकर एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुए प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ देवके होती हैं, अथवा देव नारकियोंमेंसे पीछे आये हुए पंचेन्द्रिय तिर्यंचके होती हैं । मनुष्यगति नामकर्मका उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म किसके होता है ? वह मनुष्यगतिको बांधते हुए उसकी उत्कृष्ट स्थितिको संक्रांत करनेवाले मनुष्यके होता है । उसकी उत्कृष्ट स्थितियां किसके होती हैं ? वे ऐसे ही मनुष्य के होती हैं । देवगति नामकर्मका उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म किसके होता है ? देवगतिको बांधते हुए उसकी उत्कृष्ट स्थितिका संक्रम करनेवाले के उसका उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म होता है । ऐसे ही जीवके उसकी उत्कृष्ट जस्थिति होती हैं । इसी प्रकार जाति नामकर्मोकी प्ररूपणा करना चाहिये । वैक्रियिकशरीर नामकर्म की प्ररूपणा नरकगतिके समान है । विशेष इतना है कि यहां एक समय कम नहीं है । औदारिकशरीर और तत्प्रायोग्य बन्धन व संघात नामकर्मोंकी प्ररूपणा तिर्यग्गतिके समान है । औदारिकशरीरांगोपांग और असंप्राप्तासृपाटिकासंहननका उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म किसके होता है ? वह उत्कृष्ट स्थितिको बांधनेवाले नारकी अथवा सनत्कुमार व माहेन्द्र कल्पवासी देवके होता है । इन दोनों कर्मोंकी उत्कृष्ट जस्थितियां किसके होती हैं ? वे इन्हीं देव-नारकियों के अथवा उनमें से पीछे आये हुए प्रथम समयवर्ती तिर्यंचके होती हैं। पांच संस्थान और पांच संहनन नामकर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म किसके होता है ? वह इन प्रकृतियोंको बांधते हुए उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम में वर्तमान जीवके होता है । उनकी उत्कृष्ट जस्थितियां किसके होती हैं ? वे इसी जीवके होती हैं। विशेष इनता है कि विवक्षित प्रकृतिका वेदक करना चाहिये । हुण्डकसंस्थानका उत्कृष्ट अ-काप्रत्यो: ' मणुस्स ' इति पात्र: । Jain Education International ताप्रती ' उक्कस्यं द्विदि ' इति पाठः । ताप्रती ' उक्कस्सियं' इति पाठ: । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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