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________________ ५२८ ) छक्खंडागमे संतकम्म कसायपाहुडे कदं तहा कायव्वं । सेसाणं कम्माणं पयडिट्टाणमग्गणा सुगमा । एवं पयडिसंतकम्ममग्गणा समत्ता । एत्तो टिदिसंतकम्मं दुविहं मूलपयडिटिदिसंतकम्मं उत्तरपयडिटिदिसंतकम्म चेदि । तत्थ मूलपयडिटिदिसंतकम्मं सुगमं । उत्तरपयडिट्ठिदिसंतकम्मे अद्धाच्छेदो। तं जहा-- मदिआवरणस्स उक्कस्सटिदिसंतकम्मं तीसं सागरोवमकोडाकोडीयो पडिवुण्णाओD, जाओ द्विदीओ वि एत्तियाओ चेव । जहा मदिआवरणस्स उक्कस्सद्विदिसंतकम्मस्स अद्धाच्छेदो कदो तहा सेसचदुणाणावरण-चदुदंसणावरण-पंचंतराइयाणं कायव्वो । पंचण्णं दंसणावरणीयाणं जट्टिदिसंतकम्मं तीसं सागरोवमकोडाकोडीयो पडिवुण्णाओ, जाओ द्विदीओ समऊणाओ । सादस्स जट्टिदिसंतकम्म जाओ द्विदीओ च तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ आवलियूणाओ जट्टिदिसंतकम्म जाओ द्विदीओ च असादस्स तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ पडिवुण्णाओ। मिच्छत्तस्स जट्टिदिसंतकम्मं जाओ द्विदीओ च सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ पडिवुण्णाओ। सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीओ अंतोमुत्तूणाओ। सोलसण्णं कसायाणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ पडिवुण्णाओ। णवण्णं णोकसायाणं जटिदिसंतकम्मं जाओ द्विदीओ च चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ आवलियूणाओ। किया गया है वैसे करना चाहिये । शेष कर्मोंकी प्रकृतिस्थानमार्गणा सुगम है । इस प्रकार प्रकृतिसत्कर्ममार्गणा समाप्त हुई। यहां स्थितिसत्कर्म दो प्रकारका है-- मूलप्रकृतिस्थिसत्कर्म और उत्तरप्रकृतिस्थितिसत्कर्म । इनमें मूलप्रकृतिस्थितिसत्कर्म सुगम है। उत्तरप्रकृतिस्थितिसत्कर्ममें अद्धाछेदका कथन इस प्रकार है-- मतिज्ञानावरणका उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्म सम्पूर्ण तीस कोडाकोडि सागरोपम प्रमाण तथा जस्थितियां भी इतनी मात्र ही हैं । जैसे मतिज्ञानावरणके उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मका अद्धाच्छेद किया है वैसे ही शेष चार ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पांच अन्तराय प्रकृतियोंका भी करना चाहिये । निद्रादिक पांच दर्शनावरण प्रकृतियोंका जस्थितिसत्कर्म परिपूर्ण तीस कोडाकोडि सागरोपम तथा जस्थितियां एक समय कम तीस कोडाकोडि सागरोपम मात्र हैं। सातावेदनीयका जस्थितिसत्कर्म और जस्थितियां आवलीसे हीन तीस कीडाकोडि सागरोपम प्रमाण हैं । असातावेदनीयका जस्थितिसत्कर्म और जस्थितियां परिपूर्ण तीस कोडाकोडि सागरोपम प्रमाण है। मिथ्यात्वका जस्थितिसत्कर्म और जस्थितियां परिपूर्ण सत्तर कोडाकोडि सागरोपम मात्र हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतियोंका जस्थितिसत्कर्म और जस्थितियां अन्तर्मुहूर्त कम सत्तर कोडाकोडि सागरोपम प्रमाण हैं । सोलह कषायोंका जस्थितिसत्कर्म और जस्थितियां परिपूर्ण चालीस कोडाकोडि सागरोपम प्रमाण हैं । नौ नोकषायोंका जस्थितिसत्कर्म और . अ-काप्रत्योः 'विसेसाणं', ताप्रती (वि) सेसाणं' इति पाठः।.ताप्रतौ 'पयडिसंकम (संत ) मग्गणा' इति पाठः। अप्रतो 'पडिवण्णाओ' इति पाठः । अ-काप्रत्योः 'पडिवण्णाश्रो' इति पाठः । ४ प्रतिषु 'जट्टिदीओ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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