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________________ ५२६ ) छक्खंडागमे संतकम्मं सम्मामिच्छत्तसंतक० विसेसा० । मणुस्साउअस्स संतक० असंखे० गुणा । णिरयाउअस्स संतक० असंखे० गुणा । देवाउअस्स संतक० असंखे० गुणा । देवगदीए संतक० असंखे० गुणा । णिरयगदीए संतक० विसे० । वेउव्वियसरीरसंतक० विसे० । उच्चागोदसंतक अनंतगुणा । मणुसगइसंतक विसे० । अनंताणुबंधीणं संतक० विसे० । मिच्छत्तस्स संतक० विसे० । सेसाणं कम्माणं संतकम्मिया तुल्ला विसेसाहिया । एवं तिरिक्खगइदंडओ समत्तो । 1 तिरिक्खजोगिणीसु सव्वत्थोवा आहारसरीरणामाए संतकम्मिया । सम्मत्त - संतक० असं० गुणा । सम्मामिच्छत्तसंत० विसे०मणुस्साउअस्स संत० असं० गुणा णिरयाउसंतक० असं० गुणा । देवाउ० संत असंखे० गुणा । अनंताणुबं० संत० सं० गुणा । सेसाणं कम्माणं संतकम्मिया तुल्ला विसे० । एवं तिरिक्खजोणिणीसु दंडओ समत्तो । म सगदी सव्वत्थोवा आहारसरीरणामाए संतक० । णिरयाउअस्स संतक० संखे० गुणा । देवाउअस्स संतक० संखे० गुणा । सम्मत्तस्स संतक० असंखे ० गुणा । सम्मामिच्छत्तस्स संतक० विसे० । देवगइणामाए संतक० असंखे० गुणा । णिरयगइणामाए संतक० विसे० । वेउव्वियसरीरणामाए संतक, विसे० । तिरिक्खा उअस्स संतक० असंखे० गुणा । अताणुबंधिसंतक० संखे० गुणा । मिच्छत्तसंतक० विसे० । सेस हैं । सम्यग्मिथ्यात्वके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं। मनुष्यायुके सत्कर्मिक असंख्यातगुणे हैं । नारका के सत्कर्मिक असंख्यातगुणे हैं । देवायुके सत्कर्मिक अमंख्यातगुणे हैं । देवगति के सत्कर्मिक असंख्यातगुणे हैं । नरकगति के सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । वैक्रियिकशरीर के सत्कर्मक विशेष अधिक हैं । उच्चगोत्रके सत्कमिक अनन्तगुणे हैं। मनुष्यगतिके सत्कर्मक विशेष अधिक हैं । अनन्तानुबन्धिचतुष्टयके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । मिथ्यात्व के सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । शेष कर्मोंके सत्कर्मिक तुल्य व विशेष अधिक हैं । इस प्रकार तिर्यग्गतिदण्डक समाप्त हुआ । तिर्यंच योनिमतियों में आहारशरीर नामकर्मके सत्कमिक सबसे स्तोक हैं । सम्यक्त्व प्रकृति के सत्कर्मक असंख्यातगुणे हैं । सम्यग्मिथ्यात्व के सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं। मनुष्यायुके सत्कर्मक असंख्यातगुणं हैं नारकायुके सत्कमिक असंख्यातगुणे हैं । देवायुके सत्कर्मिक असंख्यातगुणे हैं । अनन्तान्बन्धि चतुष्टय के सत्कमिक संख्यातगुणे हैं । शेष कर्मोके सत्कर्मिक तुल्य व विशेष अधिक हैं। इस प्रकार तिर्यंचयोनिमतियों में प्रकृत दण्डक समाप्त हुआ । मनुष्यगति में आहारशरीर नामकर्म के सत्कर्मिक सबसे स्तोक हैं। नारकायुके सत्कर्मक संख्यातगुणे हैं । देवायु के सत्कर्मिक संख्यातगुणे हैं । सम्यक्त्व प्रकृति के सत्कमिक असंख्यातगुणे हैं । सम्यग्मिथ्यात्व के सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । देवगति नामकर्मके सत्कर्मिक असंख्यात - गुणे हैं । नरकगति नामकर्मके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । वैक्रियिकशरीर नामकर्मके सकर्मिक विशेष अधिक हैं । तिर्यगायुके सत्कर्मिक असंख्यातगुणे हैं । अनन्तानुबन्धिचतुrain संख्यातगुणे है । मिव्यात्व के सतकर्मिक विशेष अधिक हैं । Jain Education International शुषjainelibrary.org.
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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