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________________ अपाबहुअणुयोगद्दारे परत्थाणप्पा बहुअं ( ५२५ विसे । तिरिक्खाउअस्स संतक० विसे० । अनंताणुबंधिच उक्कसंतक० विसे० । मिच्छत्तसंतक० विसे० । कटुकसायसंतक० विसे० । तिरिक्खगइ - णिद्दाणिद्दा- पयलापयला-थीणगिद्धीणं च संतक० तुल्ला विसेसाहिया । णवंसयवेदस्स संतक० विसे० । इत्थिवेयस्स संतक० विसे० । छण्णोकसायाणं संतक० विसे० । पुरिसवेदस्स संतक० विसे० । कोहसंजणाए संतक० विसे० । माण० विसे० । माया० विसे । लोभ० विसे० । णिद्दापयलाणं संतक० विसे० | पंचणाणावरण- चउदसणावरण-पंचंतराइयाणं संतक० तुल्ला विसेसाहिया | ओरालिय- तेजा - कम्मइय-अजस कित्ति - णीचागोदाणं संतक० विसे० । असादस्स संतक० विसे० । सादस्स संतक० विसे० । जसकित्तीए संतकम्मिया विसेसाहिया । एवं ओघमप्पा बहुअदंडओ समत्तो । د णिरयगईए सव्वत्थोवा मणुस्साउअस्स संतकम्मिया । आहारसरीरणामाए संतकम्मिया असंखेज्जागुणा । सम्मत्तस्स संतक० असंखे० गुणा । सम्मामिच्छत्तस्स संतक० विसेसा० । तिरिक्खाउअस्स संतक० असंखे० गुणा । अनंताणुबंधी संतक० संखे० गुणा । मिच्छत्तस्स संतक० विसे० । सेसाणं कम्माणं सव्वेसि संतकम्मिया तुल्ला विसेसा० । एवं णिरयगइदंडओ समत्तो । तिरिक्खगदीए आहारसंतकम्मिया थोवा । सम्मत्त संतक० असंखे ० गुणा । सकर्मिक विशेष अधिक हैं । अनन्तानुबन्धि चतुष्कके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । मिथ्यात्व के सकर्मिक विशेष अधिक हैं । आठ कषायों के सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । तिर्यंचगति, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धिके सत्कर्मिक तुल्य व विशेष अधिक हैं । नपुंसकवेदके सत्कर्मक विशेष अधिक हैं । स्त्रीवेदके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । छह नोकषायोंके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । पुरुषवेद के सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । संज्वलन क्रोधके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । संज्वलन मानके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । संज्वलन मायाके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । संज्वलन लोभके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । निद्रा और प्रचलाके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं। पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पांच अन्तरायके सत्कर्मिक तुल्य व विशेष अधिक हैं । औदारिक, तैजस व कार्मण शरीर, अयशकीर्ति और नीचगोत्रके सत्कर्मिक तुल्य व विशेष अधिक हैं । असातावेदनीयके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । सातावेदनीयके सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं | यशकीर्ति के सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । इस प्रकार ओघअल्पबहुत्त दण्डक समाप्त हुआ । नरकगति में मनुष्यायुके सत्कर्मिक सबसे स्तोक हैं । आहारकशरीर नामकर्म के सत्कर्मिक असंख्यातगुणे हें । सम्यक्त्व प्रकृति के सत्कर्मिक असंख्यातगुणे हैं । सम्यग्मिथ्यात्व के सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । तिर्यगायुके सत्कमिक असंख्यातगुणे हैं । अनन्तानुबन्धिचतुष्टय के सत्कमिक संख्यातगुणे हैं । मिथ्यात्व के सत्कर्मिक विशेष अधिक हैं । शेष सब कर्मोके सत्कर्मिक तुल्य व विशेष अधिक हैं । इस प्रकार नरकगतिदण्डक समाप्त हुआ । Jain Education Internation तिर्यंचगति में आहारसत्कर्मिक स्तोक हैं । सम्यक्त्व प्रकृति के सत्कर्मिक असंख्यात गुणणे ainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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