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________________ दीह-रहस्साणुयोगद्दारे अणुभागरहस्सं ( ५११ मिच्छत्त-तेरसकसाय- इत्यि-णवंसयवेद-चत्तारिआउअ-सव्वणामपयडि--णीचुच्चागोदपंचंतराइयाणमेया टिदी द्विदिरहस्सं, तदुवरि णोद्विदिरहस्सं । कोधसंजलणाए अंतोमुहुत्तूणबेमासा टिदिरहस्सं, तदुवरि णोटिदिरहस्सं । माणसंजलणाए अंतोमुत्तूणमासो द्विदिरहस्सं । मायासंजलणाए पक्खो देसूणो टिदिरहस्सं । पुरिसवेदस्स अट्ठवासा देसूणा दिदिरहस्सं । तदुवरि णोटिदिरहस्सं । छण्णोकसायाणं संखेज्जाणि वस्साणि द्विदिरहस्सं, तदुवरि णोटिदिरहस्सं । एवं द्विदिरहस्से ति समत्तं । ___ अणुभागरहस्से पयदं । तं जहा- सव्वासि पयडीणं अप्पप्पणो जहण्णाणुभागट्ठाणं बंधमाणस्स अणुभागरहस्सं, तदुवरि बंधमाणस्स णोअणुभागरहस्सं। पदेसरहस्से पयदं । तं जहा- सव्वासि पयडीणं सग-सगजहण्णपदेसे बंधमाणस्स पदेसरहस्सं । संतं पडुच्च खविदकम्मसियलक्खणेणागंतूण गुणसेडिणिज्जरं काऊण सव्वजहण्णीकयपदेसस्स पदेसरहस्स, तदुवरि णोपदेसरहस्सं । एवं दीह-रहस्से त्ति समत्तमणुयोगद्दारं। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, चार आयु, सब नामप्रकृतियां, नीच व उच्च गोत्र तथा पांच अन्तराय; इनकी एक स्थिति स्थितिह स्व है, उससे अधिक नोस्थितिह स्व है । संज्वलनक्रोधकी अन्तर्मुहूर्त कम दो मास स्थिति स्थितिह स्व है, उससे अधिक नोस्थितिह स्व है। संज्वलन मानकी अन्तर्मुहूर्त कम एक मास स्थिति स्थितिह, स्व है। संज्वलन मायाकी कुछ कम एक पक्ष स्थिति स्थितिह स्व है । पुरुषवेदकी कुछ कम आठ वर्ष स्थिति स्थितिह, स्व है। उससे अधिक स्थिति नोस्थितिह स्व है। छह नोकषायोंकी संख्यात वर्ष स्थिति स्थितिह, स्व है, उससे अधिक स्थिति नोस्थितिह स्व है । इस प्रकार स्थितिह स्व समाप्त हुआ। ___ अनुभागह,स्वका प्रकरण है। यथा- सब प्रकृतियोंके अपने अपने जघन्य अनुभागस्थानको बांधनेवालेके अनुभागह,स्व है, उससे अधिक अनुभागस्थानको बांधनेवालेके नोअनुभागह स्व है। __ प्रदेशह स्व अधिकारप्राप्त है । यथा सब प्रकृतियोंके अपने अपने जघन्य प्रदेशोंको बांधनेवालेके प्रदेशह स्व है सत्त्वकी अपेक्षा क्षपितकर्माशिक स्वरूपसे आकर गुणश्रेणिनिर्जराको करके जिसने प्रदेशको सबसे जघन्य कर लिया है उसके प्रदेशह स्व है, उससे अधिकके नोप्रदेशह स्व है । इस प्रकार दीर्घ-ह स्व यह अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। प्रतिषु ' तं' इति पाठः । For Private Jain Education International www.jainelibrary.org Personal Use Only
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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